सोशल मीडिया पर बच्चों की सुरक्षा: वैश्विक प्रयास और नियम
सोशल मीडिया ने बच्चों के जीवन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है, लेकिन इसके दुष्प्रभाव भी गंभीर हैं। कई देशों ने बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त नियम लागू किए हैं, जैसे कि ऑस्ट्रेलिया में 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए अकाउंट बनाने पर प्रतिबंध। फ्रांस, ब्रिटेन, जर्मनी, नॉर्वे और चीन जैसे देशों ने भी विभिन्न उपाय किए हैं। यह लेख इन वैश्विक प्रयासों की चर्चा करता है और भारत में भी ऐसे नियमों की आवश्यकता पर जोर देता है।
Sep 20, 2025, 17:29 IST
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सोशल मीडिया का बढ़ता प्रभाव
डिजिटल युग में, सोशल मीडिया ने बच्चों और युवाओं के जीवन में एक महत्वपूर्ण स्थान बना लिया है। फेसबुक, इंस्टाग्राम, स्नैपचैट और टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म्स ने संवाद और रचनात्मकता को बढ़ावा दिया है, लेकिन इसके साथ ही बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य और सुरक्षा को लेकर गंभीर चिंताएं भी उत्पन्न हुई हैं। विशेष रूप से छोटे बच्चों पर इसका प्रभाव और भी अधिक नकारात्मक हो रहा है। कई अध्ययन दर्शाते हैं कि सोशल मीडिया की लत बच्चों में तनाव, आत्मग्लानि और अवसाद जैसे गंभीर मानसिक स्वास्थ्य समस्याओं को जन्म दे रही है।
क्यों उठाए जा रहे हैं सख्त कदम?
कई देशों ने बच्चों को सोशल मीडिया के हानिकारक प्रभावों से बचाने के लिए कठोर कदम उठाए हैं। कुछ स्थानों पर आयु सीमा निर्धारित की गई है, जबकि अन्य में माता-पिता की सहमति अनिवार्य की गई है। बच्चों में 'फियर ऑफ मिसिंग आउट' (FOMO) की भावना तेजी से बढ़ रही है, जिससे वे दूसरों की पोस्ट और जीवनशैली देखकर खुद को पीछे समझने लगते हैं। यह स्थिति धीरे-धीरे उनके आत्मविश्वास को कमजोर कर रही है और मानसिक दबाव को बढ़ा रही है। इसी कारण से, विश्व स्तर पर सरकारें बच्चों की ऑनलाइन सुरक्षा को लेकर सतर्क हो गई हैं।
ऑस्ट्रेलिया का महत्वपूर्ण निर्णय
ऑस्ट्रेलिया ने बच्चों की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक महत्वपूर्ण कदम उठाया है। वहां 16 साल से कम उम्र के बच्चों के लिए सोशल मीडिया अकाउंट बनाने पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया गया है। सोशल मीडिया कंपनियों को यह सुनिश्चित करना होगा कि 16 साल से कम उम्र का बच्चा उनके प्लेटफॉर्म पर न हो। यदि कंपनियां इस नियम का पालन नहीं करती हैं, तो उन पर भारी जुर्माना लगाया जाएगा। यह कदम बच्चों के मानसिक स्वास्थ्य की सुरक्षा के लिए उठाया गया है।
फ्रांस का एज वेरिफिकेशन कानून
फ्रांस में 15 साल से कम उम्र के बच्चों को सोशल मीडिया अकाउंट बनाने के लिए माता-पिता की अनुमति अनिवार्य कर दी गई है। सरकार ने सोशल मीडिया कंपनियों को आदेश दिया है कि वे सख्त एज वेरिफिकेशन सिस्टम लागू करें। इसका उद्देश्य बच्चों के स्क्रीन टाइम को सीमित करना और उन्हें साइबरबुलिंग जैसे खतरों से बचाना है।
ब्रिटेन का ऑनलाइन सुरक्षा अधिनियम
ब्रिटेन ने सीधे तौर पर बैन नहीं लगाया, लेकिन 'ऑनलाइन सेफ्टी एक्ट' के माध्यम से सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को बच्चों की सुरक्षा के लिए सख्त मानक तय करने के लिए बाध्य किया है। इसमें बच्चों के लिए सुरक्षित सामग्री, प्राइवेसी की सुरक्षा और उनकी उम्र के अनुसार कंटेंट उपलब्ध कराना शामिल है।
जर्मनी का पैरेंटल कंसेंट नियम
जर्मनी ने भी बच्चों की सुरक्षा को गंभीरता से लिया है। वहां 16 साल से कम उम्र के बच्चे सोशल मीडिया का उपयोग तभी कर सकते हैं जब उनके माता-पिता इसकी अनुमति दें। इस कानून का उद्देश्य ऑनलाइन धोखाधड़ी और शोषण से बच्चों को बचाना है।
नॉर्वे की नई योजना
नॉर्वे ने भी बच्चों की सुरक्षा की दिशा में कदम उठाए हैं। यहां सोशल मीडिया की न्यूनतम आयु सीमा 13 साल से बढ़ाकर 15 साल करने की योजना बनाई जा रही है। सरकार का मानना है कि इस बदलाव से बच्चे हानिकारक सामग्री और डिजिटल लत से बच पाएंगे।
चीन का सख्त नियम
चीन बच्चों की डिजिटल सुरक्षा के मामले में सबसे सख्त माना जाता है। वहां 18 साल से कम उम्र के बच्चों को ऑनलाइन गेम खेलने का समय प्रति सप्ताह केवल तीन घंटे तक सीमित कर दिया गया है। इतना ही नहीं, सरकार बच्चों के ऑनलाइन कंटेंट की निगरानी भी करती है ताकि वे अनुचित सामग्री से दूर रह सकें।
यूरोपीय संघ (EU) की नीति
यूरोपीय संघ के देशों ने डेटा सुरक्षा कानून (GDPR) लागू किया है। इसके तहत 16 साल से कम उम्र के बच्चों के व्यक्तिगत डेटा को प्रोसेस करने के लिए माता-पिता की सहमति जरूरी है। हालांकि, सदस्य देशों को इसमें बदलाव करने का अधिकार है। उदाहरण के लिए, बेल्जियम में यह सीमा 13 साल तय की गई है।
चुनौतियाँ और समाधान
हालांकि ये कानून बच्चों की सुरक्षा के लिए बनाए गए हैं, लेकिन इन्हें लागू करना आसान नहीं है। सोशल मीडिया कंपनियों के लिए सटीक एज वेरिफिकेशन सिस्टम तैयार करना एक तकनीकी चुनौती है। कई बार बच्चे गलत जानकारी देकर अकाउंट बना लेते हैं। इसके बावजूद, सरकारें बच्चों की सुरक्षा को प्राथमिकता देती हुई लगातार नियमों को और कड़ा बना रही हैं।
निष्कर्ष
स्पष्ट है कि सोशल मीडिया बच्चों के लिए अवसरों का मंच है, लेकिन यह खतरे का जाल भी है। ऑस्ट्रेलिया, फ्रांस, जर्मनी, नॉर्वे, चीन और यूरोपीय संघ जैसे देशों ने बच्चों की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए हैं, जो अन्य देशों के लिए प्रेरणादायक हैं। भारत जैसे देशों में भी इस दिशा में ठोस और कड़े कानून बनाना आवश्यक है, ताकि आने वाली पीढ़ी डिजिटल प्लेटफॉर्म्स का उपयोग सुरक्षित और जिम्मेदारी से कर सके।