Newzfatafatlogo

हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: दत्तक पुत्रों के संपत्ति अधिकार

हाल ही में, हाईकोर्ट ने दत्तक पुत्रों के संपत्ति अधिकार पर एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। यह मामला याचिकाकर्ता जगदीश से संबंधित है, जिसे उसके मामा ने गोद लिया था। कोर्ट ने यह स्पष्ट किया कि पिता की संपत्ति पर सभी संतानें समान रूप से हकदार होती हैं, चाहे वे दत्तक पुत्र हों या जैविक। जानें इस मामले की पूरी जानकारी और कोर्ट के निर्णय के पीछे की कानूनी प्रक्रिया।
 | 
हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय: दत्तक पुत्रों के संपत्ति अधिकार

हाईकोर्ट का निर्णय: सभी बच्चों को पिता की संपत्ति पर समान अधिकार


हाईकोर्ट का निर्णय: पिता की संपत्ति पर उनके सभी संतानें समान रूप से हकदार होती हैं। कई बार माता-पिता अपने परिवार में से किसी बच्चे को गोद लेते हैं। लेकिन यह सवाल उठता है कि क्या दत्तक बच्चे को भी उनकी संपत्ति पर पूरा अधिकार प्राप्त होता है। इस विषय पर हाईकोर्ट ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण फैसला सुनाया है।

मामले का संक्षिप्त विवरण-

यह मामला याचिकाकर्ता जगदीश से संबंधित है, जिसे उसके मामा ने गोद लिया था। जब याचिकाकर्ता के पिता (जगदीश के मामा) का निधन हुआ, तो उनकी बहनों ने उत्तर प्रदेश चकबंदी अधिनियम 1953 की धारा 12 के तहत अदालत में आवेदन दिया। याचिकाकर्ता ने 25 अक्टूबर 1974 को किए गए गोदनामे को सबूत के रूप में पेश करते हुए खुद को मृतक का दत्तक पुत्र बताया और कहा कि उसे अपने पिता की संपत्ति का अधिकार है।

कानूनी दृष्टिकोण-

याचिकाकर्ता ने यह दावा किया कि उसके पिता की संपत्ति में मौसियों का कोई अधिकार नहीं है। चकबंदी अधिकारी ने याचिकाकर्ता के पक्ष में निर्णय दिया। इसके बाद मौसियों ने इस निर्णय के खिलाफ अपील की, जिसे स्वीकार कर लिया गया। याचिकाकर्ता ने पुनरीक्षण याचिका दायर की, लेकिन उसे खारिज कर दिया गया। अंततः याचिकाकर्ता ने हाईकोर्ट में याचिका दायर की।

वाद और प्रतिवाद की दलीलें 

याचिकाकर्ता के वकील ने कहा कि 1 जनवरी 1977 से पहले जो गोदनामा हुआ था, उसे रजिस्ट्रेशन की आवश्यकता नहीं थी। जब गोदनामा हुआ था, तब याचिकाकर्ता के पिता की पत्नी ने कोई विरोध नहीं किया था। अदालत ने यह आदेश बिना इन तथ्यों पर ध्यान दिए दिए थे। वहीं, प्रतिवादी ने कहा कि उस समय गोद लेने की प्रक्रिया संदिग्ध थी और सही प्रक्रिया का पालन नहीं किया गया था। जब याचिकाकर्ता को गोद लिया गया था, तब मृतक की पत्नी जीवित थी, लेकिन उसकी सहमति नहीं ली गई। इसलिए याचिकाकर्ता का संपत्ति पर कोई अधिकार नहीं है।

हाईकोर्ट का निर्णय 

कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद चकबंदी अधिकारी के दस्तावेजों की गहनता से जांच की। कोर्ट ने माना कि 1 जनवरी 1977 से पहले हुए गोदनामे का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य नहीं था। हाईकोर्ट ने निर्णय दिया कि याचिकाकर्ता जगदीश को मृतक की सम्पूर्ण चल और अचल संपत्ति का अधिकार है।