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हिमालयी आपदाओं का समाधान: सख्त कानूनों और सुरक्षित निर्माण की आवश्यकता

उत्तरकाशी और अन्य हिमालयी क्षेत्रों में बढ़ती आपदाओं ने यह स्पष्ट कर दिया है कि अब केवल बातों से काम नहीं चलेगा। सख्त कानूनों और सुरक्षित निर्माण की आवश्यकता है। इस लेख में हम प्राकृतिक आपदाओं के कारणों, उनके प्रभाव और आवश्यक कदमों पर चर्चा करेंगे। जानें कि कैसे अवैध निर्माण और जलवायु परिवर्तन इन क्षेत्रों को प्रभावित कर रहे हैं और हमें क्या कदम उठाने की आवश्यकता है।
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हिमालयी आपदाओं का समाधान: सख्त कानूनों और सुरक्षित निर्माण की आवश्यकता

आपदाओं का संकेत

उत्तरकाशी और अन्य हिमालयी क्षेत्रों में आई आपदाएं स्पष्ट रूप से यह दर्शा रही हैं कि अब केवल बातों से काम नहीं चलेगा। हमें BESZ जैसे कानूनों को सख्ती से लागू करना होगा। अवैध निर्माण पर रोक लगाना, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करना, सड़क निर्माण में सुरक्षित तकनीकों का उपयोग करना, ढलानों को स्थिर करना, मौसम की निगरानी तंत्र को बढ़ाना और स्थानीय चेतावनी प्रणाली विकसित करना अत्यंत आवश्यक है।


प्राकृतिक सौंदर्य और आपदाएं

भारत के पहाड़ी क्षेत्र, विशेषकर उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश, अपनी अद्भुत सुंदरता और जैव विविधता के लिए जाने जाते हैं। ये केवल पर्यटन स्थल नहीं हैं, बल्कि गंगा, यमुना और अन्य प्रमुख नदियों के स्रोत भी हैं, जो देश की जीवनरेखा हैं। हाल के वर्षों में यहां प्राकृतिक आपदाओं की घटनाएं बढ़ती जा रही हैं। उत्तरकाशी में हाल की बाढ़ ने यह सवाल उठाया है कि क्या हम अपने पर्यावरण और संसाधनों के प्रति लापरवाह हो रहे हैं। यह घटना, जो भगीरथी पर्यावरण-संवेदनशील क्षेत्र में हुई, अव्यवस्थित निर्माण और पर्यावरणीय असंतुलन के कारण और भी गंभीर हो गई।


धराली गांव की त्रासदी

5 अगस्त 2025 को उत्तरकाशी के धराली गांव में बादल फटने से भारी तबाही हुई। खीरगंगा नदी के जलग्रहण क्षेत्र में आई इस आपदा ने कई घरों, होटलों, दुकानों और सड़कों को बहा दिया। इस घटना में चार लोगों की जान गई और 50 से 100 लोग लापता हो गए। यह क्षेत्र 2012 से BESZ के अंतर्गत है, जहां गंगा के पर्यावरण और जलस्रोतों की रक्षा के लिए विशेष नियम लागू हैं। लेकिन नदी किनारे अनियोजित निर्माण ने इस त्रासदी को और बढ़ा दिया।


पिछले वर्षों की घटनाएं

यह घटना अकेली नहीं है। उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में पिछले वर्षों में बाढ़, भूस्खलन और बादल फटने की घटनाएं बार-बार हुई हैं। 2013 में केदारनाथ बाढ़ में 5,700 से अधिक लोगों की जान गई थी। 2021 में चमोली में बाढ़ और हिमस्खलन में 200 से अधिक लोग मारे गए या लापता हुए। जलवायु परिवर्तन के कारण ग्लेशियरों का पिघलना और अचानक पानी छोड़ने की घटनाएं बढ़ रही हैं, लेकिन अव्यवस्थित विकास और परियोजनाओं का गलत प्रबंधन भी इन आपदाओं को और गंभीर बना रहा है।


भू-संरचना की संवेदनशीलता

हिमालय की भू-संरचना अत्यंत नाजुक है। यह भूकंप और भूस्खलन के लिए संवेदनशील है। इसके बावजूद चारधाम जैसी सड़क परियोजनाएं, बड़े पैमाने पर बांध और अनियंत्रित पर्यटन इस क्षेत्र की स्थिरता को कमजोर कर रहे हैं। उत्तरकाशी में धरासू–गंगोत्री सड़क का चौड़ीकरण और हिना–टेखला के बीच 6,000 देवदार पेड़ों की कटाई का प्रस्ताव पर्यावरणविदों की चिंता बढ़ा रहा है।


सुप्रीम कोर्ट की चिंताएं

चारधाम परियोजना को लेकर सुप्रीम कोर्ट में कई मामले चल रहे हैं। विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि पहाड़ों की कटाई, जंगलों का नाश और नदी किनारे निर्माण, इलाके को अस्थिर बना रहे हैं। 2023 का सिल्क्यारा सुरंग हादसा भी बताता है कि बिना उचित पर्यावरणीय मूल्यांकन के परियोजनाएं मंजूर करना कितना खतरनाक हो सकता है।


हिमाचल प्रदेश की स्थिति

हिमाचल प्रदेश में भी हालात अलग नहीं हैं। शिमला में शोघी–धल्ली राजमार्ग के लिए पहाड़ काटने से भूस्खलन का खतरा बढ़ गया है। कभी 30,000 लोगों के लिए बना यह शहर अब 3 लाख की आबादी और लाखों पर्यटकों का दबाव झेल रहा है। कुल्लू–मनाली में भी अनियोजित निर्माण और भीड़ ने पर्यावरण को संकट में डाल दिया है।


जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव स्पष्ट है। ISRO के अनुसार, 1988 से 2023 तक उत्तराखंड में 12,319 भूस्खलन दर्ज किए गए, जिनमें से 1,100 से अधिक में GLOF का खतरा था। उत्तरकाशी की हालिया बाढ़ में भी विशेषज्ञों ने इस संभावना की ओर इशारा किया। वातावरण में नमी बढ़ने से बादल फटने और भारी बारिश की घटनाएं भी बढ़ी हैं। IMD के अनुसार, उत्तरकाशी में 43 मिमी बारिश हुई, जो बादल फटने की परिभाषा से कम है, लेकिन लगातार तीन दिन की बारिश ने मिट्टी को इतना भिगो दिया कि मलबा और बाढ़ का खतरा बढ़ गया।


पर्यटन और उसके प्रभाव

पर्यटन इन राज्यों की अर्थव्यवस्था का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। 2023 में चारधाम यात्रा में 56 लाख से अधिक श्रद्धालु आए, जिससे होटल, लॉज और सड़क निर्माण में तेजी आई। लेकिन यह निर्माण नदी किनारों और अस्थिर ढलानों पर हुआ, जिसने प्राकृतिक सुरक्षा कवच को तोड़ दिया। 2023 में जोशीमठ में 700 से अधिक घरों में दरारें आईं, क्योंकि यह नगर प्राचीन भूस्खलन मलबे पर बसा है और आसपास की परियोजनाओं ने इसकी जमीन को कमजोर कर दिया।


आवश्यक कदम

उत्तरकाशी और अन्य हिमालयी क्षेत्रों की आपदाएं स्पष्ट संकेत दे रही हैं कि अब केवल बातों से काम नहीं चलेगा। BESZ जैसे कानूनों को सख्ती से लागू करना होगा। अवैध निर्माण पर रोक लगाना, दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करना, सड़क निर्माण में सुरक्षित तकनीक अपनाना, ढलानों को स्थिर करना, मौसम निगरानी तंत्र को बढ़ाना और स्थानीय चेतावनी प्रणाली विकसित करना आवश्यक है। वनों की कटाई रोककर बड़े पैमाने पर पौधारोपण करना होगा और पर्यटन को नियंत्रित कर पर्यावरण-अनुकूल मॉडल अपनाना होगा।


हिमालय की सांस्कृतिक धरोहर

हिमालय केवल पर्यटन स्थल नहीं है, बल्कि हमारी सांस्कृतिक और प्राकृतिक धरोहर का हिस्सा है। इसे बचाना सरकार, स्थानीय समुदाय और हर नागरिक की जिम्मेदारी है। यदि हम अभी भी नहीं चेते, तो आने वाले वर्षों में ऐसी त्रासदियां और बढ़ेंगी, और इसकी कीमत हमें ही चुकानी पड़ेगी।