उच्च न्यायालय का महत्वपूर्ण निर्णय: प्रमोशन मौलिक अधिकार नहीं
महत्वपूर्ण निर्णय का सारांश
पंजाब और हरियाणा उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है, जिसने सरकारी कर्मचारियों के प्रमोशन के अधिकार पर बहस को नया मोड़ दिया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि किसी कर्मचारी का प्रमोशन मौलिक अधिकार नहीं है। यह फैसला पटियाला की एक महिला कर्मचारी की याचिका पर आया, जिन्होंने प्रमोशन में नाम न शामिल करने का आरोप लगाया था।
मुकदमे की पृष्ठभूमि
महिला ने 1990 में टाउन एंड कंट्री प्लानिंग डिपार्टमेंट में कार्य करना शुरू किया और 2023 तक वह डिस्ट्रिक्ट टाउन प्लानर के पद तक पहुंच गईं। हालांकि, विभाग ने उनके प्रमोशन पर विचार नहीं किया, जिससे वह निराश होकर अदालत का दरवाजा खटखटाने को मजबूर हुईं।
विकलांगता सर्टिफिकेट का मुद्दा
महिला ने सेवा के दौरान विकलांगता सर्टिफिकेट प्रस्तुत किया, जिसमें अस्थायी सुनने की अक्षमता 41 प्रतिशत बताई गई थी। बाद में एक और सर्टिफिकेट में यह प्रतिशत 53 दिखाया गया। विभाग ने इन सर्टिफिकेटों के आधार पर संदेह जताया और उन्हें 58 वर्ष की उम्र में रिटायर करने का निर्णय लिया।
कोर्ट का निर्णय
जस्टिस नमित कुमार की अदालत ने कहा कि प्रमोशन कोई मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि, प्रमोशन के लिए नाम पर विचार करना एक महत्वपूर्ण अधिकार है। अदालत ने विभाग के निर्णय को सही ठहराया और कहा कि प्रमोशन मिलना अनिवार्य नहीं है।
भत्ते और अन्य याचिकाएं
महिला को सेवा के दौरान सीनियर टाउन प्लानर के कार्यभार सौंपे गए थे। अदालत ने भत्ते और समय पर भुगतान के लिए याचिका को स्वीकार किया, जो महिला के पक्ष में एक सकारात्मक कदम है। इस फैसले से भविष्य में कर्मचारियों को न्याय मिलने की संभावना बढ़ गई है।
