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नवीनतम तकनीक से समय से पहले जन्मे शिशुओं को मिलेगी नई जिंदगी

वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक विकसित की है, जिसे 'एक्वावॉम्ब' कहा जाता है, जो समय से पहले जन्मे शिशुओं के लिए जीवनदायिनी साबित हो सकती है। यह तकनीक गर्भावस्था के 22 से 24 हफ्तों के बीच जन्म लेने वाले बच्चों के लिए डिज़ाइन की गई है। इसमें एक पारदर्शी तरल से भरा टैंक होता है, जिसमें शिशु तैरता है और आवश्यक पोषक तत्व एक कृत्रिम प्लेसेंटा के माध्यम से पहुँचाए जाते हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक चिकित्सा क्षेत्र में नई नैतिक बहस को जन्म दे सकती है। जानें इस तकनीक के बारे में और अधिक जानकारी।
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नवीनतम तकनीक से समय से पहले जन्मे शिशुओं को मिलेगी नई जिंदगी

जीवनरक्षक तकनीक का विकास


वैज्ञानिकों ने एक नई तकनीक का निर्माण किया है, जो समय से पहले जन्मे बच्चों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण साबित हो सकती है। नीदरलैंड और जर्मनी के शोधकर्ताओं ने एक कृत्रिम गर्भ विकसित किया है, जिसे 'एक्वावॉम्ब' कहा जाता है। यह तकनीक उन शिशुओं के लिए बनाई गई है, जो गर्भावस्था के 22 से 24 हफ्तों के बीच जन्म लेते हैं, जब उनकी जीवित रहने की संभावना बहुत कम होती है।


यह तकनीक कैसे कार्य करती है?

इस प्रणाली में एक पारदर्शी तरल से भरा टैंक होता है, जो आकार में एक एक्वेरियम के समान है और इसका तापमान 37.6 डिग्री सेल्सियस पर स्थिर रहता है। शिशु एक नरम, दोहरी परत वाली झिल्ली के अंदर तैरता है, जबकि ऑक्सीजन और अन्य आवश्यक पोषक तत्व एक कृत्रिम प्लेसेंटा के माध्यम से प्रदान किए जाते हैं।


विशेषज्ञों की राय

आइंडहोवन प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फ्रैंस वैन डे वोसे ने कहा, "सबसे बड़ी चुनौती फेफड़ों की है। यह एक साथ दस जलती हुई गेंदों को संभालने जैसा है, जिनमें से एक भी गिरनी नहीं चाहिए।" यदि यह तकनीक सफल होती है, तो यह समय से पहले जन्मे शिशुओं के जीवन में एक नई क्रांति ला सकती है। वर्तमान में, ऐसे बच्चे वेंटिलेटर और इन्क्यूबेटरों पर निर्भर रहते हैं, जिससे उनके फेफड़ों को स्थायी नुकसान का खतरा होता है।


माता-पिता के लिए जुड़ाव

एक्वावॉम्ब की सह-संस्थापक और सीईओ मिर्थे वैन डेर वेन ने कहा, "हम केवल जीवन बचाने का प्रयास नहीं कर रहे हैं, बल्कि माता-पिता को अपने बच्चे के साथ जुड़ाव का अनुभव भी कराना चाहते हैं।" कुछ प्रोटोटाइप में ऐसे पोर्ट शामिल हैं, जिनसे माता-पिता अपने बच्चे को छू सकते हैं, और एक गर्भाशय फ़ोन भी है, जो माता-पिता की आवाज़ और दिल की धड़कन को एमनियोटिक द्रव के माध्यम से प्रसारित करता है।


नैतिक और भावनात्मक चुनौतियाँ

विशेषज्ञों का मानना है कि यह तकनीक चिकित्सा क्षेत्र में नई नैतिक और भावनात्मक बहस को जन्म दे सकती है। डरहम विश्वविद्यालय की प्रोफेसर एलिज़ाबेथ क्लो रोमानिस ने कहा, "यह मानव विकास का एक नया चरण होगा, जिसकी अभी तक कोई कानूनी या नैतिक परिभाषा नहीं है।" अमेरिकी खाद्य एवं औषधि प्रशासन (FDA) ने 2023 में इस तकनीक के पहले मानव परीक्षण के लिए एक समिति का गठन किया है।


भविष्य की संभावनाएँ

अमेरिकी कंपनी विटारा बायोमेडिकल ने इसी तरह की बायोबैग तकनीक पर काम करने के लिए 125 मिलियन डॉलर जुटाए हैं, जिससे संकेत मिलता है कि जल्द ही नैदानिक परीक्षण शुरू हो सकते हैं। हालाँकि, जैव-नैतिकता विशेषज्ञ चेतावनी देते हैं कि यह तकनीक लाखों लोगों की जान बचा सकती है, लेकिन यह गर्भावस्था और मातृत्व की पारंपरिक परिभाषाओं को भी चुनौती दे सकती है।