अहंकार: ओशो के दृष्टिकोण से आत्मज्ञान की ओर एक यात्रा

अहंकार का महत्व और प्रभाव
अहंकार एक ऐसा तत्व है जो हमारे जीवन के हर क्षेत्र में गहराई से जुड़ा हुआ है। यह केवल हमारे व्यक्तित्व का हिस्सा नहीं है, बल्कि यह हमारी सोच, व्यवहार और संबंधों को भी प्रभावित करता है। प्रसिद्ध गुरु और दार्शनिक ओशो के अनुसार, अहंकार अचानक नहीं बनता, बल्कि यह हमारी मानसिक प्रक्रियाओं, सामाजिक परिवेश और बचपन के अनुभवों का परिणाम होता है।
अहंकार की उत्पत्ति
ओशो का मानना है कि अहंकार का संबंध सुरक्षा की भावना से है। जब कोई व्यक्ति अपने अस्तित्व को खतरे में महसूस करता है या अपनी असफलताओं का सामना नहीं करना चाहता, तब अहंकार का जन्म होता है। यह एक प्रकार का सुरक्षा कवच है, जो व्यक्ति को आलोचना और अस्वीकृति से बचाता है।
बचपन का प्रभाव
ओशो के अनुसार, अहंकार की जड़ें अक्सर बचपन में होती हैं। माता-पिता और समाज की अपेक्षाएं बच्चों में असुरक्षा पैदा कर सकती हैं। जब बच्चे को लगता है कि वह पर्याप्त नहीं है या उसकी कोशिशों की सराहना नहीं होती, तब वह अहंकार विकसित करता है। यह प्रवृत्ति वयस्कों में भी देखी जा सकती है।
तुलना और प्रतिस्पर्धा
ओशो का यह भी कहना है कि अहंकार की वृद्धि हमारी तुलना की आदत से होती है। जब व्यक्ति खुद को दूसरों से तुलना करता है और अपनी पहचान को उनकी उपलब्धियों से जोड़ता है, तो अहंकार बढ़ता है। यह प्रतिस्पर्धा व्यक्ति के रिश्तों को भी प्रभावित करती है।
सत्ता की लालसा
समाज में अहंकार का एक अन्य कारण सत्ता और नियंत्रण की लालसा है। कई लोग अपने अधिकार और स्थिति को बनाए रखने के लिए अहंकार का सहारा लेते हैं। ओशो का कहना है कि जब व्यक्ति को लगता है कि उसकी प्रतिष्ठा खतरे में है, तब वह अपने अहंकार को और मजबूत कर लेता है।
अहंकार का समाधान
ओशो के अनुसार, अहंकार का समाधान संभव है। पहला कदम आत्मनिरीक्षण है। जब व्यक्ति अपने भीतर झांकता है और समझता है कि उसका अहंकार कैसे प्रकट हो रहा है, तभी वह इसे नियंत्रित कर सकता है। ध्यान और आत्मसाक्षात्कार की तकनीकें भी अहंकार को कम करने में मदद करती हैं।
अहंकार का सकारात्मक पहलू
ओशो का मानना है कि अहंकार केवल नकारात्मक नहीं है। यह तब भी प्रकट होता है जब व्यक्ति अपनी पहचान और आत्मसम्मान को बनाए रखना चाहता है। समस्या तब होती है जब अहंकार अत्यधिक बढ़ जाता है और रिश्तों को प्रभावित करने लगता है।
स्वतंत्रता और संतुलन की ओर
अंततः, ओशो यह सिखाते हैं कि अहंकार का सामना करके और उसकी जड़ों को समझकर ही व्यक्ति सच्ची स्वतंत्रता और आत्मशांति पा सकता है। यह एक सतत प्रक्रिया है, जिसमें व्यक्ति अपने भीतर के भय और असुरक्षा को पहचानता है। जब यह समझ विकसित होती है, तब अहंकार कम होता है और व्यक्ति करुणा और समझ विकसित करता है।