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अहंकार: जीवन में इसके प्रभाव और मुक्ति के उपाय

इस लेख में हम अहंकार की भावना के मानव जीवन पर पड़ने वाले प्रभावों की चर्चा करेंगे। जानेंगे कि कैसे यह भावना व्यक्ति को आत्मकेंद्रित और संवेदनहीन बना देती है। इसके अलावा, हम यह भी जानेंगे कि अहंकार से मुक्ति के लिए क्या उपाय किए जा सकते हैं। क्या आप जानना चाहते हैं कि अहंकार को कैसे त्यागा जा सकता है और सच्चे ज्ञान की प्राप्ति कैसे की जा सकती है? पढ़ें पूरा लेख!
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अहंकार: जीवन में इसके प्रभाव और मुक्ति के उपाय

अहंकार का प्रभाव


वर्तमान समय में, 'अहंकार' एक ऐसी भावना है जो मानव जीवन को गहराई से प्रभावित कर रही है। चाहे वह राजनीति हो, कॉर्पोरेट क्षेत्र या पारिवारिक जीवन, हर जगह अहंकार की छाया देखी जा सकती है। यह एक मानसिक जाल है, जो व्यक्ति को उसकी वास्तविकता से दूर कर देता है और उसे एक झूठे 'मैं' के भ्रम में उलझा देता है। अहंकार तब जन्म लेता है जब कोई व्यक्ति अपनी उपलब्धियों, धन, ज्ञान या रूप पर अत्यधिक गर्व करने लगता है। शुरुआत में यह आत्मविश्वास जैसा प्रतीत होता है, लेकिन धीरे-धीरे यह व्यक्ति को आत्मकेंद्रित, जिद्दी और संवेदनहीन बना देता है। यही कारण है कि धर्म, दर्शन और मनोविज्ञान में अहंकार को त्यागने की सलाह दी गई है।


समाज में अहंकार का बढ़ता प्रभाव



आज के समाज में, लोग अपनी पहचान को दूसरों से बेहतर साबित करने की होड़ में लगे हुए हैं। सोशल मीडिया पर अपनी सफलताओं का प्रदर्शन, दूसरों की तुलना करना और उन्हें नीचा दिखाने की प्रवृत्ति बढ़ती जा रही है। यह सब अहंकार को बढ़ावा देने का एक साधन बन गया है। इसके परिणामस्वरूप रिश्तों में दरारें, पारिवारिक विघटन और मानसिक तनाव तेजी से बढ़ रहे हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि जब कोई व्यक्ति अपने 'अहं' को सर्वोपरि मानने लगता है, तो वह दूसरों की बात सुनना बंद कर देता है। इससे संवाद की गुंजाइश खत्म हो जाती है और मतभेद, संघर्ष और अलगाव की स्थितियां उत्पन्न होती हैं।


आध्यात्मिक दृष्टिकोण से अहंकार

हिंदू धर्म, बौद्ध दर्शन और जैन परंपरा में अहंकार को आत्मिक विकास में सबसे बड़ा अवरोधक माना गया है। भगवद गीता में श्रीकृष्ण अर्जुन से कहते हैं – "जिसके भीतर अहंकार नहीं है, वही सच्चे ज्ञान को प्राप्त कर सकता है।"


संत कबीर दास भी कहते हैं: "जब मैं था तब हरि नहीं, अब हरि हैं मैं नाहिं। सब अंधियारा मिट गया, जब दीपक देखा माहिं।" यह पंक्तियां स्पष्ट करती हैं कि जब तक 'मैं' यानी अहंकार जीवित रहता है, तब तक ईश्वर या सत्य की अनुभूति नहीं हो सकती।


राजनीति और अहंकार: एक खतरनाक गठबंधन

राजनीति में अहंकार अक्सर सत्ता के साथ जुड़ जाता है। जब नेता जनसेवा के भाव से हटकर केवल पद, प्रतिष्ठा और शक्ति के मोह में डूब जाते हैं, तब उनके निर्णय आम जनता के लिए विनाशकारी हो सकते हैं। इतिहास इस बात का गवाह है कि कई साम्राज्य केवल एक व्यक्ति के अहंकार के कारण समाप्त हो गए।


अहंकार से मुक्ति के उपाय

विशेषज्ञों का मानना है कि अहंकार से मुक्ति तभी संभव है जब व्यक्ति आत्ममंथन करे और स्वयं को नश्वर माने। ध्यान, सेवा, और विनम्रता ऐसे तीन गुण हैं जो अहंकार को धीरे-धीरे समाप्त कर सकते हैं। इसके साथ ही, जीवन में बार-बार यह याद रखना चाहिए कि सब कुछ क्षणिक है – चाहे वह पद हो, पैसा हो या प्रसिद्धि।