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आयुध पूजा 2025: तिथि, महत्व और महाभारत की कहानी

आयुध पूजा 2025 का पर्व 1 अक्टूबर को मनाया जाएगा, जो नवरात्रि का अंतिम दिन है। इस दिन औजारों और उपकरणों की पूजा की जाती है, जो हमारे दैनिक जीवन में महत्वपूर्ण होते हैं। यह त्योहार मां दुर्गा की महिषासुर पर विजय और महाभारत की कहानियों से जुड़ा है। जानें इस पर्व का महत्व और शुभ मुहूर्त, ताकि आप इस अवसर को सही तरीके से मना सकें।
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आयुध पूजा 2025: तिथि, महत्व और महाभारत की कहानी

आयुध पूजा 2025 की तिथि और समय

आयुध पूजा 2025 की तिथि और समय: आयुध पूजा एक महत्वपूर्ण हिंदू त्योहार है, जिसमें दैनिक जीवन में उपयोग होने वाले औजारों और उपकरणों की पूजा की जाती है। यह पर्व नवरात्रि के अंतिम दिन, महानवमी पर मनाया जाता है, जो दशहरे से एक दिन पहले आता है।


आयुध पूजा 2025: तिथि और शुभ मुहूर्त

इस वर्ष, आयुध पूजा 1 अक्टूबर, बुधवार को मनाई जाएगी। यह नवरात्रि का अंतिम दिन होगा, और इसके अगले दिन 2 अक्टूबर को दशहरा मनाया जाएगा। नवमी तिथि 30 सितंबर को शाम 6:06 बजे से प्रारंभ होगी और 1 अक्टूबर को शाम 7:01 बजे समाप्त होगी। पूजा का सबसे शुभ समय, जिसे विजय मुहूर्त कहा जाता है, दोपहर 2:28 बजे से 3:16 बजे तक रहेगा। इस समय पूजा करने से विशेष लाभ प्राप्त होता है।


आयुध पूजा का महत्व

आयुध पूजा का अर्थ है अपने कार्य और आजीविका के साधनों को सम्मानित करना। इस दिन लोग उन सभी वस्तुओं की पूजा करते हैं, जो उनके पेशे या अध्ययन में सहायक होती हैं। चाहे वह किताबें हों, संगीत के उपकरण हों, वाहन हों या आधुनिक गैजेट्स जैसे लैपटॉप और स्मार्टफोन। यह त्योहार हमें हमारे कार्य के औजारों के प्रति आभार व्यक्त करने और जीवन में समृद्धि की कामना करने की प्रेरणा देता है।


महाभारत से आयुध पूजा की कहानी

महाभारत के अनुसार, अर्जुन ने अपने निर्वासन के दौरान अपने हथियारों को शमी के पेड़ में छिपा दिया था। निर्वासन समाप्त होने के बाद विजयदशमी के दिन उन्होंने अपने हथियारों को पुनः प्राप्त किया और युद्ध से पूर्व उनकी पूजा की। यही परंपरा आज आयुध पूजा के रूप में मनाई जाती है, जिसमें हथियारों और औजारों को श्रद्धा के साथ पूजा जाता है।


नवरात्रि और मां दुर्गा की कहानी

आयुध पूजा का संबंध मां दुर्गा की महिषासुर पर विजय से भी है। कहा जाता है कि दानव महिषासुर को हराने के बाद मां दुर्गा ने अपने हथियार रख दिए थे। इसके बाद देवताओं ने उनके हथियारों की पूजा की। यहीं से शक्ति और कार्य के औजारों की पूजा की परंपरा शुरू हुई, जो आज भी आयुध पूजा के रूप में मनाई जाती है।