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ओशो के दृष्टिकोण से प्रेम और मोह का अंतर

ओशो के अनुसार, प्रेम और मोह में गहरा अंतर है। प्रेम स्वतंत्रता और सहजता का प्रतीक है, जबकि मोह बंधन और स्वार्थ से भरा होता है। ओशो का मानना है कि सच्चा प्रेम बिना अपेक्षाओं के होता है, जबकि मोह में अधिकार और नियंत्रण की भावना होती है। इस लेख में ओशो के विचारों के माध्यम से प्रेम और मोह की गहराई को समझने का प्रयास किया गया है। जानें कैसे प्रेम एक आंतरिक यात्रा है और इसे कैसे जीना चाहिए।
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ओशो के दृष्टिकोण से प्रेम और मोह का अंतर

प्रेम और मोह: एक गहन विश्लेषण


प्रेम और मोह, ये दो शब्द भारतीय संस्कृति और दर्शन में लंबे समय से चर्चा का विषय रहे हैं। अक्सर लोग इन्हें एक समान समझ लेते हैं, लेकिन ओशो के अनुसार, ये दोनों एक-दूसरे के विपरीत हैं। प्रेम स्वतंत्रता का प्रतीक है, जबकि मोह बंधन का। प्रेम शुद्ध होता है, जबकि मोह अपेक्षाओं से भरा होता है। ओशो ने प्रेम के बारे में जो विचार व्यक्त किए हैं, वे आज भी उतने ही प्रासंगिक हैं। उनका मानना है कि जब तक प्रेम को 'स्वामित्व' या 'किसी को पाना' समझा जाता है, तब तक वह प्रेम नहीं, बल्कि मोह होता है।


मोह: एक भावनात्मक बंधन


ओशो के अनुसार, मोह वह स्थिति है जिसमें व्यक्ति दूसरे पर अधिकार जमाना चाहता है। वह चाहता है कि दूसरा केवल उसी का हो, उसकी इच्छाओं के अनुसार चले। इस प्रकार की भावना रिश्तों को तोड़ती है। मोह में व्यक्ति दूसरे के जीवन पर नियंत्रण चाहता है, जबकि प्रेम में वह दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करता है। मोह में असुरक्षा और भय होता है, जो ईर्ष्या और संदेह को जन्म देता है। ओशो कहते हैं, “जहाँ डर है, वहाँ प्रेम नहीं हो सकता।”


प्रेम: बिना शर्त का स्वीकार

ओशो प्रेम को स्वतंत्रता और सहजता से जोड़ते हैं। उनके अनुसार, “प्रेम तब संभव है जब तुम किसी से कुछ नहीं चाहते, केवल देना जानते हो।” इसका मतलब यह नहीं कि प्रेम में कुछ वापस नहीं मिलता, बल्कि प्रेम में कुछ मांगना नहीं पड़ता। जब प्रेम सच्चा होता है, तो वह अपने आप बहता है। ओशो कहते हैं, “प्रेम फूल की तरह होता है, तुम उसकी खुशबू का आनंद लो, लेकिन उसे उखाड़ने की कोशिश मत करो।”


स्वार्थ बनाम समर्पण

मोह स्वार्थ से उत्पन्न होता है, जबकि प्रेम में समर्पण होता है। ओशो का मानना है कि अधिकांश लोग जो 'प्रेम' कहते हैं, वह वास्तव में 'मोह' होता है। इसलिए रिश्तों में दुख और संघर्ष उत्पन्न होते हैं। यदि व्यक्ति प्रेम की सच्ची प्रकृति को समझे, तो वह न तो संबंधों को बोझ समझेगा, न ही किसी पर निर्भर रहेगा।


ओशो का स्वतंत्र प्रेम

ओशो का प्रेम 'स्वतंत्रता' का प्रतीक है। वह कहते हैं कि प्रेम में दो व्यक्ति एक साथ आ सकते हैं, लेकिन अपनी स्वतंत्रता के साथ। यदि प्रेम बंधन देता है, तो वह प्रेम नहीं है। ओशो के विचार आज के समय में और भी महत्वपूर्ण हैं, जब रिश्तों में अपेक्षाएं और अधिकार की भावना प्रमुख हो जाती है।


आधुनिक संबंधों में ओशो के विचार

आज जब रिश्ते सोशल मीडिया और सतही संवादों तक सीमित होते जा रहे हैं, तब ओशो का ज्ञान और भी उपयोगी बन जाता है। वे हमें सिखाते हैं कि प्रेम एक आंतरिक यात्रा है। यदि आप खुद से प्रेम नहीं कर सकते, तो किसी और से सच्चा प्रेम भी संभव नहीं। ओशो हमें चेताते हैं कि हमें अपने संबंधों को देखना चाहिए – वहाँ स्वतंत्रता है या बंधन?