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ओशो के दृष्टिकोण से प्रेम: बिना शर्त और स्वतंत्रता का अनुभव

प्रेम एक ऐसा शब्द है जिसे हम अक्सर सुनते हैं, लेकिन इसकी गहराई को समझना कठिन होता है। ओशो रजनीश के अनुसार, सच्चा प्रेम बिना शर्त और स्वतंत्रता का अनुभव है। वे कहते हैं कि प्रेम को स्वामित्व और अपेक्षाओं से नहीं जोड़ना चाहिए। जानें कि कैसे प्रेम और ध्यान एक-दूसरे के पूरक हैं और बच्चों को प्रेम की सही शिक्षा कैसे दी जानी चाहिए। इस लेख में ओशो के विचारों के माध्यम से प्रेम की सच्चाई को समझें।
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ओशो के दृष्टिकोण से प्रेम: बिना शर्त और स्वतंत्रता का अनुभव

प्रेम का वास्तविक अर्थ


आज के समय में प्रेम एक ऐसा शब्द है जिसे अक्सर बोला जाता है, लेकिन इसकी गहराई को समझना मुश्किल होता है। लोग इसे स्वामित्व और अपेक्षाओं से जोड़ते हैं। आध्यात्मिक गुरु ओशो रजनीश प्रेम को एक अलग दृष्टिकोण से देखते हैं। उनके अनुसार, "सच्चे प्रेम में कोई बंधन नहीं होता, कोई अपेक्षा नहीं होती, और सबसे महत्वपूर्ण—उसमें स्वार्थ नहीं होता।"


प्रेम और पजेसिवनेस का अंतर


प्रेम या पजेसिवनेस?


ओशो का कहना है कि हम अक्सर प्रेम को गलत समझ लेते हैं। जो हम प्रेम समझते हैं, वह वास्तव में किसी को अपने पास रखने की कोशिश होती है। हम चाहते हैं कि दूसरा व्यक्ति हमारी इच्छाओं को पूरा करे। ओशो कहते हैं, "यदि आप सच में प्रेम करते हैं, तो सामने वाले को स्वतंत्रता दें। यदि वह लौटता है, तो वह आपका है। यदि नहीं, तो वह कभी आपका था ही नहीं।"


बिना शर्त प्रेम का महत्व

ओशो के अनुसार, प्रेम केवल तभी सच्चा होता है जब उसमें कोई शर्तें न हों।


जैसे सूर्य सभी पर समान प्रकाश डालता है, वैसे ही प्रेम भी जाति, धर्म, उम्र या रिश्ते की सीमाओं को नहीं मानता।


वे कहते हैं –


“प्रेम एक रिश्ता नहीं है, यह एक अवस्था है।”


इसका अर्थ है कि प्रेम कोई अनुबंध नहीं, बल्कि एक जीवनशैली है जिसमें आप बिना अपेक्षा के सभी से जुड़ते हैं।


स्वतंत्र प्रेम का फलना-फूलना

ओशो का मानना है कि प्रेम तभी विकसित होता है जब उसे स्वतंत्रता दी जाती है।


वे कहते हैं कि प्रेमी एक-दूसरे की स्वतंत्रता का सम्मान करते हैं, जैसे दो फूल एक बगिया में खिले होते हैं।


वे कहते हैं:


"स्वतंत्रता, सच्चे प्रेम की महक है।"


इसलिए, यदि आप किसी से प्रेम करते हैं, तो उसे उड़ने दें, अपनी दुनिया बनाने दें।


समाज द्वारा थोपा गया प्रेम

ओशो इस बात की आलोचना करते हैं कि समाज ने प्रेम को एक संस्था बना दिया है।


शादी, वफादारी और समाज की सहमति जैसी शर्तें जोड़ दी गई हैं। जबकि प्रेम तो सहज और व्यक्तिगत भावना है।


वे कहते हैं कि समाज ने प्रेम को नियंत्रित करने की कोशिश की है ताकि वह "अनुशासित" लगे। लेकिन प्रेम की सबसे बड़ी खूबी है उसका अनियंत्रित और असीमित होना।


प्रेम और ध्यान का संबंध

ओशो के लिए प्रेम और ध्यान एक-दूसरे के पूरक हैं।


उनका मानना है कि जो व्यक्ति ध्यान करता है, वही प्रेम कर सकता है। ध्यान से व्यक्ति अपने भीतर झांकता है और प्रेम में अहंकार पिघलने लगता है।


वे कहते हैं:


"यदि आप प्रेम कर सकते हैं, तो आप ध्यान कर सकते हैं। यदि आप ध्यान कर सकते हैं, तो असली प्रेम भी संभव है।"


बच्चों को प्रेम की शिक्षा

ओशो इस बात पर जोर देते हैं कि बच्चों को प्रेम की सही शिक्षा दी जानी चाहिए।


ऐसा प्रेम जो स्वाभाविक, बंधनहीन और स्वच्छंद हो। उन्हें यह सिखाना चाहिए कि जब वे किसी से प्रेम करें, तो उसे बदलने की कोशिश न करें।


वे मानते हैं कि हम अपने बच्चों को केवल सामाजिक अनुशासन सिखाते हैं, लेकिन उन्हें यह नहीं बताते कि प्रेम करना एक कला है—जो स्वतंत्रता और आत्मज्ञान से जन्म लेती है।