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ओशो के विचार: अहंकार से मुक्ति का मार्ग

ओशो ने मानव मन की जटिलताओं और आत्मबोध की प्रक्रिया पर गहन विचार प्रस्तुत किए हैं। उनका मानना है कि अहंकार धीरे-धीरे विकसित होता है और यह समाज के प्रभाव से बनता है। वे इसे 'झूठी पहचान' मानते हैं, जो व्यक्ति को उसकी असली आत्मा से काट देती है। ओशो का संदेश है कि ध्यान के माध्यम से व्यक्ति अपने अहंकार को समझ सकता है और इससे मुक्त हो सकता है। जानें कैसे बचपन में सीखे गए अनुभवों से मुक्ति पाकर सच्चे आनंद और शांति की ओर बढ़ा जा सकता है।
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ओशो के विचार: अहंकार से मुक्ति का मार्ग

ओशो का दृष्टिकोण


ओशो, जो मानव मन की जटिलताओं और आत्मज्ञान की प्रक्रिया को गहराई से समझते हैं, ने जीवन, प्रेम, मृत्यु, ध्यान और अहंकार जैसे विषयों पर कई मौलिक विचार प्रस्तुत किए हैं। उनके अनुसार, अहंकार जन्मजात नहीं होता, बल्कि यह धीरे-धीरे विकसित होता है। विशेष रूप से बचपन में, जब बच्चे का विकास हो रहा होता है, तब उसका अहंकार भी आकार लेने लगता है। ओशो के विचार आधुनिक मनोविज्ञान के गहरे पहलुओं को छूते हैं।


शिशु की शुद्ध चेतना


ओशो के अनुसार, जब एक बच्चा जन्म लेता है, तब वह शुद्ध चेतना का प्रतीक होता है। उसमें न तो 'मैं' होता है और न ही 'तू' — वह केवल 'है'। जैसे-जैसे वह समाज और परिवार के संपर्क में आता है, वह अपने बारे में एक छवि बनाना शुरू करता है। यह छवि उस 'मैं' की होती है, जो वास्तव में उसका स्वभाव नहीं, बल्कि समाज द्वारा आरोपित एक नकाब होती है। यही नकाब आगे चलकर उसका अहंकार बनता है।


अहंकार का विकास

जब बच्चा 'माँ' कहता है और माँ उसे प्रेम देती है, तो वह समझता है कि 'माँ मुझे पहचानती है', यानी उसका अस्तित्व है। धीरे-धीरे वह अपने अस्तित्व को शब्दों के माध्यम से परिभाषित करने लगता है — मेरा खिलौना, मेरी किताब, मेरा कमरा — और यहीं से 'मैं' और 'मेरा' की यात्रा शुरू होती है। ओशो के अनुसार, यह यात्रा अहंकार की जड़ों को मजबूत करने लगती है।


समाज और विद्यालय अक्सर बच्चों की तुलना करते हैं, जैसे 'देखो, शर्मा जी का बेटा कितना अच्छा पढ़ता है'। इस तरह की बातें बच्चे के मन में आत्म-छवि और दूसरों से श्रेष्ठ बनने की भावना को जन्म देती हैं। यही भावना आगे चलकर प्रतिस्पर्धा और वर्चस्व की चाह में बदल जाती है, जो अहंकार का सबसे स्पष्ट रूप है।


अहंकार की समझ

ओशो यह स्पष्ट करते हैं कि अहंकार का होना कोई समस्या नहीं है, यदि व्यक्ति इसके स्वभाव को समझ जाए। वे इसे 'झूठी पहचान' कहते हैं — एक नकली दीवार जो हमें अपनी असली आत्मा से काट देती है। अहंकार हमें बाहरी सफलता, दूसरों की प्रशंसा और शक्ति की ओर खींचता है, लेकिन अंदर से हमें खोखला कर देता है।


उनका मानना है कि जब तक व्यक्ति अपनी आंतरिक चेतना से नहीं जुड़ता, तब तक वह अहंकार के अधीन रहता है। ध्यान को वे इस अवस्था से बाहर निकलने का प्रमुख साधन मानते हैं। ध्यान के माध्यम से व्यक्ति खुद को देख सकता है — बिना किसी भूमिका और पहचान के। जैसे ही व्यक्ति खुद को देख पाता है, अहंकार झूठ की तरह गिर जाता है और एक नई रोशनी का अनुभव होता है।


आत्मबोध का महत्व

ओशो के अनुसार, आत्मबोध का पहला कदम यह जानना है कि 'मैं' जो सोचता हूँ, वह मैं वास्तव में नहीं हूँ। जब तक यह बोध नहीं होता, तब तक व्यक्ति अहंकार की जेल में बंद रहता है। यही जेल उसे जीवन के सच्चे आनंद, प्रेम और शांति से दूर रखती है। ओशो हमें न केवल अहंकार के विकास को समझने में मदद करते हैं, बल्कि उससे मुक्त होने का मार्ग भी दिखाते हैं। उनका संदेश स्पष्ट है — 'बचपन में जो कुछ तुमने सीखा, उससे मुक्त हो जाओ। वही तुम्हारे दुखों की जड़ है।'