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करवा चौथ: व्रत की विधि और महत्व

करवा चौथ का पर्व विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर है, जिसमें वे अपने पतियों की लंबी उम्र और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस दिन महिलाएं निर्जला व्रत रखती हैं और सोलह श्रृंगार करती हैं। इस लेख में करवा चौथ की पूजा विधि, सरगी से लेकर चंद्र दर्शन तक की प्रक्रिया का विस्तृत वर्णन किया गया है। जानें कैसे इस विशेष दिन को मनाया जाता है और इसके पीछे का महत्व क्या है।
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करवा चौथ: व्रत की विधि और महत्व

करवा चौथ का महत्व


करवा चौथ का पर्व कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, जिसे हिंदू धर्म में विवाहित महिलाओं के लिए एक महत्वपूर्ण व्रत माना जाता है। इस दिन, महिलाएं अपने पतियों की लंबी उम्र, स्वास्थ्य और सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इस अवसर पर, महिलाएं सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं, जिसका अर्थ है कि वे चाँद के दर्शन तक न तो पानी पीती हैं और न ही भोजन करती हैं। इस पूजा में शिव परिवार के साथ-साथ करवा माता और चंद्र देव की भी पूजा की जाती है। इस वर्ष करवा चौथ पर सिद्ध योग और कृत्तिका नक्षत्र का विशेष संयोग बन रहा है।


पूजा विधि की चरण-दर-चरण प्रक्रिया


व्रत की शुरुआत (सुबह सरगी के साथ)
करवा चौथ का व्रत सास द्वारा दी गई सरगी से आरंभ होता है, जो सूर्योदय से पहले होती है। इसमें फल, मिठाई, सूखे मेवे, सेंवई, पूरी, सब्ज़ी, नारियल आदि शामिल होते हैं। विवाहित महिलाएं इसे श्रद्धा से ग्रहण करती हैं और इस माध्यम से बड़ों का आशीर्वाद प्राप्त करती हैं। इसके बाद, वे पूरे दिन पानी या भोजन नहीं लेती हैं।


पूजा की तैयारी

करवा चौथ की तैयारी
विवाहित महिलाएं निर्जला करवा चौथ का व्रत रखती हैं और साधना करती हैं। श्रृंगार महिलाओं के सौभाग्य का प्रतीक है और व्रत की ऊर्जा को बढ़ाता है। इसलिए, सोलह श्रृंगार करने के बाद, महिलाओं को पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके एक पाटे पर लाल कपड़ा बिछाना चाहिए। उस पर देवी गौरी (पार्वती), भगवान शिव, गणेश और कार्तिकेय की मूर्तियाँ या चित्र स्थापित करें। साथ ही, करवा माता का कैलेंडर या चित्र रखें और मिट्टी या धातु के कलश में जल और थोड़े से गेहूँ या चावल भरकर रखें। करवा चौथ के दोनों ओर सिंदूर से स्वस्तिक का चिन्ह बनाएँ और उसके मुँह पर पवित्र धागा बाँधें। करवा चौथ में अर्घ्य के लिए जल भी भरें।


कथा सुनने और अर्घ्य विधि

कथा सुनने के बाद, महिलाओं को आपस में इस प्रकार पूजन करना चाहिए:
शाम के समय, सभी महिलाएँ करवा चौथ व्रत की कथा सुनने के लिए एकत्रित होती हैं। इस कथा में वीरवती और उसके पति की कहानी है। जब भी आप कथा सुनें, अपने हाथ में कम से कम कुछ चावल अवश्य रखें। कथा के अंत में, सभी "जय माता करवा" का जाप करके आरती करें। कथा सुनने के बाद, महिलाएँ सात या ग्यारह बार करवा बदलती हैं और यह करवा वापस कर देती हैं। इसके बाद, देवी गौरी और करवा से पति की दीर्घायु और परिवार की समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है।


चंद्र दर्शन और अर्घ्य विधि
शाम को जब चंद्रमा उदय हो, तो सबसे पहले दीपक और छलनी से चंद्रमा को देखें। फिर, छलनी से अपने पति का चेहरा देखें। अपने पति को जल अर्पित करें (लोटे से धीरे-धीरे जल डालें)। फिर, उनका आशीर्वाद लें या उनके हाथों से जल पीकर व्रत तोड़ें। कुछ परिवारों में, सबसे पहले सास-ससुर का स्पर्श करके आशीर्वाद लिया जाता है। इसके बाद भोजन ग्रहण किया जाता है। करवा चौथ पर चंद्रमा को अर्घ्य देने से मन और वैवाहिक जीवन दोनों में सामंजस्य स्थापित होता है।