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कोल्हापुरी चप्पल: भारतीय संस्कृति की पहचान और वैश्विक विवाद

कोल्हापुरी चप्पल, जो महाराष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर है, अब अंतरराष्ट्रीय फैशन रैंप पर छा गई है। हाल ही में प्राडा द्वारा पेश की गई चप्पल ने विवाद खड़ा कर दिया है, क्योंकि इसमें भारतीय कारीगरों को कोई श्रेय नहीं दिया गया। इस लेख में हम कोल्हापुरी चप्पल के इतिहास, निर्माण प्रक्रिया और इसके महत्व पर चर्चा करेंगे। जानें कि कैसे यह चप्पल केवल एक फुटवियर नहीं, बल्कि भारतीय संस्कृति की पहचान है।
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कोल्हापुरी चप्पल: भारतीय संस्कृति की पहचान और वैश्विक विवाद

कोल्हापुरी चप्पल की अनोखी कहानी

क्या आपने कभी एक लाख रुपये की चप्पल के बारे में सुना है? यह सच है! महाराष्ट्र की सांस्कृतिक धरोहर, कोल्हापुरी चप्पल, अब केवल स्थानीय लोगों की पसंद नहीं रही, बल्कि यह अंतरराष्ट्रीय फैशन रैंप पर भी छा गई है। हाल ही में, प्राडा ने मिलान फैशन वीक 2026 में अपनी स्प्रिंग समर कलेक्शन में ऐसी सैंडल पेश की, जो कोल्हापुरी चप्पल के समान थी। लेकिन इस डिज़ाइन के लिए भारतीय कारीगरों को कोई श्रेय नहीं दिया गया, जिससे विवाद खड़ा हो गया।


सोशल मीडिया पर गुस्सा

इस घटना ने फैशन प्रेमियों को नाराज कर दिया है। लोग सोशल मीडिया पर सवाल उठा रहे हैं कि कब वैश्विक ब्रांड्स भारतीय संस्कृति और शिल्प को मान्यता देंगे?


कोल्हापुरी चप्पल: एक अमूल्य धरोहर

कोल्हापुरी चप्पलें महाराष्ट्र के कोल्हापुर जिले की विशेषता हैं, जिनका इतिहास 13वीं शताब्दी से जुड़ा हुआ है। ये पूरी तरह से हाथ से बनाई जाती हैं, जिसमें मशीन का उपयोग नहीं होता। इनकी डिज़ाइन और टिकाऊपन इन्हें खास बनाते हैं।


कोल्हापुरी चप्पल बनाने की प्रक्रिया

इन चप्पलों का निर्माण उच्च गुणवत्ता वाले लेदर से किया जाता है, जिसे पहले नरम किया जाता है। फिर इसे हाथ से काटकर डिज़ाइन किया जाता है। चप्पल में अंगूठे के पास चमड़े की रिंग इसकी पहचान होती है।


आराम और स्टाइल का संगम

कोल्हापुरी चप्पलें न केवल स्टाइलिश होती हैं, बल्कि बेहद आरामदायक भी होती हैं। गर्मियों में पहनने पर ये पैरों को ठंडक देती हैं और लंबी दूरी तक चलने में सहायक होती हैं। समय के साथ, इनका लेदर पहनने वाले के पैरों के अनुसार ढल जाता है, जिससे आराम और बढ़ जाता है।


भारतीय संस्कृति की पहचान

कोल्हापुरी चप्पल केवल एक फुटवियर नहीं, बल्कि भारत की सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है। जब कोई वैश्विक ब्रांड इसे कॉपी करता है और भारतीय कारीगरों को श्रेय नहीं देता, तो यह केवल डिज़ाइन की चोरी नहीं होती, बल्कि एक पूरे समुदाय की मेहनत और पहचान की अनदेखी होती है।


सोशल मीडिया पर चर्चा