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खूबसूरती के मानक: गोरे रंग की चाहत और सांवले रंग की अनदेखी

इस लेख में खूबसूरती के मानकों पर चर्चा की गई है, जिसमें गोरे रंग की प्राथमिकता और सांवले रंग की अनदेखी पर विचार किया गया है। बॉलीवुड अभिनेत्री हुमा कुरैशी के बयान से शुरू होकर, यह लेख इतिहास, संस्कृति और समाज में रंग के महत्व को उजागर करता है। जानें कैसे समय के साथ सुंदरता के मानक बदले हैं और आज की दुनिया में आत्मविश्वास और खुशी का क्या स्थान है।
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खूबसूरती के मानक: गोरे रंग की चाहत और सांवले रंग की अनदेखी

खूबसूरती पर बहस


बॉलीवुड अभिनेत्री हुमा कुरैशी ने हाल ही में कहा, "मुझे अपनी उम्र से कोई समस्या नहीं है। मैं अपनी दिखावट से संतुष्ट हूं।" उनका यह बयान खूबसूरती के मानकों पर एक नई बहस को जन्म देता है। अक्सर, जब हम किसी सुंदर महिला की बात करते हैं, तो उसे गोरी त्वचा से जोड़ते हैं। यह धारणा केवल महिलाओं तक सीमित नहीं है, बल्कि पुरुषों पर भी लागू होती है। भारतीय संस्कृति में, भगवान कृष्ण को सांवले रंग का प्रतीक माना जाता है। वाल्मीकि रामायण में भगवान राम को भी सांवला बताया गया है, फिर यह मानक कैसे बदल गए?


गोरे रंग की प्राथमिकता

प्रश्न 1 - गोरे रंग को सुंदरता का मानक क्यों माना जाता है?


उत्तर: प्राचीन समय में, सांवले रंग को असली सुंदरता का प्रतीक माना जाता था। भारत में महिलाओं की प्राचीन चित्रण मौर्य काल की हैं, जहां उन्हें "बड़े ब्रेस्ट, चौड़े हिप्स और पतली टांगों" के साथ दर्शाया गया है।


भारत की चित्रकला में महिलाओं को "खूबसूरती से गुंथे" बालों और अन्य विशेषताओं के साथ दिखाया गया है। दिलचस्प बात यह है कि उस समय महिलाओं को उनके रूप के आधार पर नहीं बांटा गया। शुंग काल में, महिलाओं के शरीर को "S" आकार के कर्व्स के साथ दर्शाया गया था, जो सुंदरता का मानक था।


इतिहास में रंग का महत्व

इटालियन व्यापारी मार्को पोलो ने 1292 में भारत में सांवले रंग के लोगों को सम्मानित किया। उन्होंने लिखा कि यहां सांवले लोग अपने देवताओं को काला और शैतानों को सफेद दिखाते हैं। लेकिन 16वीं सदी में, मुगलों के आगमन के साथ गोरी त्वचा की ओर झुकाव बढ़ा। मुगलों के दरबार में गोरी त्वचा वाले लोगों का दबदबा था, जिससे यह धारणा समाज में फैल गई।


जब अंग्रेज भारत आए, तो उन्होंने गोरे और सांवले रंग के बीच एक विभाजन किया। गोरी त्वचा को श्रेष्ठता का प्रतीक मानते हुए, भारतीय उच्च वर्ग ने भी इसे अपनाया। इस दौरान गोरी त्वचा को लेकर एक सोच विकसित हुई, जो आज भी कायम है।


कविता और गाने का प्रभाव

कविताएं और गाने भी इस सोच को बढ़ावा देते हैं। मशहूर शायर साहिर लुधियानवी ने लिखा है:
"वह चमकता हुआ जिस्म संगमरमर से तराशा गया है,
इतना दिलकश है कि उसे गले लगाने का मन करता है।"
इस कविता में गोरे रंग की सुंदरता की तुलना संगमरमर से की गई है।


इसके अलावा, पंकज उधास के गाने "चांदी जैसा रंग है तेरा" और आनंद बख्शी के गाने "गोरे रंग पे ना इतना गुमान कर" ने गोरे रंग को मानक बना दिया।


सुंदरता की परिभाषा

प्रश्न 2: असली सुंदरता क्या है?


उत्तर: "सुंदरता देखने वाले की आंखों में होती है।" इसकी कोई एक परिभाषा नहीं है। रिचर्ड एफ. टेफ्लिंगर की रिसर्च के अनुसार, एक व्यक्ति की प्रजनन क्षमता और आकर्षण का संबंध उसके दिखने से होता है।


महिलाओं में सुंदरता के मानक जैसे शेप्ड ब्रेस्ट, लंबे बाल, और चेहरे की सिमिट्री शामिल हैं। इसी तरह, पुरुषों में लंबाई, गठीला शरीर और गहरी आवाज़ जैसे मानक विकसित हुए हैं।


सुंदरता के मानक का विकास

प्रश्न 3: समय के साथ सुंदरता के मानक कैसे बदले हैं?


उत्तर: रेबेका गेल्स की रिसर्च के अनुसार, समाज में सांस्कृतिक, राजनीतिक, आर्थिक और तकनीकी बदलावों के साथ सुंदरता के मानक भी बदले हैं।


पुराने मिस्र में सांवले रंग को सकारात्मक माना जाता था, जबकि ग्रीस और रोम में टोंड बॉडी को सुंदरता का प्रतीक माना जाता था। 20वीं सदी में हॉलीवुड ने सुंदरता के मानकों को प्रभावित किया।


आधुनिक मानक

अब 21वीं सदी में, खूबसूरती केवल लुक्स या बॉडी के बारे में नहीं है, बल्कि आत्मविश्वास और खुशी के बारे में भी है। हर उम्र, रंग और आकार के लोग अब टीवी, फिल्मों और सोशल मीडिया पर दिखते हैं।


इथियोपिया के मुर्सी और सूरी जनजातियों में, लिप पाउच पहनने वाली महिलाएं अधिक सुंदर मानी जाती हैं।


गोरे रंग की चाहत का प्रभाव

प्रश्न 4: गोरा रंग क्यों पसंदीदा बना हुआ है?


डॉ. अलका खेमचंदानी कहती हैं, "असली खूबसूरती काबिलियत है, न कि रंग या फिगर।" गोरी त्वचा को सुंदरता का मानक मानने की सोच इतनी गहरी हो गई है कि इस पर चर्चा भी कम होती है।


अगर कोई गोरा पैदा होता है, तो उसे सुंदर माना जाता है, जबकि सांवले को गोरा बनाने के नुस्खे खोजे जाते हैं।


खूबसूरती की चाहत और स्वास्थ्य

प्रश्न 5: गोरा दिखने की चाहत कैसे स्वास्थ्य को प्रभावित कर रही है?


डॉ. अलका खेमचंदानी का कहना है कि लड़के और लड़कियां गोरा दिखने के लिए अपनी सेहत और खुशी को खतरे में डालते हैं। इसके लिए वे सर्जरी और कॉस्मेटिक ट्रीटमेंट का सहारा लेते हैं।


इसके अलावा, हानिकारक हेयर ट्रीटमेंट और कड़े डाइट प्लान भी स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। सुंदरता के लिए सबसे महत्वपूर्ण चीज आत्मविश्वास है।