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तलाक का आर्थिक प्रभाव: पुरुषों पर पड़ता है गंभीर बोझ

भारत में तलाक की दर भले ही कम हो, लेकिन इसका आर्थिक प्रभाव पुरुषों पर गंभीर है। एक सर्वेक्षण में पाया गया कि 42% तलाकशुदा पुरुषों को गुजारा भत्ता और कानूनी खर्चों के लिए कर्ज लेना पड़ा। रिपोर्ट में यह भी बताया गया है कि 49% पुरुषों ने 5 लाख रुपये से अधिक खर्च किए, जिससे उनकी वित्तीय स्थिति अस्थिर हो गई। यह स्थिति न केवल व्यक्तिगत संकट है, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्वास्थ्य पर भी असर डालती है। क्या भारत में विवाह और तलाक के कानूनों को संतुलित करने की आवश्यकता है? जानें इस रिपोर्ट में।
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तलाक का आर्थिक प्रभाव: पुरुषों पर पड़ता है गंभीर बोझ

तलाक का आर्थिक संकट

भारत में तलाक की औसत दर भले ही 1% के आसपास हो, लेकिन इसका आर्थिक प्रभाव पुरुषों के लिए अत्यंत गंभीर है। एक हालिया सर्वेक्षण, जो फाइनेंस मैगज़ीन द्वारा किया गया था, ने यह दर्शाया है कि लगभग 42% तलाकशुदा पुरुषों को गुजारा भत्ता या कानूनी खर्चों के लिए कर्ज लेना पड़ा। इसके अलावा, लगभग आधे पुरुषों ने 5 लाख रुपये से अधिक खर्च किए। यह स्थिति इस बात का संकेत देती है कि भारत में तलाक केवल एक रिश्ते का अंत नहीं है, बल्कि यह आर्थिक अस्थिरता का भी कारण बनता जा रहा है।


1. तलाक के लिए कर्ज का सहारा

सर्वेक्षण के अनुसार, 42% पुरुषों ने तलाक की प्रक्रिया और गुजारा भत्ता चुकाने के लिए कर्ज लिया। यह केवल कुछ महीनों का बोझ नहीं होता, बल्कि कई वर्षों तक चलता है। उच्च ब्याज दरों पर लिए गए ये लोन अक्सर पुरुषों को कर्ज के जाल में फंसा देते हैं।


2. गुजारा भत्ते की बढ़ती लागत

तलाक की प्रक्रिया में सबसे बड़ा बोझ गुजारा भत्ते का होता है। रिपोर्ट के अनुसार, 49% पुरुषों ने 5 लाख रुपये से अधिक का भुगतान किया, जबकि महिलाओं के लिए यह आंकड़ा केवल 19% था। इसका मतलब है कि आर्थिक बोझ असमान रूप से पुरुषों पर अधिक पड़ता है।


3. नकारात्मक नेट वर्थ – एक छुपा हुआ संकट

सर्वेक्षण से यह भी पता चला कि लगभग 29% पुरुषों की नेट वर्थ तलाक के बाद नकारात्मक हो गई। इसका अर्थ है कि वे जितना कमाते या बचाते थे, उससे कहीं अधिक कर्ज में डूब गए। यह स्थिति उनके वित्तीय भविष्य को असुरक्षित बना देती है।


4. शहरी क्षेत्रों में तलाक की बढ़ती दर

हालांकि भारत में कुल तलाक दर कम है, लेकिन शहरी क्षेत्रों में यह 30-40% तक बढ़ गई है। महानगरों में जीवनशैली और आर्थिक अपेक्षाओं के कारण वैवाहिक टूटन अधिक हो रहा है, जिससे वित्तीय नुकसान भी शहरों में अधिक केंद्रित हो रहा है।


5. कानूनी लड़ाई: जेब पर सबसे भारी

तलाक की प्रक्रिया आसान नहीं होती। वकीलों की फीस और लंबी सुनवाई के कारण पुरुषों को अक्सर एक से अधिक लोन लेने पड़ते हैं, जिनमें से कई उच्च ब्याज दरों पर होते हैं। इसका परिणाम यह होता है कि मानसिक तनाव के साथ-साथ वित्तीय संकट भी बढ़ता है।


6. तलाक के बाद आर्थिक असमानता

सर्वे में यह भी सामने आया कि उच्च आय वर्ग के पुरुषों को अचानक अपनी संपत्ति का बड़ा हिस्सा खोना पड़ता है। तलाक के बाद उनकी वित्तीय स्थिति अस्थिर हो जाती है, जबकि महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए समझौते इस तरह से बनाए जाते हैं कि पुरुषों पर अधिक बोझ पड़े।


7. विवाह: एक भावनात्मक ही नहीं, आर्थिक जोखिम भी

सर्वे की सबसे बड़ी सीख यह है कि भारत में विवाह अब केवल भावनात्मक प्रतिबद्धता नहीं रह गया है, बल्कि यह एक संभावित वित्तीय जोखिम भी बन गया है। तलाक की स्थिति में पुरुषों को अपनी जीवनभर की जमा-पूंजी गंवानी पड़ सकती है।


केस स्टडी और उदाहरण

कुछ तलाकशुदा पुरुषों ने बताया कि उन्हें अपने परिवार से उधार लेना पड़ा, बैंक से पर्सनल लोन लेना पड़ा और कई बार प्रॉपर्टी तक गिरवी रखनी पड़ी। कई पुरुषों ने स्वीकार किया कि तलाक के बाद वे इतने कर्ज में डूब गए कि उनकी नेट वर्थ माइनस में चली गई।


नीति और कानून पर सवाल

यह स्थिति भारत में तलाक और गुजारा भत्ता कानूनों की समीक्षा की मांग भी उठाती है। विशेषज्ञों का मानना है कि आर्थिक बोझ का असमान वितरण पुरुषों को वित्तीय असुरक्षा की ओर धकेल रहा है।


सामाजिक और मानसिक असर

तलाक केवल वित्तीय नहीं, बल्कि सामाजिक और मानसिक स्तर पर भी असर डालता है। कर्ज के बोझ और आर्थिक अस्थिरता के कारण कई पुरुष डिप्रेशन और आत्मसम्मान की समस्याओं का सामना करते हैं। यह संकट न केवल उनके लिए, बल्कि उनके परिवार और बच्चों के लिए भी हानिकारक साबित होता है।


निष्कर्ष

भारत में तलाक की दर भले ही कम हो, लेकिन जिन पुरुषों का रिश्ता टूटता है, उनके लिए यह केवल एक भावनात्मक संकट नहीं, बल्कि एक आर्थिक आपदा भी है। 42% पुरुषों का कर्ज लेना, 49% का 5 लाख से अधिक खर्च करना और 29% का नकारात्मक नेट वर्थ में जाना यह साबित करता है कि तलाक पुरुषों के लिए एक गहरी वित्तीय चुनौती है। यह रिपोर्ट हमें सोचने पर मजबूर करती है कि क्या भारत में विवाह और तलाक के कानूनों को और संतुलित बनाने की आवश्यकता है।