दिल्ली में गालियों का बोलबाला: सर्वे में चौंकाने वाले आंकड़े

गालियों का सामाजिक संकेतक
भारत, जो विभिन्न भाषाओं और संस्कृतियों का संगम है, में भाषा का उपयोग एक महत्वपूर्ण सामाजिक संकेतक के रूप में देखा जाता है। हाल ही में "गाली बंद घर अभियान" (Gaali Band Ghar Abhiyan) के तहत एक सर्वेक्षण किया गया, जिसने यह जानने की कोशिश की कि किस राज्य के लोग बातचीत में सबसे अधिक गालियों का प्रयोग करते हैं। यह अभियान 2014 से 2025 तक डॉ. सुनील जागलान द्वारा 'सेल्फी विद डॉटर फाउंडेशन' और महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी के सहयोग से चलाया गया। इसमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों से 70,000 लोगों से डेटा एकत्र किया गया, जिसमें शिक्षक, छात्र, डॉक्टर, पुलिसकर्मी, ऑटो चालक और युवा शामिल थे।
दिल्ली का शीर्ष स्थान
दिल्ली में गालियों का उच्चतम प्रतिशत
सर्वेक्षण के अनुसार, दिल्ली पहले स्थान पर है, जहां 80% लोगों ने स्वीकार किया कि वे अपनी दैनिक बातचीत में गालियों का उपयोग करते हैं। यह भी ध्यान देने योग्य है कि महिलाओं के खिलाफ गालियों का प्रयोग भी आम है। ट्रैफिक, भीड़, प्रतिस्पर्धा और तेज़ जीवनशैली ने दिल्लीवासियों को चिड़चिड़ा बना दिया है।
भारत के शीर्ष 10 राज्य जहां गालियों का प्रयोग अधिक
गालियों का प्रयोग करने वाले राज्यों की सूची
स्थान | राज्य | प्रतिशत (%) |
---|---|---|
1 | दिल्ली | 80% |
2 | पंजाब | 78% |
3 | उत्तर प्रदेश | 74% |
4 | बिहार | 74% |
5 | राजस्थान | 68% |
6 | हरियाणा | 62% |
7 | महाराष्ट्र | 58% |
8 | गुजरात | 55% |
9 | मध्य प्रदेश | 48% |
10 | उत्तराखंड | 45% |
11 | कश्मीर | सबसे कम – सिर्फ 15% |
गालियों के पीछे के कारण
गालियों का प्रयोग क्यों?
पंजाब और हरियाणा में गालियां कभी-कभी दोस्ती का मजाकिया हिस्सा होती हैं।
उत्तर प्रदेश और बिहार में राजनीतिक, पारिवारिक और सड़क झगड़ों में गालियों का प्रयोग सामान्य है।
राजस्थान के गांवों में गुस्से और मजाक में हल्की गालियों का प्रयोग सामान्य माना जाता है।
महाराष्ट्र और गुजरात में शहरी तनाव और युवा पीढ़ी का स्लैंग कल्चर इसका कारण है।
कश्मीर में धार्मिक और पारिवारिक शांति के कारण गालियों का प्रयोग न्यूनतम है।
महिलाओं में गालियों का प्रयोग
महिलाओं में गालियों का बढ़ता चलन
एक दिलचस्प तथ्य यह है कि 30% महिला प्रतिभागियों ने भी गालियों का प्रयोग स्वीकार किया। यह दर्शाता है कि गाली देना अब केवल पुरुषों का व्यवहार नहीं रह गया है, बल्कि यह एक सामान्य सामाजिक आदत बनती जा रही है।
अभियान का उद्देश्य
गाली बंद घर अभियान का उद्देश्य
सभ्य भाषा को बढ़ावा देना।
घर में बातचीत को ट्रैक करना।
बच्चों और युवाओं को शालीनता सिखाना।
सर्वेक्षण की जानकारी
11 साल में 70,000 लोगों का सर्वेक्षण
डॉ. सुनील जागलान ने गाली बंद घर अभियान के तहत 11 वर्षों में लगभग 70,000 लोगों का सर्वेक्षण किया। इसमें युवा, माता-पिता, शिक्षक, डॉक्टर, ऑटो ड्राइवर, छात्र, पुलिसकर्मी, वकील, व्यवसायी, सफाईकर्मी, प्रोफेसर और पंचायत सदस्य शामिल थे।
गाली बंद घर अभियान की शुरुआत
2014 में अभियान की शुरुआत
डॉ. सुनील जागलान का कहना है कि गाली देना कोई संस्कार नहीं, बल्कि एक बीमारी है। जब बच्चे बड़े होते हैं और वे गालियां सुनते हैं, तो यह उनकी आदत बन जाती है। उन्होंने 2014 में गाली बंद घर अभियान की शुरुआत की थी, जिसके तहत देशभर में 60,000 से अधिक स्थानों पर गाली बंद घर के चार्ट लगाए गए हैं। आज यह अभियान विश्व स्तर पर चर्चित हो चुका है।