निर्जला एकादशी: व्रत के नियम और पारण का महत्व

निर्जला एकादशी का महत्व
निर्जला एकादशी हिंदू धर्म में एक प्रमुख एकादशी व्रत है, जो सावन (जुलाई-ऑगस्ट) के महीने में मनाया जाता है। इसके कठोर नियमों के कारण इसे अत्यंत पवित्र माना जाता है। इस दिन, श्रद्धालुओं को जल (पानी) का सेवन नहीं करना होता है और 24 घंटे का कठोर उपवास रखना होता है।
पारण के समय ध्यान देने योग्य बातें
निर्जला एकादशी के व्रत का पारण
पारण का समय बहुत महत्वपूर्ण होता है। यदि इसमें कोई गलती होती है, तो व्रत का फल निष्फल हो सकता है। इसलिए, पारण करते समय निम्नलिखित बातों का ध्यान रखें:
सही समय पर पारण करें:
पारण का शुभ मुहूर्त एकादशी के अगले दिन द्वादशी तिथि के प्रातःकाल में होता है। ज्योतिष के अनुसार, यह समय सुबह 5 से 10 बजे के बीच होता है।हल्का भोजन करें:
पारण के समय भारी और तैलीय भोजन से बचें। खीर, फल, दाल, सेंधा नमक और शुद्ध जल से पारण करना शुभ माना जाता है।जल का सेवन न भूलें:
निर्जला व्रत के बाद पारण के समय सबसे पहले शुद्ध जल या गंगाजल पीना चाहिए।दूध और दही का सेवन:
पारण के लिए दही, दूध और हल्का फलाहार भी शुभ माना जाता है।भारी भोजन से बचें:
निर्जला व्रत के कारण शरीर कमजोर हो जाता है, इसलिए अचानक भारी भोजन करने से बचें।
निर्जला एकादशी पारण का शुभ मुहूर्त 2025
पारण का समय
तिथि समाप्ति: 7 जून, शनिवार, दोपहर 12:30 बजे तक (मध्य भारत समय अनुसार)
पारण मुहूर्त: 7 जून सुबह 5:00 बजे से लेकर 7 जून दोपहर 12:30 बजे तक सबसे उत्तम समय माना जाता है।
(ध्यान दें कि पारण का समय आपके क्षेत्र के अनुसार भिन्न हो सकता है, इसलिए अपने स्थानीय पंचांग से पुष्टि करें।)
निर्जला एकादशी व्रत का महत्व
इस व्रत का महत्व
इस व्रत में बिना पानी के पूरे दिन उपवास रखा जाता है, जिससे शरीर का शुद्धिकरण होता है।
यह व्रत भगवान विष्णु को समर्पित है और इसे करने से पापों से मुक्ति मिलती है।
माना जाता है कि निर्जला एकादशी व्रत करने से 12 वर्षों के अन्य एकादशी व्रतों का फल मिलता है।
निष्कर्ष
व्रत का पालन
निर्जला एकादशी का व्रत अत्यंत पवित्र है, लेकिन इसके सफल फल के लिए पारण का समय और तरीका सही होना आवश्यक है। यदि पारण में नियमों का पालन नहीं किया गया, तो व्रत निष्फल हो सकता है। इसलिए, इसे श्रद्धा और नियमों के अनुसार करना चाहिए।