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पति-पत्नी की पूजा में बैठने की सही दिशा: जानें क्यों है दायीं ओर बैठना शुभ

हिंदू धर्म में वैवाहिक जीवन का महत्व और पूजा के दौरान पति-पत्नी के बैठने की दिशा पर विशेष ध्यान दिया जाता है। जानें क्यों पत्नी को पति के दायीं ओर बैठना चाहिए और इसके पीछे के धार्मिक कारण क्या हैं। इस लेख में हम यह भी देखेंगे कि पूजा में क्या गलतियाँ नहीं करनी चाहिए।
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पति-पत्नी की पूजा में बैठने की सही दिशा: जानें क्यों है दायीं ओर बैठना शुभ

वैवाहिक जीवन और पूजा का महत्व


हिंदू धर्म में विवाह को अत्यंत पवित्र माना जाता है, और हर धार्मिक कार्य में पति-पत्नी का एक साथ होना महत्वपूर्ण होता है। पूजा के समय दोनों का साथ बैठना आवश्यक है, लेकिन यह सवाल अक्सर उठता है कि पत्नी को पति के किस ओर बैठना चाहिए। शास्त्रों और ज्योतिष के अनुसार, इस विषय पर एक विशेष नियम है, जिसका पालन करने से पूजा का फल पूर्ण रूप से प्राप्त होता है।


पत्नी का दायीं ओर बैठना: शुभता का प्रतीक

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, पूजा के दौरान पत्नी को हमेशा अपने पति के दाहिनी ओर बैठना चाहिए। यह स्थिति शुभ मानी जाती है और इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हैं। दायीं ओर को भक्ति, कर्म और कर्तव्य का प्रतीक माना जाता है। जब पति-पत्नी एक साथ भगवान की पूजा करते हैं, तो यह दर्शाता है कि वे अपने धार्मिक कर्तव्यों का पालन एक साथ कर रहे हैं। पत्नी का दायीं ओर बैठना इसी भक्ति और एकाग्रता को दर्शाता है। विशेष धार्मिक अनुष्ठानों जैसे यज्ञ, हवन, कन्यादान, शिशु नामकरण या अन्नप्राशन में पत्नी का पति के दाहिनी ओर बैठना उचित माना जाता है, जिससे इन अनुष्ठानों का पूर्ण फल प्राप्त होता है।


कुछ मान्यताओं के अनुसार, दाहिना भाग शक्ति का स्थान है और पूजा के दौरान शक्ति का साथ होना शुभ माना जाता है। पत्नी को शक्ति का रूप माना जाता है, इसलिए पूजा की सफलता के लिए उसका दाहिनी ओर होना महत्वपूर्ण है। कुछ विद्वान इसे भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप से भी जोड़ते हैं, जहां नर और मादा का मिलन एक ही शरीर में होता है। पूजा के दौरान पत्नी का दाहिनी ओर बैठना इसी एकता और संपूर्णता का प्रतीक है।


पति-पत्नी को पूजा में क्या नहीं करना चाहिए

हिंदू धर्म में पति-पत्नी का पूजा में साथ बैठना अनिवार्य माना जाता है। ऐसा माना जाता है कि पति को कभी भी अपनी पत्नी के बिना पूजा में नहीं बैठना चाहिए, क्योंकि ऐसा करने से पूजा का फल अधूरा रह जाता है। हालांकि, अन्य सांसारिक कार्यों में पत्नी को पति के बाईं ओर बैठने का प्रचलन है। शास्त्रों में पत्नी को 'वामांगी' कहा गया है, जिसका अर्थ है बाएं अंग की स्वामिनी। इसके पीछे कुछ विशेष मान्यताएं हैं। पौराणिक कथाओं के अनुसार, स्त्रियों की उत्पत्ति भगवान शिव के बाएं अंग से हुई है और माता पार्वती भी भगवान शिव के बाईं ओर विराजमान होती हैं। बायां भाग प्रेम, करुणा, स्नेह और गृहस्थ जीवन से जुड़ी भावनाओं का प्रतीक माना जाता है। भोजन करते समय, आशीर्वाद लेते समय, सोते समय और पैर छूते समय पत्नी का पति के बाईं ओर होना शुभ माना जाता है।