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परिक्रमा का महत्व: देवी-देवताओं की परिक्रमा के नियम

भारतीय सनातन संस्कृति में परिक्रमा का विशेष महत्व है। यह न केवल श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है, बल्कि आध्यात्मिक लाभ भी प्रदान करती है। इस लेख में हम जानेंगे कि विभिन्न देवी-देवताओं की परिक्रमा कितनी बार करनी चाहिए और इसके पीछे के नियम क्या हैं। जानें भगवान विष्णु, शिव, दुर्गा, राम, कृष्ण और सूर्य देव की परिक्रमा के महत्व के बारे में।
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परिक्रमा का महत्व: देवी-देवताओं की परिक्रमा के नियम

परिक्रमा का आध्यात्मिक महत्व

भारतीय सनातन संस्कृति में परिक्रमा का एक विशेष स्थान है। किसी मंदिर में जाकर भगवान की मूर्ति या देवस्थान के चारों ओर घूमना केवल एक धार्मिक क्रिया नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, आस्था और ऊर्जा का प्रवाह भी है। परिक्रमा न केवल मानसिक शांति प्रदान करती है, बल्कि आध्यात्मिक लाभ भी देती है। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि किस देवी-देवता की कितनी परिक्रमा करनी चाहिए? आइए जानते हैं धार्मिक ग्रंथों और मान्यताओं के अनुसार परिक्रमा से जुड़े नियम।


1. भगवान विष्णु की परिक्रमा

भगवान विष्णु की परिक्रमा चार बार की जाती है। यह माना जाता है कि विष्णुजी को समर्पित परिक्रमा में संयम और नियमों का पालन करना आवश्यक है। विष्णु मंदिर में परिक्रमा करते समय "ॐ नमो भगवते वासुदेवाय" मंत्र का जाप करना शुभ फलदायी माना जाता है।


2. भगवान शिव की परिक्रमा

शिवजी की परिक्रमा आधा चक्कर यानी अर्द्ध परिक्रमा की जाती है। धार्मिक मान्यता के अनुसार, शिवलिंग पर बिल्व पत्र चढ़ाने के बाद केवल बाईं ओर से घूमते हुए परिक्रमा करनी चाहिए और नंदी को पार नहीं करना चाहिए। शिवलिंग की पूरी परिक्रमा वर्जित मानी जाती है।


3. माता दुर्गा या देवी की परिक्रमा

देवी दुर्गा या अन्य देवी स्वरूपों की परिक्रमा एक, तीन या नौ बार की जाती है। नवरात्रों के दौरान श्रद्धालु नौ परिक्रमाएं करके मां की आराधना करते हैं। देवी की परिक्रमा में श्रद्धा और आस्था की भावना महत्वपूर्ण होती है।


4. श्रीराम और श्रीकृष्ण की परिक्रमा

भगवान राम और कृष्ण, दोनों विष्णु के अवतार हैं, इसलिए इनकी परिक्रमा भी चार बार करने की परंपरा है। विशेषकर द्वारकाधीश मंदिर और राम जन्मभूमि जैसे स्थलों पर भक्त चार परिक्रमा करते हैं।


5. सूर्य देव की परिक्रमा

सूर्य मंदिर में परिक्रमा करते समय सात बार परिक्रमा की जाती है, जो सप्ताह के सात दिनों का प्रतीक मानी जाती है। सूर्य देव को जल अर्पण करने के बाद यह परिक्रमा की जाती है और यह रोगों से मुक्ति दिलाने वाली मानी जाती है।


6. तुलसी पौधे की परिक्रमा

तुलसी को देवी लक्ष्मी का स्वरूप माना गया है। तुलसी की गणनात्मक रूप से 11, 21 या 108 बार परिक्रमा करने की परंपरा है। विशेषकर तुलसी विवाह, कार्तिक मास और एकादशी पर तुलसी की परिक्रमा अत्यंत शुभ मानी जाती है।


परिक्रमा के पीछे का आध्यात्मिक भाव

परिक्रमा करते समय व्यक्ति देवता की ऊर्जा के चारों ओर घूमता है, जिससे उसकी नकारात्मक ऊर्जा समाप्त होती है और सकारात्मक ऊर्जा का संचार होता है। यह प्रक्रिया ध्यान और मंत्रोच्चारण के साथ की जाए तो मानसिक शांति और आध्यात्मिक विकास संभव होता है। इसलिए अगली बार जब भी किसी मंदिर जाएं, तो देवी-देवताओं की परिक्रमा करते समय इन नियमों और मान्यताओं का ध्यान रखें और पूर्ण श्रद्धा के साथ परिक्रमा करें।