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पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा: गुंडिचा देवी का रहस्य और इतिहास

पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा का आयोजन हुआ है, जिसमें लाखों श्रद्धालु शामिल हो रहे हैं। इस यात्रा में गुंडिचा देवी का महत्वपूर्ण स्थान है, जो भगवान जगन्नाथ की मौसी मानी जाती हैं। जानें कैसे राजा इंद्रद्युम्न ने गुंडिचा देवी के साथ मिलकर मंदिर की स्थापना की और इस यात्रा का ऐतिहासिक महत्व क्या है।
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पुरी में जगन्नाथ रथ यात्रा: गुंडिचा देवी का रहस्य और इतिहास

जगन्नाथ रथ यात्रा का शुभारंभ


पुरी में शुक्रवार से जगन्नाथ रथ यात्रा की शुरुआत हो गई है। 27 जून को आषाढ़ की द्वितीया के अवसर पर भगवान की मूर्तियों को उनके बड़े भाई-बहन के साथ सिंहद्वार से बाहर लाया गया और फिर उन्हें रथों पर स्थापित किया गया। मूर्तियों को मंदिर से रथ तक ले जाने की प्रक्रिया को पहांडी कहा जाता है, जिसमें भगवान को श्रद्धा और प्रेम के साथ कंधों पर उठाया जाता है। इस रथ यात्रा में भाग लेने और इसे देखने के लिए देश-विदेश से लाखों श्रद्धालु पुरी पहुंचते हैं। रथ यात्रा के दौरान भगवान की मूर्तियों को रथ पर स्थापित किया जाता है और फिर उन्हें हाथों से खींचकर श्री गुंडिचा मंदिर ले जाया जाता है, जो पुरी जगन्नाथ मंदिर से लगभग 2.6 किलोमीटर दूर है। गुंडिचा मंदिर को महाप्रभु जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा का निवास माना जाता है।


गुंडिचा देवी का संबंध

गुंडिचा देवी को महाप्रभु त्रिदेव की मौसी माना जाता है, लेकिन यह जानना दिलचस्प है कि वे त्रिदेव की मौसी कैसे बनीं और उनका भगवान बलभद्र, देवी सुभद्रा और जगन्नाथ से क्या संबंध है।


किसी समय, उत्कल (वर्तमान ओडिशा) के राजा इंद्रद्युम्न और रानी गुंडिचा ने भगवान नीलमाधव के लिए एक मंदिर बनवाने का निर्णय लिया। इस मंदिर और मूर्तियों की प्राण प्रतिष्ठा के लिए उपयुक्त ब्राह्मण की तलाश की गई।


देवर्षि नारद का सुझाव

जब देवर्षि नारद उत्कल पहुंचे, तो राजा ने उनसे प्राण प्रतिष्ठा का पुरोहित बनने का अनुरोध किया। नारद ने कहा कि इस दिव्य मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा ब्रह्माजी को करनी चाहिए। राजा ने खुशी-खुशी उनकी बात मान ली और ब्रह्माजी को आमंत्रित करने के लिए उनके साथ चलने का निर्णय लिया।


नारद ने राजा को चेतावनी दी कि ब्रह्मलोक जाने से पहले उन्हें अपने परिवार से अंतिम बार मिल लेना चाहिए। यह सुनकर रानी गुंडिचा चिंतित हो गईं।


राजा इंद्रद्युम्न का ब्रह्मलोक यात्रा

राजा इंद्रद्युम्न ने ब्रह्मलोक जाने से पहले राज्य में यात्रियों के लिए 100 कुएं और जलाशय बनवाने का निर्णय लिया। रानी गुंडिचा ने कहा कि जब तक राजा वापस नहीं आते, वह तपस्या करेंगी।


राजा नारद के साथ ब्रह्मलोक गए, लेकिन जब वे लौटे, तब तक कई सदियाँ बीत चुकी थीं।


मंदिर का पुनर्निर्माण

राजा इंद्रद्युम्न के लौटने पर उन्होंने देखा कि पुरी में एक नया राजा गलु माधव राज कर रहा था। राजा गलु माधव ने मंदिर की खुदाई की और उसकी स्थापना की तैयारी शुरू की।


जब राजा इंद्रद्युम्न ने गलु माधव से अपनी पहचान बताई, तो हनुमान जी साधु के रूप में आए और गलु माधव को मंदिर के गर्भगृह का रास्ता दिखाया।


गुंडिचा देवी का महत्व

जब रानी गुंडिचा ने अपने पति की वापसी का एहसास किया, तो उन्होंने कहा कि वह कोई देवी नहीं हैं, बल्कि उनकी पूर्वज हैं।


राजा इंद्रद्युम्न और रानी गुंडिचा की मुलाकात के बाद मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा हुई और भगवान जगन्नाथ ने अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलभद्र के साथ प्रकट हुए।


गुंडिचा का तीर्थ

विद्यापति और ललिता के वंशज आज भी पुरी के मंदिर में पूजा करते हैं। गुंडिचा देवी का तीर्थ शक्तिपीठ के समान माना जाता है।


हर साल रथ यात्रा के दौरान भगवान गुंडिचा देवी के पास जाते हैं, और यह परंपरा आज भी जारी है।