बरबरिक: महाभारत का राक्षस पुत्र जो बना ‘खाटू श्याम’

बरबरिक की रहस्यमयी कथा
हिंदू धर्मग्रंथों में कई रहस्यमयी घटनाएं और कथाएं हैं, जो विभिन्न युगों में फैली हुई हैं। इनमें से एक कथा एक राक्षस की है, जो द्वापर युग में भगवान श्रीकृष्ण से जुड़ा और कलयुग में उसे ‘भगवान’ का दर्जा मिला। यह कहानी महाभारत के ऐतिहासिक प्रसंगों और कलयुग की धार्मिक मान्यताओं को जोड़ती है।
बरबरिक का परिचय
बरबरिक, जो भीम के पोते घटोत्कच के पुत्र हैं, महाभारत के युद्ध से पहले एक महत्वपूर्ण पात्र के रूप में उभरते हैं। उनकी माता का नाम मोरवी था। बचपन से ही वे युद्धकला में निपुण थे और भगवान शिव की तपस्या करके उन्होंने तीन अमोघ बाण प्राप्त किए थे। इन बाणों की शक्ति इतनी थी कि वे महाभारत युद्ध को कुछ ही समय में समाप्त कर सकते थे।
श्रीकृष्ण का दखल
महाभारत युद्ध से पहले, बरबरिक युद्धभूमि में जाने के लिए तैयार थे। उन्होंने यह संकल्प लिया था कि वे हमेशा कमजोर पक्ष की ओर से लड़ेंगे। जब भगवान श्रीकृष्ण को यह पता चला, तो वे साधु के रूप में उनके सामने आए और तीन बाणों की परीक्षा ली। श्रीकृष्ण ने समझा कि यदि बरबरिक युद्ध में शामिल होते हैं, तो उनका पक्ष बदलता रहेगा, जिससे युद्ध का सार बदल जाएगा। इसलिए, उन्होंने बरबरिक से अपने सिर का दान मांगा।
बरबरिक का बलिदान
बरबरिक ने श्रीकृष्ण की आज्ञा का पालन करते हुए बिना किसी हिचकिचाहट के अपना सिर काटकर दान कर दिया। श्रीकृष्ण उनकी वीरता और भक्ति से प्रसन्न हुए और उन्हें वरदान दिया कि कलयुग में वे ‘श्री श्याम’ के नाम से पूजे जाएंगे। उन्होंने कहा कि जो भी भक्त सच्चे मन से उनका नाम लेगा, उसकी मनोकामना पूरी होगी। इसीलिए बरबरिक को ‘खाटू श्याम जी’ कहा जाता है।
‘कलयुग के कृष्ण’ का संबोधन
बरबरिक को श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से ‘श्याम’ नाम मिला, जो श्रीकृष्ण का एक नाम है। इसलिए, उन्हें ‘कलयुग के कृष्ण’ कहा जाता है। मान्यता है कि जैसे द्वापर युग में श्रीकृष्ण ने धर्म की स्थापना की, वैसे ही कलयुग में श्याम बाबा संकटों का नाश करते हैं।
खाटू श्याम मंदिर का महत्व
राजस्थान के सीकर जिले में स्थित खाटू श्याम मंदिर वह स्थान है जहां बरबरिक का सिर रखा गया था। यह माना जाता है कि यह सिर महाभारत युद्ध के अंत तक कुरुक्षेत्र में रहा। युद्ध समाप्त होने के बाद, श्रीकृष्ण ने इसे उसी स्थान पर प्रतिष्ठित किया, जिसे आज खाटू श्याम मंदिर के नाम से जाना जाता है।
खाटू श्याम की भक्ति
खाटू श्याम जी के मंदिर में हर साल लाखों श्रद्धालु आते हैं। विशेषकर फाल्गुन मेले में भक्तों की भीड़ उमड़ती है। बाबा श्याम को ‘हारे का सहारा’ कहा जाता है, क्योंकि जो भी संकट में उनका नाम लेता है, उनकी रक्षा स्वयं बाबा करते हैं। भक्त उन्हें फूलों से सजाते हैं और भजन-कीर्तन करते हैं।
निष्कर्ष
बरबरिक की कहानी हमें सिखाती है कि सच्चा त्याग और भक्ति ही व्यक्ति को ईश्वर बना सकते हैं। श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से यह राक्षसपुत्र आज करोड़ों लोगों की आस्था का केंद्र बन चुका है। महाभारत की यह कथा यह दर्शाती है कि इतिहास केवल युद्धों की कहानियां नहीं, बल्कि उन लोगों की कहानियां भी हैं जो अपने त्याग से युगों तक पूजे जाते हैं। खाटू श्याम बाबा इसी श्रृंखला की एक जीवंत कड़ी हैं।