Newzfatafatlogo

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा: आस्था और समर्पण का अद्भुत संगम

भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा 2023 में 27 जून से 5 जुलाई तक आयोजित की जाएगी। यह यात्रा न केवल ओडिशा बल्कि पूरे भारत और विश्वभर के श्रद्धालुओं के लिए आस्था का प्रतीक है। रथ खींचने का अवसर पाने वाले भक्तों को मोक्ष की प्राप्ति का विश्वास होता है। इस यात्रा में भाग लेने के लिए कोई भी श्रद्धालु, चाहे वह किसी भी जाति या धर्म का हो, शामिल हो सकता है। जानें रथों की विशेषताएँ और यात्रा की परंपराएँ।
 | 
भगवान जगन्नाथ की रथ यात्रा: आस्था और समर्पण का अद्भुत संगम

रथ यात्रा का महोत्सव


भगवान जगन्नाथ की भव्य रथ यात्रा इस वर्ष 27 जून से शुरू होकर 5 जुलाई तक चलेगी। यह यात्रा केवल ओडिशा में ही नहीं, बल्कि पूरे भारत और विश्वभर के करोड़ों भक्तों के लिए आस्था का प्रतीक है। इस दौरान भगवान जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा अपने विशाल रथों पर सवार होकर पुरी के मुख्य मंदिर से गुंडीचा मंदिर तक यात्रा करते हैं। इस महोत्सव में भाग लेने के लिए लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से पुरी पहुंचते हैं।


मोक्ष की प्राप्ति का अवसर

इस यात्रा का धार्मिक महत्व अत्यधिक है, क्योंकि जो भक्त भगवान जगन्नाथ का रथ खींचता है, उसे जन्म-मरण के चक्र से मुक्ति यानी मोक्ष की प्राप्ति होती है। यही कारण है कि लोग इस यात्रा में भाग लेने के लिए घंटों इंतजार करते हैं और इसे अपने लिए सौभाग्य मानते हैं।


रथ खींचने का अधिकार

भगवान जगन्नाथ का रथ खींचने के लिए किसी जाति, धर्म या देश का भेदभाव नहीं किया जाता। कोई भी श्रद्धालु, चाहे वह पुरुष हो या महिला, भारत का हो या विदेश से आया हो, प्रभु की इच्छा से रथ खींचने का अधिकारी बन सकता है। भगवान की नजरों में सभी भक्त समान होते हैं, इसलिए रथ खींचने की अनुमति सभी को है। हालांकि, सुरक्षा के दृष्टिकोण से हर व्यक्ति को कुछ दूरी तक ही रथ खींचने दिया जाता है।


रथों की विशेषताएँ

रथ यात्रा में तीन भव्य और विभिन्न आकार के रथ होते हैं:



  • भगवान जगन्नाथ का रथ - ‘नंदीघोष’, जिसकी ऊंचाई लगभग 45 फीट और इसमें 16 विशाल पहिए होते हैं।

  • बलराम जी का रथ - ‘तालध्वज’, जिसकी ऊंचाई 43 फीट और इसमें 14 पहिए होते हैं।

  • देवी सुभद्रा का रथ - ‘दर्पदलन’, जिसकी ऊंचाई 42 फीट और इसमें 12 पहिए होते हैं।


इन रथों का निर्माण हर साल नई लकड़ी से किया जाता है और इन्हें पारंपरिक विधियों से सजाया जाता है।


यात्रा का मार्ग और परंपरा

रथ यात्रा पुरी के श्री जगन्नाथ मंदिर से शुरू होकर लगभग 3 किलोमीटर दूर स्थित गुंडीचा मंदिर तक जाती है। यात्रा के दौरान, भगवान को ठंडे पेय, औषधीय काढ़े और पारंपरिक भोग अर्पित किए जाते हैं। गुंडीचा मंदिर में एक सप्ताह विश्राम के बाद भगवान वापस श्रीमंदिर लौटते हैं, जिसे 'बहुदा यात्रा' कहा जाता है।


अंतिम विचार

पुरी की रथ यात्रा केवल एक धार्मिक परंपरा नहीं है, बल्कि यह श्रद्धा, समर्पण और आध्यात्मिक एकता का प्रतीक है। रथ खींचना भगवान की सेवा का सबसे बड़ा सौभाग्य माना जाता है। यदि आप इस बार इस यात्रा में शामिल हो रहे हैं, तो नियमों का पालन करते हुए श्रद्धा और भक्ति के साथ भगवान का रथ खींचें और अपने जीवन को धन्य बनाएं।