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मधुश्रावणी व्रत: नवविवाहिताओं के लिए एक अनोखा पर्व

मधुश्रावणी व्रत, जो श्रावण मास में मनाया जाता है, नवविवाहिताओं के लिए एक विशेष पर्व है। यह न केवल आध्यात्मिक आस्था से जुड़ा है, बल्कि वैवाहिक जीवन की सुख-शांति और पति की दीर्घायु के लिए भी महत्वपूर्ण है। इस पर्व में नवविवाहिताएं सखियों के साथ बगीचों में जाकर पूजा करती हैं, जिसमें महिला पुरोहित पूजा विधि संपन्न कराती हैं। यह पर्व ससुराल और मायके के रिश्तों को मजबूत बनाता है और पारिवारिक एकता का प्रतीक है।
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मधुश्रावणी व्रत: नवविवाहिताओं के लिए एक अनोखा पर्व

मधुश्रावणी व्रत का महत्व

श्रावण मास में मिथिलांचल की सांस्कृतिक धरोहर का एक विशेष पर्व है मधुश्रावणी व्रत, जो खासकर नवविवाहिताओं के लिए समर्पित होता है। यह पर्व आध्यात्मिक विश्वास के साथ-साथ नवविवाहिताओं के वैवाहिक जीवन की सुख-शांति और उनके पतियों की दीर्घायु के लिए भी महत्वपूर्ण है।


सखियों के साथ बगीचे में पूजा

इस अवसर पर नवविवाहिताएं सोलह श्रृंगार करके अपनी सखियों के साथ बगीचों में जाती हैं। वहां वे बांस के नए डाले को फूलों और पत्तों से सजाकर पारंपरिक रीति-रिवाजों के अनुसार पूजा करती हैं। बिहार के सीतामढ़ी सहित पूरे मिथिला क्षेत्र में यह पर्व श्रद्धा और उल्लास के साथ मनाया जा रहा है।


विशेष रूप से नवविवाहिताओं के लिए

मधुश्रावणी व्रत केवल नवविवाहिताओं द्वारा किया जाता है और यह आमतौर पर विवाह के पहले वर्ष में मनाया जाता है। यह व्रत 13 से 15 दिनों तक चलता है। परंपरा के अनुसार, नवविवाहिताएं अपनी सखियों के साथ फूल तोड़ने जाती हैं और फिर हंसी-मजाक करते हुए घर लौटती हैं, जहां विधिपूर्वक पूजा की जाती है।


महिला पुरोहितों द्वारा पूजा

मधुश्रावणी की एक खास बात यह है कि इस व्रत की पूजा महिला पुरोहित करती हैं। यह एकमात्र पर्व है, जिसमें पुरुष ब्राह्मण की जगह महिला ब्राह्मण पूजा विधि संपन्न कराती हैं। पूजा में भगवान शिव, माता पार्वती और नाग देवता की विशेष आराधना की जाती है। व्रत भले ही मायके में किया जाता है, लेकिन पूजा की सभी सामग्री और श्रृंगार की वस्तुएं ससुराल से आती हैं।


दांपत्य जीवन का सार

पूरे व्रत के दौरान नवविवाहिताओं को मां पार्वती, भगवान शंकर, नाग देवता और अन्य देवी-देवताओं की कथाएं सुनाई जाती हैं। इन कथाओं के माध्यम से उन्हें सुखद वैवाहिक जीवन जीने की कला सिखाई जाती है। कजरी और ठुमरी जैसी पारंपरिक लोकधुनों के जरिए मां गौरी को प्रसन्न किया जाता है। महिलाएं हर शाम भजन-कीर्तन कर भगवान शिव से अपने पतियों के दीर्घायु जीवन का आशीर्वाद मांगती हैं।


ससुराल और मायके के रिश्तों को मजबूत बनाता पर्व

इस पर्व की सबसे खास बात यह है कि व्रती मायके में रहकर पूजा करती हैं, लेकिन उनका हर संबंध ससुराल से जुड़ा होता है—श्रृंगार पेटी से लेकर पूजा सामग्री तक। यह न केवल वैवाहिक जीवन के प्रति समर्पण को दर्शाता है, बल्कि ससुराल और मायके के रिश्तों को भी मजबूती देता है।


नाग देवता की पूजा का महत्व

मधुश्रावणी में नाग देवता की पूजा का विशेष महत्व होता है। मान्यता है कि नाग देवता को प्रसन्न करने से भगवान शिव भी प्रसन्न होते हैं। एक नवविवाहिता प्रीति कुमारी बताती हैं, "श्रावण मास में नाग देवता की पूजा करने से भोलेनाथ प्रसन्न होते हैं और नवविवाहिताओं को अखंड सौभाग्य का आशीर्वाद देते हैं।" पूजा के दौरान महिलाएं बासी फूलों से नाग-नागिन की पूजा करती हैं, जिसे शुभ माना जाता है।


मधुश्रावणी व्रत: एक अद्भुत उत्सव

मधुश्रावणी व्रत मिथिलांचल की समृद्ध सांस्कृतिक परंपरा का एक अद्वितीय उदाहरण है, जो नवविवाहिताओं को न केवल धार्मिक आस्था से जोड़ता है, बल्कि उन्हें पारिवारिक जीवन की जिम्मेदारियों और मर्यादाओं को भी सिखाता है। यह पर्व हर वर्ष सावन में सामाजिक, धार्मिक और पारिवारिक एकता का अद्भुत प्रतीक बनकर सामने आता है।