मनरेगा से जी राम जी में बदलाव: किसानों और निवेशकों के लिए नई संभावनाएं
मनरेगा का नया रूप
मनरेगा के जी राम जी में परिवर्तन से अब निवेशक और संपन्न क्षेत्रों के किसान सस्ती दर पर श्रमिकों को आसानी से प्राप्त कर सकेंगे। मनरेगा ने इस प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न की थी, और यह उन वर्गों की इस कानून से शुरू से ही एक प्रमुख शिकायत रही है।
सरकार का दृष्टिकोण
महात्मा गांधी राष्ट्रीय रोजगार गारंटी अधिनियम (मनरेगा) को विकसित भारत-गारंटी फॉर रोजगार एवं आजीविका मिशन-ग्रामीण (वीबी-जी राम जी) में परिवर्तित करने का नरेंद्र मोदी सरकार का इरादा नागरिकों के प्रति उसके दृष्टिकोण को दर्शाता है। मनरेगा उस समय स्थापित हुआ जब यूपीए-1 सरकार ने विकास की अधिकार आधारित अवधारणा को अपनाया था। इसका उद्देश्य गरिमामय जीवन की न्यूनतम आवश्यकताओं को कानूनी अधिकार के रूप में मान्यता देना और उन आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए योजनाएं लागू करना था। इस दृष्टिकोण से कई कानून सामान्य कल्याण योजनाओं से भिन्न थे।
नए प्रावधान और प्रभाव
मनरेगा को मांग केंद्रित योजना के रूप में स्थापित किया गया था, जिसमें ग्रामीण क्षेत्रों में अकुशल श्रमिकों को कम से कम 100 दिन काम उपलब्ध कराना सरकार के लिए अनिवार्य था। इस काम के लिए पारिश्रमिक का पूरा खर्च केंद्र सरकार उठाती थी, जबकि सामग्री जुटाने का खर्च राज्य सरकार के खजाने से आता था। अब ये सभी प्रावधान बदलने जा रहे हैं। कुछ छोटे राज्यों को छोड़कर, बाकी सभी राज्यों की सरकारों को पारिश्रमिक का 40 प्रतिशत हिस्सा अपने कोष से देना होगा। इसके अलावा, योजना अब मांग केंद्रित नहीं रहेगी। जी राम जी बजट का उपयोग सरकार की प्राथमिकताओं के अनुसार किया जाएगा। इसे बोलचाल की आर्थिक भाषा में सप्लाई साइड योजना के रूप में देखा जा सकता है।
नौकरी की सुरक्षा में कमी
यह योजना अब साल भर चलने वाली नहीं रहेगी और कृषि सीजन के दौरान इसे रोक दिया जाएगा। इस प्रकार, बदलाव केवल नाम में नहीं, बल्कि अधिनियम की मूल संरचना में भी है। इसका परिणाम यह होगा कि आपातकाल में न्यूनतम रोजगार की गारंटी देने और श्रमिकों के पलायन को रोकने में मनरेगा का जो महत्वपूर्ण योगदान था, वह अब समाप्त हो जाएगा। इससे निवेशकों और कृषि सीजन में संपन्न क्षेत्रों के किसानों को सस्ती दरों पर श्रमिक मिल सकेंगे। मनरेगा ने इस प्रक्रिया में रुकावट उत्पन्न की थी, और यह उन वर्गों की एक बड़ी शिकायत रही है। जबकि जिन गरीब श्रमिकों के लिए यह सहारा था, वे अब अधिक असुरक्षित स्थिति में होंगे।
