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रोहिणी आचार्य का किडनी दान: एक सामाजिक दृष्टिकोण

रोहिणी आचार्य ने अपने पिता के लिए किडनी दान किया, लेकिन अब वह अपने फैसले पर पछता रही हैं। उनका अनुभव भारत में महिलाओं के अंग दान की जटिलताओं को उजागर करता है। रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में 80% अंग दान करने वाले महिलाएं हैं, जबकि प्राप्तकर्ताओं में उनकी हिस्सेदारी केवल 18.9% है। यह असंतुलन सामाजिक और आर्थिक कारणों से प्रभावित है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहते हैं विशेषज्ञ।
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रोहिणी आचार्य का किडनी दान: एक सामाजिक दृष्टिकोण

रोहिणी आचार्य का किडनी दान


नई दिल्ली: बिहार की प्रमुख राजनीतिक परिवार से जुड़ी रोहिणी आचार्य हाल ही में बिहार चुनाव के बाद चर्चा में हैं। उन्होंने अपने पिता लालू प्रसाद यादव की जान बचाने के लिए अपनी एक किडनी दान की थी। उस समय उन्होंने गर्व से कहा था कि यह केवल मांस का एक छोटा हिस्सा है, जिसे वह खुशी-खुशी अपने पिता के लिए देना चाहती हैं।


उनके शब्दों में पिता के प्रति गहरा प्रेम झलकता था। लेकिन चुनाव के बाद, परिवार के प्रति हमेशा समर्पित रहने वाली रोहिणी अब बेहद दुखी हैं, और यह उनकी हालिया सोशल मीडिया पोस्ट से स्पष्ट है। हालात इतने बिगड़ गए हैं कि उन्होंने परिवार से खुद को अलग करने का निर्णय लिया है।


रोहिणी ने अपने पिता को किडनी दान करने के निर्णय को अपनी नासमझी बताया और कहा कि किसी भी महिला को ऐसा नहीं करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि शादी के बाद ससुराल ही महिला का असली घर होता है और उन्हें अपने ससुराल के प्रति जिम्मेदार रहना चाहिए।


हालांकि रोहिणी ने अपने किडनी दान के फैसले को गलत बताया, लेकिन भारत में महिलाओं के लिए अंग दान, विशेषकर किडनी दान, एक जोखिम भरा निर्णय होता है। फिर भी, महिलाएं परिवार के सदस्यों की जान बचाने के लिए बड़ा दिल दिखाती हैं।


भारत में जीवित अंग दान में एक बड़ा असंतुलन है। राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO) की रिपोर्ट के अनुसार, देश में 80% जीवित अंग दान करने वाले महिलाएं हैं, जबकि अंग प्राप्त करने वालों में महिलाओं की हिस्सेदारी केवल 18.9% है। यह आंकड़े एक्सपेरिमेंटल एंड क्लीनिकल ट्रांसप्लांटेशन जर्नल में प्रकाशित अध्ययन पर आधारित हैं।


अध्ययन में 1995 से 2021 के बीच 36,640 अंग प्रत्यारोपण प्रक्रियाओं का विश्लेषण किया गया। इसमें पाया गया कि महिलाओं को अंग प्रत्यारोपण का लाभ पुरुषों की तुलना में बहुत कम मिला। कुल प्राप्तकर्ताओं में केवल 6,945 महिलाएं (18.9%) थीं, जबकि बाकी पुरुष थे। कई चिकित्सकों का मानना है कि यह अंतर केवल सामाजिक कारणों से नहीं, बल्कि बीमारी के पैटर्न से भी प्रभावित होता है।


सामाजिक कारणों का प्रभाव


रिपोर्ट में बताया गया है कि भारत में सामाजिक दृष्टिकोण महिलाओं और पुरुषों के प्रति भिन्न है। एक पुरुष के लिए अंग दान से मना करना आसान होता है, जबकि महिलाओं को अक्सर देखभाल करने वाली भूमिका में देखा जाता है। कई बार महिलाएं अपनी सेहत को खतरे में डालकर भी पति, पिता या बेटे की जान बचाने के लिए अंग दान कर देती हैं।


आर्थिक और आयु का अंतर


विशेषज्ञों का कहना है कि असंतुलन केवल लिंग आधारित नहीं है। जब दाता और प्राप्तकर्ता एक ही परिवार के नहीं होते, तो अक्सर दाता, प्राप्तकर्ता की तुलना में गरीब होता है। इसके अलावा, दान देने वाला व्यक्ति आमतौर पर उम्र में छोटा होता है, जबकि प्राप्तकर्ता उम्र में बड़ा होता है।


भारत का वैश्विक स्थान


डब्ल्यूएचओ के अनुसार, जीवित अंग प्रत्यारोपण में भारत अब अमेरिका के बाद दुनिया का दूसरा सबसे बड़ा केंद्र बन गया है। यहां 74% किडनी डोनर महिलाएं हैं, जबकि अमेरिका में यह आंकड़ा 62% है। लिवर दान के मामलों में भी भारत में महिलाओं की संख्या 60.5% और अमेरिका में 53% है।


क्राउडफंडिंग प्लेटफॉर्म मिलाप द्वारा जुटाए गए आंकड़ों में भी यही प्रवृत्ति देखने को मिलती है। उनके द्वारा मदद किए गए 495 लिवर ट्रांसप्लांट में से 66% पुरुष मरीजों के लिए और 34% महिला मरीजों के लिए थे।