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श्री हरि स्तोत्र: भगवान विष्णु की स्तुति का अद्भुत पाठ

श्री हरि स्तोत्र भगवान विष्णु की स्तुति का एक महत्वपूर्ण पाठ है, जो भक्तों को उनकी कृपा प्राप्त करने में मदद करता है। इसमें भगवान विष्णु के स्वरूप और महिमा का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से सभी दुख, रोग और पाप समाप्त होते हैं। जानें इस अद्भुत स्तोत्र के पाठ का महत्व और इसके फलश्रुति के बारे में।
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श्री हरि स्तोत्र: भगवान विष्णु की स्तुति का अद्भुत पाठ

श्री हरि स्तोत्र का महत्व


श्री हरि स्तोत्र भगवान विष्णु के प्रति समर्पित एक स्तुति है, जिसमें उनके स्वरूप और महिमा का वर्णन किया गया है। इस स्तोत्र का पाठ करने से भक्तों को भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की कृपा प्राप्त होती है। इसमें भगवान विष्णु की पूजा के साथ-साथ उन्हें बार-बार प्रणाम किया जाता है। मान्यता है कि भगवान विष्णु सृष्टि के पालनहार हैं, और उनकी कृपा से सभी रोग, दोष, दुख और पाप समाप्त हो जाते हैं। इस स्तोत्र का पाठ करने वाले भक्तों के लिए वैकुंठ लोक के द्वार खुल जाते हैं। आइए, श्री हरि स्तोत्र के बारे में और जानें।


श्री हरि स्तोत्रम्

।।श्री हरि स्तोत्रम्।।


जगज्जालपालं चलत्कण्ठमालंशरच्चन्द्रभालं महादैत्यकालं।


नभोनीलकायं दुरावारमायंसुपद्मासहायम् भजेऽहं भजेऽहं।।


सदाम्भोधिवासं गलत्पुष्पहासंजगत्सन्निवासं शतादित्यभासं।


गदाचक्रशस्त्रं लसत्पीतवस्त्रंहसच्चारुवक्त्रं भजेऽहं भजेऽहं।।


श्री हरि स्तोत्र का पाठ

रमाकण्ठहारं श्रुतिव्रातसारंजलान्तर्विहारं धराभारहारं।


चिदानन्दरूपं मनोज्ञस्वरूपंध्रुतानेकरूपं भजेऽहं भजेऽहं।।


जराजन्महीनं परानन्दपीनंसमाधानलीनं सदैवानवीनं।


जगज्जन्महेतुं सुरानीककेतुंत्रिलोकैकसेतुं भजेऽहं भजेऽहं।।


फलश्रुति

।।फलश्रुति।।


इदं यस्तु नित्यं समाधाय चित्तंपठेदष्टकं कण्ठहारम् मुरारेः।


स विष्णोर्विशोकं ध्रुवं याति लोकंजराजन्मशोकं पुनर्विन्दते नो।।