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सावन में शिव की आराधना: रुद्राष्टकम का महत्व

सावन का महीना भगवान शिव के भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है। इस दौरान भक्तजन शिव की पूजा करते हैं और रुद्राष्टकम का पाठ करते हैं। जानें इस पवित्र महीने में शिव की आराधना का महत्व और कैसे रुद्राष्टकम का पाठ करने से शत्रुओं का नाश होता है। भगवान राम ने भी रावण पर विजय पाने के लिए इसका पाठ किया था। इस लेख में रुद्राष्टकम के श्लोक भी शामिल हैं, जो आपकी पूजा को और भी प्रभावी बनाएंगे।
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सावन में शिव की आराधना: रुद्राष्टकम का महत्व

सावन का महीना और भगवान शिव


सावन का महीना भगवान शिव के भक्तों के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दौरान भक्तजन अपने आराध्य भगवान शिव की पूजा करते हैं और व्रत रखते हैं। यह माह हर साल आषाढ़ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी तिथि से आरंभ होता है, जो इस वर्ष 11 जुलाई को है। मान्यता है कि इस महीने में सच्चे मन से पूजा करने वाले भक्तों की सभी इच्छाएं भगवान भोलेनाथ पूरी करते हैं। सावन का यह पवित्र महीना 11 जुलाई से शुरू होकर 9 अगस्त तक चलेगा। भक्तों को इस दौरान शिव की आराधना करनी चाहिए और शिव स्तुति के लिए रुद्राष्टकम का पाठ करना चाहिए।


श्री राम का रुद्राष्टकम पाठ

कहा जाता है कि यदि कोई शत्रु आपको परेशान कर रहा है, तो शिव मंदिर या अपने घर में शिव के सामने एक आसन लगाकर 7 दिनों तक सुबह और शाम रुद्राष्टकम का पाठ करने से बड़े शत्रुओं का नाश होता है। रामचरितमानस के अनुसार, भगवान राम ने रावण पर विजय पाने के लिए रामेश्वरम में शिवलिंग की स्थापना की और रुद्राष्टकम का पाठ किया, जिससे उन्हें शिव की कृपा प्राप्त हुई और रावण पर विजय मिली। रुद्राष्टकम का उल्लेख उत्तरकाण्ड में भी किया गया है।


श्री शिव रुद्राष्टकम

श्री शिव रुद्राष्टकम का पाठ:


नमामीशमीशान निर्वाण रूपं, विभुं व्यापकं ब्रह्म वेदः स्वरूपम्।


निजं निर्गुणं निर्विकल्पं निरीहं, चिदाकाश माकाशवासं भजेऽहम्॥


निराकार मोंकार मूलं तुरीयं, गिराज्ञान गोतीतमीशं गिरीशम्।


करालं महाकाल कालं कृपालुं, गुणागार संसार पारं नतोऽहम्॥


तुषाराद्रि संकाश गौरं गभीरं, मनोभूत कोटि प्रभा श्री शरीरम्।


स्फुरन्मौलि कल्लोलिनी चारू गंगा, लसद्भाल बालेन्दु कण्ठे भुजंगा॥


चलत्कुण्डलं शुभ्र नेत्रं विशालं, प्रसन्नाननं नीलकण्ठं दयालम्।


मृगाधीश चर्माम्बरं मुण्डमालं, प्रिय शंकरं सर्वनाथं भजामि॥


प्रचण्डं प्रकष्टं प्रगल्भं परेशं, अखण्डं अजं भानु कोटि प्रकाशम्।


त्रयशूल निर्मूलनं शूल पाणिं, भजेऽहं भवानीपतिं भाव गम्यम्॥


कलातीत कल्याण कल्पान्तकारी, सदा सच्चिनान्द दाता पुरारी।


चिदानन्द सन्दोह मोहापहारी, प्रसीद प्रसीद प्रभो मन्मथारी॥


न यावद् उमानाथ पादारविन्दं, भजन्तीह लोके परे वा नराणाम्।


न तावद् सुखं शांति सन्ताप नाशं, प्रसीद प्रभो सर्वं भूताधि वासं॥


न जानामि योगं जपं नैव पूजा, न तोऽहम् सदा सर्वदा शम्भू तुभ्यम्।


जरा जन्म दुःखौघ तातप्यमानं, प्रभोपाहि आपन्नामामीश शम्भो॥


रूद्राष्टकं इदं प्रोक्तं विप्रेण हर्षोतये
ये पठन्ति नरा भक्तयां तेषां शंभो प्रसीदति।।