हुसैनी शायरी: मुहर्रम की पवित्रता और इमाम हुसैन की कुर्बानी

हुसैनी शायरी का महत्व
हुसैनी शायरी हिंदी में: मुहर्रम का महीना केवल एक तारीख नहीं है, बल्कि यह सच्चाई और बलिदान का प्रतीक है। इस्लामी कैलेंडर का पहला महीना, मुहर्रम, हर मुसलमान के लिए विशेष है। इसे अल्लाह का महीना माना जाता है, जो पवित्रता और इबादत का प्रतीक है। विशेष रूप से शिया समुदाय के लिए, यह महीना इमाम हुसैन की शहादत की याद दिलाता है। कर्बला में उनकी कुर्बानी हमें सिखाती है कि सच्चाई के लिए संघर्ष करना ही असली जीवन है। आइए, इस मुहर्रम की शायरी के माध्यम से इस पवित्र महीने की महत्ता को समझें और इमाम हुसैन की शहादत को याद करें।
हुसैनी शायरी
कर्बला की शहादत ने इस्लाम को नया रूप दिया, खून तो बहा था
लेकिन कुर्बानी ने हौसले की उड़ान दिखाई।
कर्बला की कहानी में कत्लेआम था लेकिन हौसले के आगे हर कोई झुका था,
खुदा के बंदे ने शहीद होकर अपना नाम अमर किया।
क्या जलवा था कर्बला में, हुसैन ने सजदे में जाकर अपना सिर कटाया,
नेजे पर सिर था और जुबां पर आयतें, कुरान इस तरह सुनाया हुसैन ने।
गुरूर टूट गया, कोई मर्तबा नहीं मिला, सितम के बाद भी कुछ हासिल नहीं हुआ,
सिर-ऐ-हुसैन यजीद के पास है लेकिन शिकस्त यह है कि फिर भी झुका नहीं।
हुसैन जिंदाबाद शायरी
जन्नत की चाह में लोग कह रहे हैं, जन्नत तो कर्बला में हुसैन ने खरीदी,
दुनिया और आख़िरत में चैन से जीना हो तो अली से सीखें और हुसैन से मरें।
अल्लाह के करीब आओ तो बात बनेगी, ईमान को फिर से जगाओ तो बात बनेगी,
कर्बला में बहा लहू, उनके मकसद को समझो तो बात बनेगी।
सिर गैर के आगे न झुकाने वाला और नेजे पर कुरान सुनाने वाला, इस्लाम से क्या पूछते हो कौन है हुसैन,
हुसैन है इस्लाम को इस्लाम बनाने वाला।
मुहर्रम की शायरी
मुहर्रम का महीना इमाम हुसैन की कुर्बानी को याद करने का समय है, जब उन्होंने कर्बला में अपने साथियों के साथ सच्चाई के लिए अपनी जान दी। उनकी शहादत हर मुसलमान को सिखाती है कि हक की राह पर चलना आसान नहीं, लेकिन यही जीवन का असली उद्देश्य है। मुहर्रम की शायरी में उनकी कुर्बानी की कहानी बयां की जाती है, जो दिल को छू जाती है। “हुसैन की राह पर चलने का जज़्बा, सच्चाई की मशाल जलाए रखता है,” ऐसी पंक्तियां हर किसी को प्रेरित करती हैं।
मुहर्रम का 10वां दिन, जिसे आशूरा कहा जाता है, सबसे महत्वपूर्ण माना जाता है। इस दिन इमाम हुसैन की शहादत को मातम के साथ याद किया जाता है। कई लोग रोज़ा रखते हैं, दुआएं मांगते हैं, और अल्लाह से अपनी गलतियों की माफी मांगते हैं। मुहर्रम की शायरी इस दिन की महत्ता को और गहराई से बयां करती है। “आशूरा का दिन, दिल में हुसैन की याद, सिखाता है सच्चाई की राह पर बढ़ने का जज़्बा,” ऐसी शायरी हर दिल को छू जाती है। यह दिन केवल मातम का नहीं, बल्कि सच्चे मुसलमान बनने की प्रेरणा का भी है।
इमाम हुसैन शायरी
सबा भी जो कर्बला से गुजरे तो उसे कहता है अर्थ वाला,
तू धीरे गुजरे यहाँ मेरा हुसैन सो रहा है।
ना जाने क्यों मेरी आँखों में आ गए आँसू,
सिखा रहा था मैं बच्चे को कर्बला लिखना।
पानी की तलब हो तो एक काम किया कर, कर्बला के नाम पर एक जाम पिया कर,
दी मुझको हुसैन इब्न अली ने ये नसीहत, जालिम हो मुकाबिल तो मेरा नाम लिया कर।
कर्बला की शायरी
दश्त-ए-बाला को अर्श का जीना बना दिया, जंगल को मुहम्मद का मदीना बना दिया।
हर जर्रे को नजफ का नगीना बना दिया, हुसैन तुमने मरने को जीना बना दिया।
न हिला पाया वो रब की मैहर को, भले ही जीत गया वो कायर जंग,
पर जो मौला के डर पर बेखौफ शहीद हुआ, वही था असली और सच्चा पैगंबर।
आँखों को कोई ख्वाब तो दिखायी दे, ताबीर में इमाम का जलवा तो दिखायी दे,
ए इब्न-ऐ-मुर्तजा सूरज भी एक छोटा सा जरा दिखायी दे।