क्या पाकिस्तान की 'धन्यवाद कूटनीति' है महज एक दिखावा?

पाकिस्तान की स्थिति
Pakistan: हाल ही में भारत और पाकिस्तान के बीच तनाव के बाद युद्धविराम की घोषणा ने पाकिस्तान को राहत दी। लेकिन इसके साथ ही 'शो ऑफ' की राजनीति भी शुरू हो गई। पाकिस्तान के प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने यह दिखाने की कोशिश की कि उनके साथ पूरा इस्लामी जगत खड़ा है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है? क्या उन्होंने जिन देशों का उल्लेख किया, वे सच में उनके साथ हैं? आइए समझते हैं इस 'धन्यवाद कूटनीति' की असली कहानी।
कूटनीति या दिखावा?
7 मई को जब भारत और पाकिस्तान के बीच सीजफायर की घोषणा हुई, तो पाकिस्तान ने दावा किया कि यह अंतरराष्ट्रीय प्रयासों का परिणाम है। प्रधानमंत्री शहबाज़ शरीफ ने अमेरिका, सऊदी अरब, यूएई, तुर्की और कतर जैसे देशों का विशेष रूप से धन्यवाद किया। उनके बयान में कहा गया कि ये देश पाकिस्तान के 'भाइयों' की तरह उसके साथ खड़े रहे। खासकर तुर्की के राष्ट्रपति एर्दोआन, सऊदी प्रिंस मोहम्मद बिन सलमान, यूएई के मोहम्मद बिन जायद और कतर के अमीर को विशेष धन्यवाद दिया गया।
असलियत क्या है?
इन बयानों के बाद सवाल उठने लगे। असल में इनमें से किसी भी देश ने भारत के खिलाफ कोई खुला समर्थन नहीं दिया। न सऊदी अरब, न कतर और न ही यूएई ने भारत-पाक तनाव के दौरान कोई आधिकारिक बयान जारी किया जिसमें पाकिस्तान की पीठ थपथपाई गई हो। इससे स्पष्ट है कि पाकिस्तान केवल अपनी छवि को चमकाने की कोशिश कर रहा था।
भारत की मजबूत कूटनीति
भारत ने इस पूरे मामले में संयम बनाए रखा और सटीक कूटनीति का सहारा लिया। उसने न केवल पाकिस्तान को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग-थलग किया, बल्कि अमेरिका जैसे देशों को भी इस मामले में अपनी सख्त स्थिति समझा दी। ट्रंप ने भले ही सीजफायर की बात की हो, लेकिन पाकिस्तान के पक्ष में कोई स्पष्ट झुकाव नहीं दिखा।
नतीजा क्या निकला?
पाकिस्तान अपनी जनता और दुनिया के सामने यह दिखाने की कोशिश कर रहा है कि वह कूटनीति में जीत गया, लेकिन हकीकत यह है कि भारत की सख्त रणनीति और अंतरराष्ट्रीय पकड़ के सामने उसकी एक नहीं चली। अब भले ही पाकिस्तान जितना मर्जी दुनिया को धन्यवाद कहे, लेकिन सच्चाई यह है कि सिर्फ तुर्की और चीन को छोड़कर किसी और ने उसके साथ खड़ा होना जरूरी नहीं समझा।
शहबाज़ शरीफ की 'धन्यवाद डिप्लोमेसी' एक दिखावा ज्यादा लगती है, हकीकत कम। भारत की सूझबूझ वाली रणनीति के सामने पाकिस्तान की कूटनीति फीकी पड़ गई है।