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गया का विष्णुपद मंदिर: श्राद्ध कर्म और मोक्ष का अद्भुत स्थल

गया का विष्णुपद मंदिर हिंदू धर्म में श्राद्ध कर्म और मोक्ष का एक महत्वपूर्ण स्थल है। यहां पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को मोक्ष मिलता है। इस मंदिर की विशेषताएँ और पौराणिक कथाएँ इसे और भी खास बनाती हैं। जानें इस अद्भुत मंदिर के बारे में और कैसे यह श्रद्धालुओं के लिए एक महत्वपूर्ण तीर्थ स्थल है।
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हिंदू धर्म में श्राद्ध कर्म का महत्व

गया का विष्णुपद मंदिर: श्राद्ध कर्म और मोक्ष का अद्भुत स्थल


लाइव हिंदी खबर :- हिंदू धर्म में वैदिक परंपरा के अनुसार कई रीति-रिवाज़, व्रत-त्यौहार और परंपराएं विद्यमान हैं। हिंदूओं में जन्म से लेकर मृत्यु तक अनेक संस्कार किए जाते हैं, जिनमें अंत्येष्टि को अंतिम संस्कार माना जाता है। हालांकि, अंत्येष्टि के बाद भी कुछ कर्म होते हैं जिन्हें मृतक के परिवार के सदस्यों, विशेषकर संतान को करना आवश्यक होता है।


श्राद्ध कर्म इन्हीं में से एक है। हर महीने की अमावस्या तिथि को श्राद्ध कर्म किया जा सकता है, लेकिन भाद्रपद मास की पूर्णिमा से लेकर आश्विन मास की अमावस्या तक विशेष रूप से श्राद्ध कर्म करने का विधान है। इस पर्व के माध्यम से अपने पूर्वजों के प्रति श्रद्धा प्रकट की जाती है।


गया जी: मोक्ष का स्थान

गया जी : जहां श्राद्ध से मृतक की आत्मा को मिलता है मोक्ष…
कहा जाता है कि इस दौरान अपने पितरों का श्राद्ध करने से उनकी आत्मा को मोक्ष प्राप्त होता है और वे अपने परिवार पर आशीर्वाद बनाए रखते हैं। शास्त्रों में उल्लेख है कि यदि कोई गया जी में अपने पितरों का श्राद्ध करता है, तो मृतक की आत्मा को स्थायी मोक्ष मिलता है और फिर बार-बार श्राद्ध करने की आवश्यकता नहीं होती। आज हम आपको बिहार के गया में एक ऐसे मंदिर के बारे में बताएंगे, जिसके बारे में बहुत कम लोग जानते हैं।


बिहार के गया में भगवान विष्णु के पदचिह्नों पर स्थित एक मंदिर है, जिसे विष्णुपद मंदिर कहा जाता है। यहां पितृपक्ष के दौरान श्रद्धालुओं की बड़ी संख्या आती है और इसे धर्मशिला के नाम से भी जाना जाता है। कहा जाता है कि जो लोग यहां अपने पितरों का तर्पण करने आते हैं, वे इस विष्णु मंदिर में भगवान के चरणों के दर्शन करने भी अवश्य आते हैं।


विष्णुपद मंदिर की विशेषताएँ

मान्यता है कि भगवान के चरणों के दर्शन से सभी दुख समाप्त होते हैं और उनके पूर्वज पुण्यलोक को प्राप्त करते हैं। मंदिर में भगवान के चरणों का श्रृंगार रक्त चंदन से किया जाता है, जो एक पुरानी परंपरा है। विष्णुपद मंदिर में भगवान विष्णु का चरण चिह्न ऋषि मरीची की पत्नी माता धर्मवत्ता की शिला पर है।


राक्षस गयासुर को स्थिर करने के लिए धर्मपुरी से माता धर्मवत्ता शिला को लाया गया था, जिसे गयासुर पर रखकर भगवान विष्णु ने अपने पैरों से दबाया। इसके बाद शिला पर भगवान के चरण चिह्न बने। यह माना जाता है कि विष्णुपद ही एक ऐसा स्थान है, जहां भगवान विष्णु के चरणों का साक्षात दर्शन किया जा सकता है।


मंदिर का निर्माण और संरचना

विष्णुपद मंदिर को कसौटी पत्थर से बनाया गया है, जिसे जिले के अतरी प्रखंड से लाया गया था। इस मंदिर की ऊंचाई लगभग सौ फीट है और सभा मंडप में 44 पीलर हैं। यहां 54 वेदियों में से 19 वेदियां विष्णुपद में हैं, जहां पितरों के मुक्ति के लिए पिंडदान किया जाता है। पूरे सालभर यहां पिंडदान की प्रक्रिया चलती है।


मंदिर के शीर्ष पर 50 किलो सोने का कलश और ध्वजा है। विष्णुपद गर्भगृह में 50 किलो चांदी का छत्र और अष्टपहल है, जिसमें भगवान विष्णु की चरण पादुका विराजमान हैं। यहां भगवान विष्णु के चरण चिन्ह के स्पर्श से मनुष्य सभी पापों से मुक्त हो जाते हैं।


सीताकुंड और पौराणिक महत्व

विष्णुपद मंदिर के सामने फल्गु नदी के पूर्वी तट पर सीताकुंड स्थित है। यहां माता सीता ने महाराज दशरथ का पिंडदान किया था। पौराणिक काल में यह स्थल अरण्य वन के नाम से प्रसिद्ध था।


भगवान श्रीराम और माता सीता महाराज दशरथ का पिंडदान करने आए थे, जहां माता सीता ने बालू फल्गु जल से पिंड अर्पित किया था, जिसके बाद से यहां बालू से बने पिंड देने का महत्व है।


विष्णुपद मंदिर से जुड़ी कथा

विष्णुपद मंदिर से जुड़ी कथा…
गया तीर्थ में पितरों का श्राद्ध और तर्पण का उल्लेख पुराणों में मिलता है। पुराणों के अनुसार, गयासुर नामक एक असुर ने घोर तपस्या करके भगवान से आशीर्वाद प्राप्त किया। इस आशीर्वाद का दुरुपयोग करके गयासुर ने देवताओं को परेशान करना शुरू कर दिया।


गयासुर के अत्याचार से परेशान देवताओं ने भगवान विष्णु की शरण ली और उनसे प्रार्थना की कि वह गयासुर से उनकी रक्षा करें। भगवान विष्णु ने अपनी गदा से गयासुर का वध किया और उसके सिर पर एक पत्थर रखकर उसे मोक्ष प्रदान किया।