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नेताजी एक्सप्रेस: 158 साल पुरानी ट्रेन की अनकही कहानी

नेताजी एक्सप्रेस, जो पहले हावड़ा-कालका मेल के नाम से जानी जाती थी, भारतीय रेलवे की एक ऐतिहासिक ट्रेन है। इसकी यात्रा 1866 में शुरू हुई थी और यह कोलकाता को कालका से जोड़ती है। ब्रिटिश काल में इसकी महत्ता थी, जब नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने इसे अपनी ऐतिहासिक यात्रा के लिए चुना। इस ट्रेन के नाम में कई बदलाव आए हैं, लेकिन यह आज भी भारतीय रेलवे के गौरव और विरासत का प्रतीक है। जानें इस ट्रेन की अनकही कहानी और इसके ऐतिहासिक महत्व के बारे में।
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भारतीय रेलवे की ऐतिहासिक धरोहर

भारतीय रेलवे को देश की जीवनरेखा माना जाता है, जो लाखों यात्रियों के लिए एक विश्वसनीय और किफायती यात्रा साधन है। वंदे भारत, राजधानी, शताब्दी और तेजस जैसी आधुनिक ट्रेनों के बीच एक ट्रेन है, जिसकी कहानी 158 साल पुरानी है। यह ट्रेन हावड़ा-कालका मेल के नाम से जानी जाती है, जिसे अब नेताजी एक्सप्रेस कहा जाता है।


हावड़ा-पेशावर एक्सप्रेस का सफर

इस ट्रेन की शुरुआत 1 जनवरी, 1866 को हावड़ा-पेशावर एक्सप्रेस के रूप में हुई थी। प्रारंभ में यह हावड़ा और दिल्ली के बीच चलती थी, लेकिन 1891 में इसका मार्ग कालका तक बढ़ा दिया गया। यह ट्रेन कोलकाता को हरियाणा के कालका शहर से जोड़ती है, और पूर्व तथा उत्तर भारत के बीच एक महत्वपूर्ण संपर्क स्थापित करती है।


ब्रिटिश काल में ट्रेन की महत्ता

ब्रिटिश शासन के दौरान, यह ट्रेन अत्यधिक महत्वपूर्ण मानी जाती थी। ब्रिटिश अधिकारी इसी ट्रेन से कोलकाता और शिमला के बीच यात्रा करते थे। इसकी ऐतिहासिकता को इस तथ्य से भी समझा जा सकता है कि 1941 में नेताजी सुभाष चंद्र बोस ने ब्रिटिश नजरबंदी से भागने के लिए इसी ट्रेन का सहारा लिया था। उन्होंने झारखंड के गोमोह स्टेशन से यात्रा शुरू की थी।


ट्रेन के नाम में बदलाव

इस ट्रेन के नाम में समय के साथ कई बदलाव आए हैं। पहले इसे ईस्ट इंडिया रेलवे मेल कहा जाता था, फिर कालका मेल और 2021 में नेताजी की 125वीं जयंती पर इसे 'नेताजी एक्सप्रेस' नाम दिया गया। आज भी यह ट्रेन भारतीय रेलवे के गौरवशाली अतीत और निरंतर विकास का प्रतीक है। जबकि आधुनिक रेल सेवाएं तकनीक और गति में आगे बढ़ रही हैं, नेताजी एक्सप्रेस देश के इतिहास और विरासत को अपने मार्ग पर जीवित रखे हुए है।