रूस की सलाह: भारत-पाकिस्तान विवाद का समाधान बातचीत से

रूस की मध्यस्थता की पेशकश
पहलगाम में हुए आतंकवादी हमले के बाद, रूस ने भारत को पाकिस्तान के साथ बातचीत के माध्यम से समस्या का समाधान करने की सलाह दी। यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काया कालास ने कहा, 'मैं दोनों देशों से संयम बरतने की अपील करती हूं। यह महत्वपूर्ण है कि सभी पक्षों को एक साथ आकर लाभ उठाने की सोच से बचना चाहिए, क्योंकि इससे सभी को नुकसान हो रहा है।' उन्होंने यह भी कहा कि भारत को यह समझना चाहिए कि इस नीति ने उसे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितना अलग कर दिया है।
रूस के विदेश मंत्री सर्गेई लावरोव ने 3 मई को भारत के विदेश मंत्री सुब्रह्मण्यम जयशंकर से फोन पर बातचीत के दौरान यह बात कही। उन्होंने सुझाव दिया कि भारत और पाकिस्तान को अपनी असहमति को शिमला समझौते और लाहौर घोषणापत्र के अनुसार द्विपक्षीय रूप से हल करना चाहिए।
इस रुख से यह स्पष्ट नहीं होता कि पाकिस्तान की सेना या सरकार को इस हमले के लिए दोषी ठहराया जा रहा है। यह दृष्टिकोण अमेरिका और यूरोपीय संघ के विचारों से भी मेल खाता है, जिन्होंने भारत से तनाव कम करने की अपील की है। जयशंकर-लावरोव वार्ता से एक दिन पहले, अमेरिकी उप-राष्ट्रपति जेडी वांस ने कहा था कि भारत को आतंकवादी हमले का जवाब इस तरह देना चाहिए कि इससे क्षेत्रीय टकराव न हो।
यूरोपीय संघ की विदेश नीति प्रमुख काया कालास ने भी इसी दिन कहा कि भारत और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव खतरनाक है और उन्होंने दोनों पक्षों से संयम बरतने की अपील की।
इन प्रतिक्रियाओं में एक समानता है कि भारत और पाकिस्तान को समान स्तर पर रखा गया है। यह भारत की मुख्यधारा सोच के लिए चुभने वाला है, क्योंकि इसे आक्रांता और शिकार दोनों को एक समान दृष्टिकोण से देखने के रूप में देखा जा रहा है।
हालांकि, गंभीर कूटनीति के दृष्टिकोण से, रूस की बेरुखी भारत के लिए चिंताजनक है। रूस, जो सोवियत काल से भारत का मित्र रहा है, से इस बार विशेष प्रतिक्रिया की उम्मीद थी, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
जयशंकर से बातचीत के एक दिन बाद, लावरोव ने पाकिस्तान के विदेश मंत्री इशहाक डार को फोन किया और भारत और पाकिस्तान के बीच मध्यस्थता की पेशकश की।
इसके बाद, रूस के राष्ट्रपति व्लादीमीर पुतिन ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फोन किया और पहलगाम के पीड़ितों के प्रति संवेदना व्यक्त की।
हालांकि, यह बात अजीब लगती है कि पुतिन ने 22 अप्रैल को पहलगाम हमले के बाद केवल वही बातें दोहराईं। इससे यह संकेत नहीं मिलता कि रूस भारत के साथ खड़ा है।
यह ध्यान देने योग्य है कि 2019 तक, रूस ने जम्मू-कश्मीर मामले में भारत का समर्थन किया था। उस समय, रूस ने भारत के निर्णय को संप्रभु और आंतरिक मामला बताया था।
हालांकि, इस बार रूस ने कहा है कि यह मुद्दा द्विपक्षीय दायरे में रहना चाहिए, लेकिन इस बार की पृष्ठभूमि ऐसी है कि इसे भारत के पक्ष में नहीं समझा जा सकता।
संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पहलगाम हमले पर चर्चा के दौरान, पाकिस्तान ने यह सुनिश्चित किया कि प्रस्ताव में उसका नाम न आए। पश्चिमी देशों के साथ-साथ रूस ने भी इस पर कोई आपत्ति नहीं की।
यह घटनाक्रम भारत के लिए रूस की छवि पर पुनर्विचार के लिए प्रेरित करता है। सवाल यह है कि रूस के रुख में बदलाव क्यों आया है?
इसका उत्तर हाल के घटनाक्रम में छिपा है, विशेषकर 24 फरवरी 2022 के बाद, जब रूस ने यूक्रेन में सैन्य कार्रवाई शुरू की। भारत ने इसकी निंदा नहीं की और न ही अमेरिका और यूरोप के प्रतिबंधों का समर्थन किया।
भारत ने इन प्रतिबंधों का लाभ उठाने की नीति अपनाई। इसके बावजूद, भारत ने यह संकेत नहीं दिया कि उसकी प्राथमिकता पश्चिमी खेमे के साथ जुड़ने में है।
विश्लेषकों का मानना है कि यह नीति लंबे समय तक कारगर नहीं रह सकती। दुनिया दो खेमों में बंट रही है, जिसमें एक खेमे में चीन और रूस हैं।
भारत के लिए यह स्थिति अनंत काल तक नहीं रह सकती। दोनों खेमों के बीच अंतर्विरोध बढ़ने के साथ, भारत को यह तय करना होगा कि उसकी नई विश्व व्यवस्था के संबंध में दृष्टि क्या है।
इस समय, भारत की प्राथमिकता पाकिस्तान को सबक सिखाने की है, जबकि रूस भारत को ऐसा कदम न उठाने की सलाह दे रहा है।
इसलिए, यह सवाल उठता है कि 'all alignment' की नीति का क्या लाभ हुआ है? यह सोच सभी को नुकसान पहुंचा रही है। वर्तमान सरकार अपनी गलतियों को स्वीकार नहीं करती और विपक्ष भी नरेंद्र मोदी को दोषी ठहराकर अपने कर्तव्यों से मुक्त हो जाता है।
इसलिए, 'all alignment' जैसी नीति पर चर्चा नहीं हो रही है, जबकि यह स्पष्ट है कि इस नीति ने भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितना अकेला कर दिया है।