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Arab NATO: मिडिल ईस्ट में नई सामरिक गठबंधन की आवश्यकता

मिडिल ईस्ट में राजनीतिक हलचल के बीच Arab NATO की अवधारणा फिर से चर्चा में है। इस प्रस्तावित सामरिक गठबंधन में 22 देशों के शामिल होने की संभावना है, जिसमें पाकिस्तान और तुर्की भी शामिल हो सकते हैं। भारत के लिए यह गठबंधन ऊर्जा और सुरक्षा के लिहाज से फायदेमंद हो सकता है, लेकिन पाकिस्तान को मिलने वाले समर्थन के कारण यह भारत के लिए चुनौती भी बन सकता है। जानिए इस नए गठबंधन के संभावित प्रभावों के बारे में।
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Arab NATO: मिडिल ईस्ट में नई सामरिक गठबंधन की आवश्यकता

मिडिल ईस्ट में राजनीतिक हलचल और Arab NATO की मांग

Middle East New Strategic Alliance Arab NATO: मिडिल ईस्ट में राजनीतिक गतिविधियाँ तेजी से बढ़ रही हैं। हाल ही में इजरायल ने दोहा पर हवाई हमला किया, जिसके बाद एक बार फिर Arab NATO की आवश्यकता पर जोर दिया जा रहा है। लेकिन यह Arab NATO वास्तव में क्या है?


Arab NATO की अवधारणा और समर्थन

Arab NATO एक प्रस्तावित सामरिक गठबंधन है, जिसे हाल ही में दोहा में आयोजित आपातकालीन अरब-इस्लामी शिखर सम्मेलन में 40 से अधिक मुस्लिम देशों के नेताओं ने समर्थन दिया। आइए जानते हैं कि इस संगठन में शामिल होने वाले संभावित देश कौन से हैं और भारत को इससे क्या लाभ या हानि हो सकती है।


Arab NATO की शुरुआत और इसके पीछे का कारण

2015 में पहली बार अरब नाटो की अवधारणा सामने आई थी, जिसे मिस्र ने पेश किया था। उस समय यमन में राजनीतिक संकट और ISIS के उदय के कारण अरब देशों को एकजुट करने की आवश्यकता महसूस हुई।


गठबंधन में शामिल होने वाले संभावित देश

मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, अरब नाटो में 22 देशों के शामिल होने की संभावना है, जिनमें कुवैत, मिस्र, जॉर्डन, सऊदी अरब, संयुक्त अरब अमीरात (यूएई), बहरीन, ओमान और कतर शामिल हैं। इराक भी इस गठबंधन का हिस्सा बन सकता है। हालांकि, यह स्पष्ट नहीं है कि इस संगठन को कब तक वास्तविकता में लाया जाएगा।


भारत के लिए Arab NATO के फायदे और नुकसान

राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार, भारत को इस गठबंधन से ऊर्जा, सुरक्षा और आतंकवाद विरोधी सहयोग मिल सकता है, जिससे मिडिल ईस्ट में क्षेत्रीय संतुलन बनाने में मदद मिलेगी। भारत लगभग 80% कच्चा तेल मिडिल ईस्ट से आयात करता है। यदि यह गठबंधन 2026 तक लागू होता है, तो मिडिल ईस्ट में शक्ति संतुलन में बदलाव आ सकता है। हालांकि, पाकिस्तान को इस गठबंधन से सैन्य और कूटनीतिक समर्थन मिल सकता है, जो भारत के लिए चिंता का विषय है। इसके अलावा, अरब देशों के एकजुट होने पर भारत के लिए आर्थिक और सामाजिक संतुलन बनाए रखना चुनौतीपूर्ण हो सकता है।