चना की बुवाई के लिए महत्वपूर्ण सुझाव और सावधानियाँ
                           
                        चना की बुवाई का सही समय और तकनीक
जानें रख-रखाव और बचाव के उपाय
 उत्तर भारत में चने की बुवाई का समय अब शुरू हो चुका है। खरीफ फसलों की कटाई के बाद, जिन क्षेत्रों में सिंचाई की सुविधा है, वहां नवंबर के अंत से दिसंबर के पहले सप्ताह तक चना बोना सबसे उपयुक्त होता है। आईसीएआर से जुड़े कृषि वैज्ञानिकों ने किसानों के लिए चने की बुवाई से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी साझा की है। उन्होंने बताया कि जिन खेतों में उकठा रोग का प्रभाव अधिक होता है, वहां थोड़ी देरी से बुवाई करने से लाभ होता है।
उपयुक्त किस्में
कृषि वैज्ञानिकों का कहना है कि चने की खेती के लिए किस्म का चयन अत्यंत महत्वपूर्ण है। पछेती बुआई के लिए पूसा चना विजय, एचसी-5, जेजी-12 जैसी देसी प्रजातियाँ और पूसा 1003, राज विजय काबुली 101, जीएनजी 1292, हरियाणा काबुली चना-4 जैसी काबुली किस्में उपयुक्त मानी जाती हैं।
कम पानी वाले इलाकों में बोएं ये किस्में
जिन क्षेत्रों में सूखा या सीमित जल उपलब्धता होती है, वहां अत्यधिक जलवायु सहिष्णु किस्में जैसे पूसा 3043 (बीजी 3043), पूसा चना 10216 (बीजीएम 10216) और सुपर एनिगेरी-1 (एमएबीसी-डब्ल्यूआर-एसएआई) की सिफारिश की जाती है। उच्च तापमान सहन करने वाली फसलों के लिए भी पूसा 3043 प्रभावी मानी गई है।
बुआई से पहले करें बीजों का उपचार
बीजोपचार चने की पैदावार बढ़ाने में एक महत्वपूर्ण कदम है। कृषि विशेषज्ञ सलाह देते हैं कि बीजों को बोने से पहले कवकनाशी से उपचारित करें ताकि रोगों से बचाव हो सके। इसके लिए प्रति किलोग्राम बीज पर एक ग्राम बाविस्टीन या 5-10 ग्राम ट्राइकोडर्मा का उपयोग किया जा सकता है।
इसके अलावा, बीजों को राइजोबियम कल्चर से भी उपचारित करना चाहिए, जिससे पौधों की वृद्धि में सुधार होता है। एक हेक्टेयर क्षेत्र के लिए राइजोबियम के दो पैकेट पर्याप्त होते हैं और बीजोपचार बुआई से 10-12 घंटे पहले किया जाना चाहिए। इससे उपज में 15 से 20 प्रतिशत तक की वृद्धि देखी गई है।
दलहनी फसलों में फॉस्फोरस की भूमिका भी अत्यंत महत्वपूर्ण होती है। मिट्टी में उपलब्ध न होने वाले फॉस्फेट को पौधों के लिए उपयोगी बनाने में फॉस्फेट घुलनशील बैक्टीरिया (पीएसबी) का प्रयोग कारगर साबित होता है।
बुआई करते समय रखें इन बातों का ध्यान
चने की बुआई अपेक्षाकृत गहराई में करनी चाहिए, ताकि पौधों की जड़ों तक पर्याप्त नमी बनी रहे। सिंचित क्षेत्रों में 5 से 7 सेंटीमीटर और बारानी इलाकों में 7 से 10 सेंटीमीटर की गहराई तक बुआई उपयुक्त रहती है। पछेती बुआई के लिए पंक्ति से पंक्ति की दूरी 22.5 सेंटीमीटर रखी जानी चाहिए। प्रति हेक्टेयर 20 किलोग्राम नाइट्रोजन और 50 किलोग्राम फॉस्फोरस बुआई के समय देना चाहिए। जहां मिट्टी में गंधक की कमी है, वहां 20 किलोग्राम गंधक और जिंक की कमी वाली भूमि में 25 किलोग्राम जिंक सल्फेट प्रति हेक्टेयर डालना फायदेमंद होता है।
