भारत की सुरक्षा चुनौतियाँ: CDS जनरल अनिल चौहान का महत्वपूर्ण बयान
सुरक्षा के लिए तैयार रहना अनिवार्य
नई दिल्ली: भारत को भविष्य में सुरक्षा से संबंधित जटिल और बहुआयामी चुनौतियों का सामना करने के लिए खुद को तैयार रखना आवश्यक है। यह बात चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (CDS) जनरल अनिल चौहान ने सोमवार को आईआईटी बॉम्बे में एक कार्यक्रम के दौरान कही। उन्होंने बताया कि आतंकवाद और पड़ोसी देशों के साथ लंबे समय से चल रहे क्षेत्रीय विवाद भारत के लिए विभिन्न प्रकार के सैन्य खतरों का निर्माण करते हैं, जिनसे निपटने के लिए ठोस रणनीति और मजबूत तैयारी की आवश्यकता है।
संघर्षों की दोहरी चुनौती
जनरल चौहान ने बताया कि भारत को दो प्रकार के संघर्षों के लिए मानसिक और रणनीतिक रूप से तैयार रहना चाहिए। पहला, आतंकवाद से निपटने के लिए अल्पकालिक लेकिन उच्च तीव्रता वाले सैन्य अभियानों की आवश्यकता है, और दूसरा, भूमि विवादों के कारण लंबे समय तक चलने वाले संघर्ष। उन्होंने स्पष्ट किया कि आतंकवादी गतिविधियों को रोकने के लिए त्वरित और निर्णायक कार्रवाई आवश्यक होती है, जबकि सीमा विवादों से जुड़े टकराव लंबे समय तक चल सकते हैं और इनमें धैर्य और संसाधनों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
परमाणु संपन्न पड़ोसी देशों का खतरा
हालांकि जनरल चौहान ने किसी विशेष देश का नाम नहीं लिया, लेकिन उन्होंने संकेत दिया कि भारत के दोनों प्रमुख पड़ोसी देशों के साथ सीमा विवाद हैं। उन्होंने कहा कि भारत को यह ध्यान में रखना चाहिए कि उसके विरोधियों में से एक परमाणु हथियार से लैस है और दूसरा भी। ऐसे में भारत की प्रतिरोधक क्षमता को किसी भी स्थिति में कमजोर नहीं होने देना चाहिए। उन्होंने जोर देकर कहा कि परमाणु संतुलन बनाए रखना राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण है।
आतंकवाद के खिलाफ त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता
सीडीएस ने कहा कि भारत को आतंकवाद के खिलाफ अल्पकालिक और तेज़ संघर्षों के लिए हमेशा तैयार रहना चाहिए। उन्होंने 'ऑपरेशन सिंदूर' का उदाहरण देते हुए बताया कि ऐसे अभियानों में गति, समन्वय और निर्णायक कार्रवाई की महत्वपूर्णता होती है। हालांकि, उन्होंने यह भी कहा कि दीर्घकालिक संघर्षों से बचने की कोशिश की जानी चाहिए, क्योंकि उनका आर्थिक और मानवीय प्रभाव अधिक होता है।
आधुनिक युद्ध का नया स्वरूप
आधुनिक युद्ध पर चर्चा करते हुए जनरल चौहान ने कहा कि दुनिया सैन्य मामलों की तीसरी क्रांति के मुहाने पर है, जिसे उन्होंने “अभिसारी युद्ध” (Convergent Warfare) कहा। उनके अनुसार, अब युद्ध केवल हथियारों तक सीमित नहीं रह गया है। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, क्वांटम टेक्नोलॉजी, एज कंप्यूटिंग, हाइपरसोनिक हथियार, उन्नत सामग्री और रोबोटिक्स जैसी तकनीकें युद्ध के स्वरूप को पूरी तरह बदल रही हैं।
मल्टी-डोमेन ऑपरेशंस की आवश्यकता
जनरल चौहान ने कहा कि भविष्य में मल्टी-डोमेन ऑपरेशंस केवल एक विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन जाएंगे। उन्होंने बताया कि एक क्षेत्र में की गई कार्रवाई का प्रभाव अन्य क्षेत्रों पर भी पड़ेगा। 'ऑपरेशन सिंदूर' के दौरान यह स्पष्ट रूप से देखा गया, जहां थल, जल, वायु, साइबर और अन्य क्षेत्रों में एक साथ तेजी से कार्रवाई की गई।
तीनों सेनाओं के बीच समन्वय की आवश्यकता
उन्होंने कहा कि बहु-क्षेत्रीय अभियानों के सफल संचालन के लिए सेना, नौसेना और वायु सेना के साथ-साथ साइबर, अंतरिक्ष और संज्ञानात्मक क्षेत्र में काम करने वाले बलों के बीच बेहतर तालमेल और नियंत्रण आवश्यक होगा। भविष्य के युद्धों में तकनीक और मानव कौशल का संतुलित उपयोग ही निर्णायक भूमिका निभाएगा।
