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IIT मद्रास ने कृषि अपशिष्ट से विकसित की बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री

IIT मद्रास के शोधकर्ताओं ने एक नई बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री विकसित की है, जो कृषि अपशिष्ट से बनाई गई है। यह नवाचार प्लास्टिक प्रदूषण और कृषि अपशिष्ट जलाने की समस्या का समाधान करता है। इस सामग्री का निर्माण फंगस की मदद से किया गया है, जो पर्यावरण के लिए लाभकारी है। जानें इस शोध के पीछे की कहानी और इसके संभावित लाभों के बारे में।
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IIT मद्रास ने कृषि अपशिष्ट से विकसित की बायोडिग्रेडेबल पैकेजिंग सामग्री

पर्यावरणीय चुनौतियों का समाधान

भारत में हर साल बढ़ते प्लास्टिक कचरे और कृषि अपशिष्ट ने गंभीर पर्यावरणीय समस्याएं उत्पन्न की हैं। प्लास्टिक प्रदूषण मिट्टी, जल और वायु को नुकसान पहुंचा रहा है, जबकि फसलों के अवशेषों को जलाने से वायु गुणवत्ता में गिरावट आ रही है। भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (IIT) मद्रास के वैज्ञानिकों ने एक नई खोज की है, जो इन दोनों मुद्दों का समाधान पेश करती है। उन्होंने कृषि अपशिष्ट से एक नई पैकेजिंग सामग्री बनाई है, जो पारंपरिक प्लास्टिक फोम का एक टिकाऊ और बायोडिग्रेडेबल विकल्प है। यह नवाचार न केवल पर्यावरण के लिए लाभकारी है, बल्कि किसानों और ग्रामीण अर्थव्यवस्था के लिए भी नए अवसरों का सृजन करेगा।


भारत में हर साल 350 मिलियन टन से अधिक कृषि अपशिष्ट उत्पन्न होता है, जिसका अधिकांश हिस्सा जलाया जाता है या सड़ने के लिए छोड़ दिया जाता है, जिससे वायु प्रदूषण और संसाधनों की बर्बादी होती है। इसके अलावा, देश में हर साल 4 मिलियन टन से अधिक प्लास्टिक कचरा उत्पन्न होता है, जो पर्यावरण के लिए एक गंभीर खतरा है। प्लास्टिक फोम, जैसे कि विस्तारित पॉलीस्टाइनिन (EPS) और विस्तारित पॉलीथीन (EPE), आमतौर पर पैकेजिंग में उपयोग होते हैं, लेकिन ये सड़ने में सैकड़ों साल लेते हैं और माइक्रोप्लास्टिक का निर्माण करते हैं। IIT मद्रास की यह पहल इन दोनों पर्यावरणीय समस्याओं का समाधान करती है।


माइसीलियम-आधारित बायो-कम्पोजिट्स का विकास

IIT मद्रास के शोधकर्ताओं ने फंगस, जैसे कि गैनोडर्मा ल्यूसिडम और प्ल्यूरोटस ओस्ट्रेटस, को कृषि और कागज के कचरे पर उगाकर इस नई सामग्री का विकास किया है। फंगस की जड़ें, जिन्हें माइसीलियम कहा जाता है, इन अपशिष्ट पदार्थों में फैलकर एक मजबूत और हल्की संरचना बनाती हैं। इस प्रक्रिया में विभिन्न फंगल स्ट्रेन और सब्सट्रेट्स के सर्वोत्तम संयोजनों का उपयोग किया गया। परिणामी बायो-कम्पोजिट सामग्री मजबूत और टिकाऊ है, जो पारंपरिक प्लास्टिक फोम के समान या उससे बेहतर यांत्रिक गुण प्रदर्शित करती है।


गैनोडर्मा को कार्डबोर्ड पर उगाने से विस्तारित पॉलीस्टाइनिन (EPS) से अधिक संपीड़न शक्ति प्राप्त हुई है।


नेचरवर्क्स टेक्नोलॉजीज: नवाचार का व्यावसायीकरण

इस महत्वपूर्ण अनुसंधान का नेतृत्व डॉ. लक्ष्मीनाथ कुंदनाती ने किया है। इस परियोजना को केंद्र सरकार और IIT मद्रास के 'न्यू फैकल्टी इनिशिएशन ग्रांट' द्वारा वित्त पोषित किया गया था। इस उत्पाद के विकास और व्यावसायीकरण के लिए, शोधकर्ताओं ने IIT मद्रास द्वारा इन्क्यूबेटेड एक स्टार्टअप 'नेचरवर्क्स टेक्नोलॉजीज' की स्थापना की है।


इस स्टार्टअप का उद्देश्य किफायती और पर्यावरण के अनुकूल पैकेजिंग विकल्प प्रदान करना है, जिससे हानिकारक प्लास्टिक का स्थान लिया जा सके। यह शोध केवल प्रयोगशाला तक सीमित नहीं है, बल्कि इसने यांत्रिक गुणों, जल प्रतिरोध और बायोडिग्रेडेबिलिटी के साथ अपनी व्यवहार्यता का प्रदर्शन किया है। यह 'वेस्ट टू वैल्यू' और 'सर्कुलर इकोनॉमी' के सिद्धांतों को बढ़ावा देता है, जिससे अपशिष्ट पदार्थों को मूल्यवान संसाधनों में बदला जा सके और एक स्थायी भविष्य का निर्माण हो सके।