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काशी तमिल संगमम : सांस्कृतिक निशा में तमिल पारंपरिक नृत्यों की आकर्षक प्रस्तुतियां

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काशी तमिल संगमम : सांस्कृतिक निशा में तमिल पारंपरिक नृत्यों की आकर्षक प्रस्तुतियां


काशी तमिल संगमम : सांस्कृतिक निशा में तमिल पारंपरिक नृत्यों की आकर्षक प्रस्तुतियां


- नमोघाट पर थपत्तम नृत्य पर झूमे श्रद्धालु

- बांसुरी वादक आशीष कुमार ने भी जादू बिखेरा

वाराणसी, 22 फरवरी (हि.स.)। काशी तमिल संगमम के तीसरे संस्करण में शनिवार की शाम नमोघाट के मुक्ताकाशी मंच पर तमिलनाडु के विभिन्न पारंपरिक नृत्यों की आकर्षक प्रस्तुतियां देख श्रद्धालु झूम उठे। काशी और तमिलनाडु के प्राचीन सांस्कृतिक एवं आध्यात्मिक संबंधों को पुनर्जीवित करने के लिए आयोजित सांस्कृतिक निशा की शुरुआत बांसुरी वादक आशीष कुमार के बांसुरी वादन से हुई। बांसुरी वादक ने अपने पहली प्रस्तुति से ही लोगों को मंत्रमुग्ध कर दिया। इसके बाद तमिलनाडु के पारम्परिक थपत्तम नृत्य की ऊर्जावान प्रस्तुति से कलाकारों ने महफिल जमा दिया। यह नृत्य विशेष रूप से ढोल (थप्पू) के माध्यम से प्रस्तुत किया जाता है और तमिलनाडु के लोक उत्सवों तथा अनुष्ठानों का अभिन्न अंग है। इसके बाद कोल्लाटम (छड़ी नृत्य) की अद्भुत प्रस्तुति हुई, जिसमें नर्तकों ने छड़ियों के तालमेल के साथ नृत्य कर एक लयबद्ध समरसता का प्रदर्शन किया। यह नृत्य तमिलनाडु की प्राचीन सांस्कृतिक विरासत का प्रतीक है और समूह समन्वय की उत्कृष्ट मिसाल पेश करता है। सांस्कृतिक संध्या का प्रमुख आकर्षण कंबरामायण पर आधारित नाट्य मंचन रहा, जिसमें संत कंबन द्वारा रचित तमिल रामायण के प्रसंगों को सजीव अभिनय और नृत्य के माध्यम से प्रस्तुत किया गया। इस नाट्य मंचन ने दर्शकों को तमिल साहित्य की समृद्धि और उसकी गहरी सांस्कृतिक जड़ों से परिचित कराया। इसके पहले सांस्कृतिक निशा के मुख्य अतिथि पंडित कोविनूर नारायण स्वामी ने हिंदी और तमिल परंपराओं के गहरे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक संबंधों को बताया। उन्होंने भारत की सांस्कृतिक विविधता में एकता के महत्व को रेखांकित करते हुए कहा कि यह आयोजन हमारी साझी विरासत को समझने और उसे आने वाली पीढ़ियों तक पहुंचाने का एक सशक्त माध्यम है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में शिक्षा मंत्रालय ने भारतीय संस्कृति के विभिन्न आयामों को समाहित करने और उसे वैश्विक पटल पर प्रस्तुत करने की दिशा में उल्लेखनीय कार्य किए हैं। काशी-तमिल संगमम इस दिशा में एक महत्वपूर्ण पहल है, जो भारत की सांस्कृतिक विरासत को पुनर्जीवित करने के साथ-साथ हिंदी और तमिल भाषी समुदायों के बीच आपसी सहयोग और समन्वय को भी बढ़ावा देगा। अन्य वक्ताओं के अनुसार यह आयोजन भारतीय संस्कृति की विविधता में एकता का संदेश देता है और एक भारत, श्रेष्ठ भारत की भावना को सशक्त बनाता है। यह महोत्सव न केवल हमारी सांस्कृतिक जड़ों को मजबूत कर रहा है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी समृद्ध विरासत से जोड़ने का भी कार्य कर रहा है।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी