Mathura में श्रीकृष्ण जन्मभूमि विवाद: क्या है शाही ईदगाह मस्जिद का सच?
Mathura: विवाद का ऐतिहासिक संदर्भ
Mathura: मथुरा, जिसे भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि माना जाता है, में सदियों से एक विवाद चल रहा है। यह विवाद श्रीकृष्ण जन्मभूमि और शाही ईदगाह मस्जिद के बीच है। हिंदू समुदाय का मानना है कि जिस स्थान पर मस्जिद स्थित है, वहां पहले एक भव्य मंदिर था, जिसे मुगल सम्राट औरंगजेब के आदेश पर ध्वस्त किया गया था। हाल ही में, इस मामले ने फिर से सुर्खियां बटोरी हैं, क्योंकि अदालतों में इसकी सुनवाई तेज हो गई है।
शाही ईदगाह मस्जिद विवाद का सार
शाही ईदगाह मस्जिद मामला क्या है?
इस विवाद का मुख्य मुद्दा यह है कि 13.37 एकड़ की जिस भूमि पर शाही ईदगाह मस्जिद स्थित है, वह वास्तव में श्रीकृष्ण जन्मभूमि की भूमि है। हिंदू पक्ष चाहता है कि इस मस्जिद को वहां से हटाया जाए और इस स्थान को पूरी तरह से मंदिर क्षेत्र घोषित किया जाए। हालांकि, मस्जिद समिति और सुन्नी वक्फ बोर्ड इस दावे को खारिज करते हैं और कहते हैं कि यह भूमि कानूनी रूप से उनके अधिकार में है।
इतिहास में विवाद की जड़ें
इतिहास के पन्नों में विवाद की जड़ें
1618 में ओरछा के राजा वीर सिंह बुंदेला ने कटरा केशवदेव मंदिर का निर्माण कराया।
1670 में मुगल शासक औरंगजेब ने इस मंदिर को गिरवा दिया और यहां शाही ईदगाह मस्जिद बना दी गई।
1803 में अंग्रेजों ने मथुरा पर नियंत्रण कर लिया।
1815 में ईस्ट इंडिया कंपनी ने मंदिर की पूरी भूमि नीलाम कर दी, जिसे राजा पटनीमल ने खरीदा।
1944 में प्रसिद्ध उद्योगपति जुगल किशोर बिड़ला ने इस भूमि को खरीदकर श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट के नाम कर दिया।
1968 में श्रीकृष्ण जन्मस्थान सेवा संघ और शाही ईदगाह मस्जिद समिति के बीच समझौता हुआ, जिसके तहत मस्जिद का प्रबंधन ईदगाह समिति को सौंप दिया गया।
कोर्ट में चल रहा मामला
कोर्ट में क्या चल रहा है मामला?
2020 में हिंदू पक्ष ने अदालत में समझौते को चुनौती देते हुए दावा किया कि यह भूमि पूरी तरह से मंदिर क्षेत्र का हिस्सा है।
मई 2023 में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने इस मामले में 18 याचिकाओं पर सुनवाई शुरू की।
14 दिसंबर 2023 को इलाहाबाद हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि मस्जिद परिसर का सर्वेक्षण किया जाए।
16 जनवरी 2024 को सुप्रीम कोर्ट ने इस सर्वे को रोक दिया और कहा कि 23 जनवरी को इस मामले की आगे सुनवाई होगी।
कानूनी दृष्टिकोण
क्या कहता है कानून?
मस्जिद समिति का कहना है कि 1991 का पूजा स्थल अधिनियम इस मामले पर रोक लगाता है। यह कानून कहता है कि किसी भी धार्मिक स्थल का स्वरूप वही रहेगा, जो 15 अगस्त 1947 को था। इसलिए, वे इस विवाद को गैरकानूनी बताते हैं।
भविष्य की संभावनाएं
अब आगे क्या?
यह मामला अभी भी अदालत में विचाराधीन है और आगे की सुनवाई के बाद ही यह तय होगा कि यह विवाद किस दिशा में जाएगा। हिंदू पक्ष जहां मंदिर की मांग कर रहा है, वहीं मुस्लिम पक्ष का कहना है कि यह कानूनी रूप से मस्जिद की भूमि है।