PM मोदी ने RSS की शताब्दी पर गर्व से किया संबोधन, जानें क्या कहा?

PM मोदी का RSS पर संबोधन
PM मोदी का RSS पर बयान: भारत के 79वें स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर लाल किले से राष्ट्र को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) की 100 वर्षों की सेवा की सराहना की। उन्होंने गर्व से कहा कि RSS आज दुनिया का सबसे बड़ा गैर-सरकारी संगठन है, जिसने राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण योगदान दिया है।
RSS की राष्ट्र निर्माण में भूमिका
प्रधानमंत्री ने अपने भाषण में कहा कि यह संगठन 100 वर्ष पहले 'व्यक्ति निर्माण से राष्ट्र निर्माण' के सिद्धांत पर कार्यरत है। स्वयंसेवकों ने मातृभूमि के कल्याण को सर्वोपरि मानते हुए अपने जीवन को राष्ट्र सेवा के लिए समर्पित कर दिया है। मोदी ने इसे भारत के सामाजिक और सांस्कृतिक ताने-बाने को मजबूत करने वाला आंदोलन बताया, जिसने हर कठिन परिस्थिति में समाज को संगठित किया है।
भव्य समारोह की तैयारी
26 अगस्त से आरएसएस का शताब्दी समारोह: RSS अपनी शताब्दी वर्षगांठ को विशेष रूप से मनाने की योजना बना रहा है। संगठन 26 से 28 अगस्त तक नई दिल्ली के विज्ञान भवन में 'संघ यात्रा के 100 वर्ष, नए क्षितिज' शीर्षक से एक भव्य आयोजन करेगा। इस कार्यक्रम में संघ की स्थापना से लेकर अब तक की उपलब्धियों, विचारधारा और समाज के लिए किए गए योगदान को प्रस्तुत किया जाएगा। यह आयोजन न केवल अतीत का लेखा-जोखा होगा बल्कि भविष्य की दिशा भी तय करेगा।
मोहन भागवत का संदेश
स्वतंत्रता दिवस समारोह में आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने भी देशवासियों को संबोधित किया। उन्होंने कहा कि आज़ादी केवल मनाने की चीज नहीं है, बल्कि इसे बनाए रखने के लिए निरंतर त्याग और मेहनत की आवश्यकता है। उनके अनुसार, स्वतंत्रता को जीवित रखने के लिए हर नागरिक को सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
स्वतंत्रता की रक्षा का आह्वान
भागवत ने याद दिलाया कि हमारे पूर्वजों ने भारत की आज़ादी के लिए सर्वोच्च बलिदान दिया था। अब यह हमारी जिम्मेदारी है कि हम न केवल इस आजादी की रक्षा करें बल्कि भारत को आत्मविश्वासी बनाते हुए विश्व गुरु की दिशा में अग्रसर करें। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जब दुनिया अनेक विवादों से जूझ रही है, भारत को अपने आदर्शों और मूल्यों के आधार पर विश्व का मार्गदर्शन करना होगा।
PM मोदी के संबोधन का महत्व
प्रधानमंत्री मोदी का संबोधन केवल RSS की प्रशंसा तक सीमित नहीं था, बल्कि यह संदेश भी था कि भारत का विकास सामाजिक एकजुटता और राष्ट्रीय चेतना के बल पर ही संभव है। उनका कहना था कि स्वयंसेवकों का त्याग और समर्पण देश के भविष्य की नींव को मजबूत करता है।