पंजाब विधानसभा में राष्ट्रीय कृषि विपणन नीति का मसौदा रद्द करने का प्रस्ताव पारित
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चंडीगढ़, 25 फ़रवरी (हि.स.)। पंजाब विधानसभा में एक प्रस्ताव पारित कर राष्ट्रीय कृषि मंडीकरण नीति के मसौदे को किसान विरोधी बताते हुए रद्द कर दिया गया है। इस मुद्दे पर बहस के दौरान मुख्यमंत्री ने इस मसौदे को पूरी तरह से राज्य के हितों के खिलाफ बताया। कांग्रेस ने भाजपा पर पंजाब विरोधी का आरोप लगाया।
मंगलवार को राज्य के कृषि और किसान कल्याण मंत्री गुरमीत सिंह खुड्डियां ने विधानसभा में राष्ट्रीय कृषि मंडीकरण नीति मसौदे को रद्द करने के प्रस्ताव को पेश किया। बाद में सदन में बहस का जवाब देते हुए मुख्यमंत्री भगवंत सिंह मान ने कहा कि राज्य सरकार पहले ही इस मसौदे का केंद्र सरकार को लिखित जवाब भेजकर कड़ा विरोध कर चुकी है। उन्होंने कहा कि इस मसौदे को राज्य सरकार पूरी तरह से रद्द कर दिया है क्योंकि यह पूरी तरह से राज्य के हितों के खिलाफ है।
मुख्यमंत्री सिंह मान ने कहा कि भले ही प्रधानमंत्री अपनी सरकार की ओर से किसानों के लिए की गई पहलों के बारे में बहुत दम भरते हैं, लेकिन दिल से वह और उनकी सरकार किसानों, खासकर पंजाब के किसानों के साथ दुश्मनी भरा व्यवहार अपनाती है। मुख्यमंत्री ने कहा कि इसी सोच के कारण प्रधानमंत्री ने किसानों के लिए न्यूनतम समर्थन मूल्य की घोषणा नहीं की गई, जबकि उन्होंने किसानों के साथ इसका वादा किया था। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार राज्य के साथ सौतेला व्यवहार कर रही है क्योंकि पंजाब के किसानों ने तीन कृषि कानूनों के खिलाफ बड़े आंदोलन का नेतृत्व किया था, जिसके बाद मजबूर होकर केंद्र सरकार को झुकना पड़ा था।
सदन में मुख्यमंत्री ने कहा कि संविधान के अनुसार कृषि विपणन राज्य का विषय है। उस समय के संविधान निर्माताओं ने यह महसूस किया था कि कृषि गतिविधियां विभिन्न क्षेत्रों की भौगोलिक स्थितियों पर निर्भर करती हैं और हर राज्य की स्थिति अलग होती है क्योंकि राज्य अपने फसली चक्र, विपणन ढांचे की स्थिति और स्थानीय जरूरतों को समझने की बेहतर स्थिति में होते हैं। इससे यह सुनिश्चित होता है कि कृषि संबंधी नीतियां राज्य की आवश्यकताओं, परिस्थितियों और चुनौतियों के आधार पर बनाई जा सकें। इस नीति के माध्यम से केंद्र सरकार द्वारा राज्यों के अधिकारों पर कब्जा करने का प्रयास किया जा रहा है। मुख्यमंत्री ने कहा कि राष्ट्रीय कृषि मंडीकरण नीति किसानों के लंबे विरोध के बाद भारत सरकार द्वारा 2021 में रद्द किए गए तीन कृषि कानूनों के विवादास्पद प्रावधानों को पुनः लाने का प्रयास है। उन्होंने कहा कि कृषि मंडीकरण भारतीय संविधान के अनुसार राज्य का विषय है, इसलिए भारत सरकार को ऐसी कोई नीति लाने के बजाय इस विषय पर आवश्यकता अनुसार उचित नीतियां बनाने के लिए यह मामला राज्य की समझ पर छोड़ देना चाहिए।
इससे पहले बहस के दौरान विधानसभा में विपक्ष के नेता प्रताप सिंह बाजवा ने कहा कि जब कृषि कानून आए थे, तब उन्होंने पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को चेतावनी दी थी कि ये कानून किसानों के हित में नहीं हैं और उनके लिए मौत का वारंट साबित होंगे। बाजवा ने कहा कि किसानों ने इन कानूनों के खिलाफ मोर्चा खोला, जिसमें 700 से ज्यादा किसानों की मौत हुई। इसके बाद सरकार को कानून वापस लेने पड़े। उन्होंने भाजपा को पंजाब विरोधी (एंटी-पंजाब) बताया और कहा कि भाजपा राजनीतिक और आर्थिक रूप से पंजाब को कमजोर करने की साजिश कर रही है। उन्होंने आरोप लगाया कि केंद्र सरकार ने पंजाब के 8,000 करोड़ रुपये रोक लिए हैं।
बाजवा ने कहा कि अगर पंजाब सरकार सच में पंजाब के हक की लड़ाई लडऩा चाहती है तो तगड़े वकील खड़े करे और मोदी के घर के बाहर धरना दे। उन्होंने भरोसा दिलाया कि अगर ऐसा किया जाता है तो वह भी सरकार का समर्थन करेंगे। बाजवा ने कहा कि भले ही सदन में वह सरकार से लड़ते हैं, लेकिन पंजाब की भलाई के लिए सभी दलों को एकजुट होना होगा, ताकि पंजाब के हक की रक्षा की जा सके।
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हिन्दुस्थान समाचार / संजीव शर्मा