Newzfatafatlogo

Rath Yatra 2025: महाप्रभु जगन्नाथ की ज्वरलीला और अनवसर वास

इस वर्ष 2025 में महाप्रभु जगन्नाथ की स्नान यात्रा 11 जून को मनाई जाएगी। इस दिन भगवान को स्नान कराने के बाद उन्हें ज्वर हो जाता है, जिसके चलते वे 14 दिनों तक भक्तों से छिपे रहते हैं। इस दौरान उन्हें विशेष देखभाल दी जाती है। जानें इस अनवसर वास के पीछे की मान्यताएँ और रथ यात्रा की तैयारी के बारे में।
 | 
Rath Yatra 2025: महाप्रभु जगन्नाथ की ज्वरलीला और अनवसर वास

महाप्रभु जगन्नाथ का स्नान यात्रा

Rath Yatra 2025: ज्येष्ठ महीने की पूर्णिमा को 'देवस्नान पूर्णिमा' या 'स्नान यात्रा' के रूप में मनाया जाता है, जो इस वर्ष 11 जून, 2025 को है। यह दिन ओडिशा के पुरी में महाप्रभु जगन्नाथ, उनके भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा से जुड़ा हुआ है। इस दिन, पुरी के जगन्नाथ मंदिर से भगवान जगन्नाथ, बलभद्र जी और सुभद्रा जी को सिंहासन से बाहर लाकर स्नान कराया जाता है।


महाप्रभु का स्नान कैसे संपन्न हुआ

महाप्रभु जगन्नाथ को स्नान मंड पर लाकर 108 कलशों से शीतल जल से स्नान कराया गया। यह जल विशेष रूप से मंदिर के पवित्र कुएं से लाया गया था। 108 कलशों में भरे इस जल में सुगंधि मिलाई गई और फिर इसे भगवान पर धीरे-धीरे डाला गया।


यह साल का पहला अवसर है जब भगवान जगन्नाथ, बलभद्र और सुभद्रा भक्तों के सामने स्नान करते हैं। स्नान के बाद भगवान को गजवेश यानी हाथी के रूप में सजाया जाता है।


महाप्रभु की बीमारी का कारण

चूंकि यह स्नान पूर्णिमा को होता है, इसे स्नान पूर्णिमा, महा स्नान या देवस्नान कहा जाता है। कहा जाता है कि स्नान के दौरान जल इतना ठंडा होता है कि महाप्रभु जगन्नाथ ठंड से कांपने लगते हैं, जिसके बाद उन्हें तेज बुखार हो जाता है। इसके चलते भगवान 14 दिनों तक भक्तों से छिपे रहते हैं, जिसे 'अनवसर वास' कहा जाता है।


अनवसर वास में क्या होता है?

अनवसर वास के दौरान भगवान को विश्राम दिया जाता है, जैसे किसी बीमार व्यक्ति को दिया जाता है। इस समय भगवान को केवल श्वेत सूती वस्त्र पहनाए जाते हैं और उनके सभी आभूषण हटा दिए जाते हैं। विशेष वैद्यों की देखरेख में उनके लिए औषधीय काढ़ा और प्रसाद तैयार किया जाता है।


नेत्र उत्सव का आयोजन

जगन्नाथ मंदिर के पुजारी बताते हैं कि स्नान के लिए उपयोग किया जाने वाला जल सभी तीर्थों का जल होता है। अनवसर वास की अवधि समाप्त होने पर 25 जून को भगवान के विग्रह को सजाया जाएगा और उन्हें नए नेत्र प्रदान किए जाएंगे। इसके बाद भक्तों को दर्शन दिए जाएंगे, जिसे महाप्रभु का नेत्र दर्शन उत्सव कहा जाता है। 26 जून को भगवान के नवयौवन दर्शन होंगे और रथ यात्रा के लिए अनुमति ली जाएगी। 27 जून की सुबह भगवान की रथ यात्रा गुंडिचा मंदिर के लिए आरंभ होगी।