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SEBI के नए नियम: म्यूचुअल फंड फीस संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव

भारतीय बाजार नियामक SEBI ने म्यूचुअल फंड फीस संरचना में महत्वपूर्ण बदलावों का प्रस्ताव रखा है। नए नियमों के तहत, म्यूचुअल फंड हाउस अपने प्रदर्शन के आधार पर फीस चार्ज कर सकेंगे, जिससे निवेशकों को बेहतर रिटर्न मिलने की संभावना है। यह कदम निवेशकों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है, क्योंकि इससे फंड मैनेजर की जिम्मेदारी बढ़ेगी। इसके अलावा, SEBI ने ट्रांसपेरेंसी बढ़ाने और निवेशकों के खर्च को कम करने के लिए भी कई उपाय सुझाए हैं। जानें इन नए नियमों के बारे में विस्तार से।
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SEBI के नए नियम: म्यूचुअल फंड फीस संरचना में महत्वपूर्ण बदलाव

SEBI के नए नियम


भारतीय बाजार नियामक SEBI म्यूचुअल फंड फीस संरचना में महत्वपूर्ण सुधार करने की योजना बना रहा है। हाल ही में जारी कंसल्टेशन पेपर में, SEBI ने यह सुझाव दिया है कि म्यूचुअल फंड हाउस अब अपने फंड के प्रदर्शन के आधार पर अलग-अलग फीस चार्ज कर सकेंगे, जिसे परफॉर्मेंस-लिंक्ड एक्सपेंस रेश्यो कहा जाएगा। वर्तमान में यह मॉडल वैकल्पिक है, लेकिन नियामक इसे अधिक व्यवस्थित तरीके से लागू करने की इच्छा रखता है।


बेंचमार्क से बेहतर प्रदर्शन

यदि SEBI का प्रस्ताव लागू होता है, तो इसका अर्थ होगा कि जब कोई फंड अपने बेंचमार्क से बेहतर प्रदर्शन करेगा, तो एसेट मैनेजमेंट कंपनी अधिक फीस चार्ज कर सकेगी। इसके विपरीत, यदि फंड का प्रदर्शन खराब होता है, तो निवेशकों से कम फीस ली जाएगी। यह मॉडल सीधे फंड के प्रदर्शन से संबंधित होगा, जिससे फंड मैनेजर की जिम्मेदारी बढ़ेगी।


निवेशकों के लिए लाभकारी

BPN फिनकैप के निदेशक निगम का मानना है कि यह कदम निवेशकों के लिए फायदेमंद साबित हो सकता है। उनका कहना है कि जब फंड फीस फंड प्रदर्शन से जुड़ी होगी, तो फंड मैनेजर अपने बेंचमार्क से बेहतर प्रदर्शन करने के लिए प्रेरित रहेंगे। निवेशक उन फंड्स में निवेश करने में अधिक आत्मविश्वास महसूस करेंगे जो लगातार बेहतर रिटर्न प्रदान करते हैं।


मैनेजर की जिम्मेदारी

विशेषज्ञों का कहना है कि यह सुधार फंड मैनेजर की जिम्मेदारी को और मजबूत करेगा। हालांकि फंड मैनेजर पहले से ही निवेशकों के सर्वोत्तम हित में काम करते हैं, लेकिन यह मॉडल सीधे उनके संगठन की आय पर प्रभाव डालेगा। इसका मतलब है कि न केवल फंड लॉन्च करना, बल्कि उसके निरंतर प्रदर्शन को बनाए रखना भी उतना ही महत्वपूर्ण होगा।


परफॉर्मेंस-बेस्ड फीस का कार्यान्वयन

मार्केट विशेषज्ञों का मानना है कि यदि परफॉर्मेंस-बेस्ड फीस लागू की जाती है, तो रिटर्न की गणना केवल वार्षिक आधार पर नहीं, बल्कि रोलिंग रिटर्न के माध्यम से की जानी चाहिए। रोलिंग रिटर्न विभिन्न समय अवधि में फंड के निरंतर प्रदर्शन को दर्शाता है, जिससे शॉर्ट-टर्म मार्केट उतार-चढ़ाव का प्रभाव कम होता है।


ट्रांसपेरेंसी की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम

SEBI ने यह भी प्रस्तावित किया है कि म्यूचुअल फंड कंपनियों को अपने कुल खर्च अनुपात की पूरी जानकारी सार्वजनिक रूप से प्रदान करनी होगी। इसका अर्थ है कि अब निवेशकों को यह पता चलेगा कि उनके फंड पर कौन से खर्च चार्ज किए जा रहे हैं। यह कदम निवेश प्रक्रिया को अधिक पारदर्शी बनाएगा और निवेशकों का विश्वास बढ़ाएगा।


निवेशकों का कुल खर्च कम होगा

SEBI ने म्यूचुअल फंड योजनाओं में निवेशकों को होने वाले अतिरिक्त खर्चों को कम करने के लिए एक और महत्वपूर्ण कदम प्रस्तावित किया है। इसमें योजना के एसेट अंडर मैनेजमेंट (AUM) पर लगने वाले अतिरिक्त 5 बेसिस पॉइंट्स (bps) चार्ज को हटाना शामिल है। इससे निवेशकों का कुल खर्च कम होगा और उन्हें लंबे समय में बेहतर रिटर्न प्राप्त होगा।


टैक्स का बोझ

SEBI ने सुझाव दिया है कि टैक्स को खर्च अनुपात में अलग से दिखाया जाए। इसका मतलब है कि खर्च अनुपात की सीमा कम की जाएगी ताकि टैक्स का बोझ निवेशकों पर पारदर्शी तरीके से डाला जा सके। भविष्य में टैक्स दर में होने वाले बदलाव सीधे निवेशकों पर लागू होंगे, जिससे भ्रम समाप्त होगा।


इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट और एडवाइजरी सेवाओं की अनुमति

प्रस्ताव के अनुसार, एसेट मैनेजमेंट कंपनियों (AMCs) को कुछ शर्तों के साथ नॉन-पूल्ड फंड्स को इन्वेस्टमेंट मैनेजमेंट और एडवाइजरी सेवाएं देने की अनुमति दी जा सकती है। हालांकि, टीम, डेटा और निर्णय लेने की प्रक्रिया पूरी तरह से स्वतंत्र रहनी चाहिए। इस कदम का उद्देश्य छोटे निवेशकों की सुरक्षा और हितों की रक्षा करना है।


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