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वजह पूंछी तो पुलिस ने दांत तोड़े और जेल में खाना मांगा तो सेल में बंद कर दिया

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वजह पूंछी तो पुलिस ने दांत तोड़े और जेल में खाना मांगा तो सेल में बंद कर दिया


वजह पूंछी तो पुलिस ने दांत तोड़े और जेल में खाना मांगा तो सेल में बंद कर दिया


वजह पूंछी तो पुलिस ने दांत तोड़े और जेल में खाना मांगा तो सेल में बंद कर दिया


डाॅ. एलएन वैष्णव

दमोह, 23 जून (हि.स.)। आपातकाल वह काला अध्याय है जिसे काला कानून के नाम से पहचाना जाता है। 25 जून की वह काली रात जब लोकतंत्र को कुचलने और व्यक्तिगत स्वार्थ के लिये देश में इमरजेंसी की घोषणा हुई। राष्ट्रभक्तों को चुनचुन कर जेल में डाल दिया गया और यहां तक कि प्रेस पर भी प्रतिबंध लगा दिया गया था।

ज्ञात हो कि 12 जून, 1975 को, इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने इंदिरा नेहरू गांधी बनाम राज नारायण मामले को लेकर अपने फैसले में 1971 के चुनाव को अमान्य घोषित कर दिया था। परिणामस्वरूप 25 जून, 1975 को राष्ट्रीय आपातकाल घोषित किया गया, जो मार्च 1977 तक जारी रहा था। देश में 1975 में आपातकाल की घोषणा इंदिरा गांधी की राजनीतिक असुरक्षा की पराकाष्ठा बतायी जाती है। जिसमें आंतरिक असंतोष, भ्रष्टाचार और लोकतांत्रिक मानदंडों के व्यवस्थित क्षरण ने इसे और भी जटिल बना दिया था। इलाहाबाद उच्च न्यायालय का प्रतिकूल निर्णय था, जिसने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के राजनीतिक भविष्य को खतरे में डाल दिया था। 1975 में इमरजेंसी की घोषणा मुख्य रूप से आंतरिक अशांति के आधार पर की गई थी। तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की सिफारिश पर तत्कालीन राष्ट्रपति फखरुद्दीन अली अहमद ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लागू किया था। महत्वपूर्ण बात यह है कि आपातकाल की अवधि के दौरान, नागरिकों के मौलिक अधिकारों पर प्रतिबंध के साथ प्रेस पर भी सेंसरशिप लगा दी गई थी।

लोकतंत्र सैनानी डाॅ. रामशंकर राजपूत -

आपातकाल के दौरान देश में लाखों लोगों को बिना कारण बताये जेल भेज दिया गया, उनको यातनायें दी गयीं। दमोह जिले के छोटे से गांव बांसा तारखेडा के निवासी लोकतंत्र सैनानी डाॅ. रामशंकर राजपूत से हमने आपातकाल के बारे में संवाद किया। वह कहते हैं कि मैं अपने दवाखाने में बैठा था और अचानक दो गाड़ियों में रायफल लेकर पुलिस आ गयी। उन्होने कहा कि कलेक्टर साहब ने बुलाया है, अभी दो-तीन घंटे में वापिस आ जायेंगे। मैंने कहा कि भोजन का समय है में भोजन कर लूं मैने पत्नि से कहा भोजन परोसो और बिस्तर एवं जरूरी सामन भी रख दो। इसके बाद मैं यह सब लेकर पुलिस के साथ चला गया, पूरे गांव में भीड़ एकत्रित हो गयी थी।

दांत तोड़ दिये -

डाॅ. रामशंकर राजपूत बताते हैं कि मैं उस समय लगभग 40 वर्ष का था। मैंने पुलिस से पूछा कि मुझे थाने में क्यों लेकर आये हो, कारण बताओ। इतना कहने पर उन्हाेंने कहा साथियों के नाम बताओ। आरएसएस के पदाधिकारियों और कार्यकर्ताओं के नाम बताओ क्याेंकि उस समय में सहकार्यवाह था। न बताने पर पुलिस ने इतना मारा कि मेरे मुंह से खून निकलने लगा, मेरे सारे दांत बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो गये। वह अपने दांतों की बस्तीसी निकालकर बताते हैं कि जेल से रिहा होने के बाद यह हमने बनवायी थी। वह बताते हैं कि जेल में भोजन और मेनूअल की जानकारी मांगने पर मुझे सेल में डाल दिया। मेरे साथियों ने जब जेल में आमरण अनशन किया तो मुझे सेल से निकाला गया।

संविधान की रक्षा के लिये जेल - डाॅ. रामशंकर राजपूत कहते हैं कि डाॅ. भीमराव अंबेडकर के संविधान की रक्षा के लिये हम लोगों ने लड़ाई लड़ी। जेल में 21 माह से अधिक यातनायें सहीं। इसी संविधान को कुचलने का कार्य कांग्रेस सरकार की प्रमुख देश की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने किया था।

जेल में लगायी शाखा, गाये गीत -

डाॅ. रामशंकर राजपूत कहते हैं कि हमारे साथ उस समय 42 लोग बंद थे जो सभी आरएसएस के कार्यकर्ता थे। हम सभी एक छोटी से कोई भी लकड़ी को लगाकर ध्वज की कल्पना कर सुबह-शाम शाखा लगाते और प्रार्थना गीत गाते थे। वहां बंद कैदी-बंदी भी उनके साथ जुड़ने लगे थे। 21 दिन में हम सभी को श्रीमद्भगवत गीता याद हो गयी थी। जब उनसे पूछा कि जेल में समय कैसे कटता था, तो वह कहते हैं कि स्वाध्याय और अन्य लोगों के लिये राष्द्र भक्ति के लिये प्रेरित करना यही चलता रहता था। संध्या के समय लाॅकअप होने के बाद एक दूसरे के परिवार के बारे में चर्चा होती थी। जब हेड डांटते हुये रोज कहता कि रात्रि हो गयी है सो जाओ तो हम लोग कंबल लेकर एक शेर कहते कि ''किस किसकी चिंता कीजिये किस किस पर रोईये, गम बढ़ी चीज है मुंह ढांक के सोईये'' यह कहते हुये हम सभी जोर-जोर से हंसते और सो जाते थे। प्रति 3 माह में एक पत्र कलेक्टर का जेल में आता था जिसको हम सभी प्रेम पत्र कहने लगे थे। जिसमें 42 लोगों के नाम की सूूची होती थी और लिखा होता था आप सभी से देश को खतरा है, इसलिये आपको जेल में अभी निरूद्ध रखना आवश्यक है। 21 माह बाद आपातकाल समाप्त हो गया सभी छोड़ दिये गये लेकिन हम आरएसएस के कार्यकर्ताओं को 21 माह 17 दिन बाद रिहा किया गया।

परिवार पर विपत्ति -

डाॅ. रामशंकर राजपूत एक प्रश्न के उत्तर में कहते हैं कि वह बड़ी विपत्ति का समय था में अकेला घर का कमाने वाला। प्रतिष्ठित डाक्टर पैसे की कमी नहीं लेकिन आपातकाल में जेल में बंद आय का साधन बंद हो गया। पत्नी और बेटी ने बीडी बनाना प्रारंभ किया जिससे मिलने वाले पैसों से परिवार को चलाया। वह कहते हैं कि बच्चों ने जनता के बीच चुनाव में वोट की भीख मांगी कि जनता पार्टी को वोट दे दो मेरे पिता और उनके साथी जेल से छूट जांयेगे।

पेंशन नहीं लेना फिर दान देना - डाॅ. रामशंकर राजपूत ने बताया कि भाजपा सरकार बनने पर हम सभी को मीसा बंदी की जगह लोकतंत्र सैनानी नाम दिया गया। कुछ सुविधाओं के साथ पेंशन प्रारंभ की गयी लेकिन मैंने लेने से इंकार किया। जब सभी ने आग्रह किया तो फिर हमने लेकर दान करना प्रारंभ कर दिया। मेरा मानना था कि पेंशन के लिये जेल नहीं गये लोकतंत्र की रक्षा के लिये कार्य किया है। सेवा भारती एवं अन्य संगठनों के साथ जरूरतमंदों को पेंशन में देने लगा।

पाठ्यक्रम में सम्मिलित हो आपातकाल - डाॅ. रामशंकर राजपूत कहते हैं कि आपातकाल को भारत सरकार को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करना चाहिये ताकि युवाओं और आने वाली पीढ़ी को यह जानकारी मिल सके कि संविधान को कांग्रेस ने किस प्रकार कुचला था। उसको बचाने के लिये राष्ट्रभक्तों ने किस प्रकार जेल में यातनायें सहीं। मीसा बंदियों की सूची को लेकर वह कहते हैं कि हम 42 लोग उस समय बंद हुये थे जिनके ऊपर डीआईआर बाद मीसा लगा था।

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हिन्दुस्थान समाचार / हंसा वैष्णव