आपातकाल के 50 वर्ष : उत्पीड़न की ऐसी पीड़ा, 16 महीने तक राजेंद्र अग्रवाल नहीं देख सके सूर्य की रोशनी


रामानुज शर्मा
नई दिल्ली, 09 अक्टूबर (हि.स.)। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के जिला प्रचारक रहे राजेंद्र अग्रवाल ऐसे लोकतंत्र रक्षक सेनानी हैं, जिन्हें आपातकाल के दौरान पीलीभीत कारागार की अंधेरी कोठरी में रखा गया। उनके साथ हुए उत्पीड़न का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उन्हें 16 महीने तक यही नहीं पता चल सका कि दिन है या रात? वह सूर्य की रोशनी देखने के लिए तरस गए थे।
लोकतंत्र रक्षक सेनानी, राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व जिला प्रचारक एवं मेरठ के सांसद रहे राजेंद्र अग्रवाल हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में
आपातकाल को लोकतंत्र पर सबसे बड़ा आघात बताते हैं। वह कहते हैं कि यह कांग्रेस सरकार द्वारा संविधान का बेजा इस्तेमाल करके लोकतांत्रिक व्यवस्था के प्रति किया गया कुठाराघात था। यह ऐसा दौर था, जिसमें आम से लेकर खास तक, हर शख्स ने न केवल असहनीय पीड़ा सही, बल्कि उसे नाना प्रकार से उत्पीड़ित किया गया। सबका हाल एक-सा था। अमानवीय आचरण, जुल्म और अत्याचार को सहना, जिसकी कोई सुनवाई नहीं थी। इंदिरा गांधी सरकार की मनमानी और तानाशाही के कारण वह खुद 21 महीने तक जेल में रहे। इनमें से 16 महीने उन्हें पीलीभीत कारागार की अंधेरी कोठरी में बिताने पड़े। इस दौरान उन्हें रात और दिन का पता ही नहीं चल पाता था। कहने का मतलब यह कि वह 488 दिनों तक सूर्यदेव की रोशनी देखने के लिए तरस गए।
राजेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि आपातकाल लगते ही वह भूमिगत हो गए थे। संघ के नियमित कार्यों को अंजाम देने के साथ-साथ वह लोगों से मिलते और उन्हें आपातकाल के बारे में अवगत कराते थे। वह पत्रक और अन्य सूचनाएं पहुंचाने के कार्य में लगे हुए थे। उन्होंने बताया कि संघ का कार्य व्यक्ति को व्यक्ति से जोड़ना होता है, वास्तव में संघ के स्वयंसेवक आम व्यक्ति के घर के चूल्हे तक पहुंचकर उसे अपनाने के साथ समाज की मुख्य धारा में लाते हैं। यही संघ की असली पूंजी है। आज संघ न केवल अपने उद्देश्यों को साकार होते देख रहा है कि वह अपनी शताब्दी वर्ष मना रहा है।
उन्होंने बताया कि इसी दौरान उन्हें 28 जुलाई 1975 को गिरफ्तार कर लिया गया। उन पर भारत रक्षा अधिनियम (डीआईआर) लगा दिया गया। 16 महीने तक पीलीभीत जेल में रखने के बाद उन्हें मीसा के तहत बरेली जेल भेज दिया गया। यहां वह पांच महीने तक रहे। तब जाकर उन्हें सूर्यदेव के दर्शन मिले और रात-दिन होने का पता चला। राजेंद्र अग्रवाल के अलावा तत्कालीन नगर प्रचारक सुंदर लाल गंगवार, बीसलपुर के प्रचारक लक्ष्मण सहित अधिकतर प्रचारकों को एक-एक करके बंदी बना लिया गया था।
संघ से जुड़े लोग बताते हैं कि राजेंद्र अग्रवाल के जेल जाने के बाद नेतृत्व ने पीलीभीत जनपद में भूमिगत अभियान संभालने के लिए मेरठ जिले की सरधना तहसील के प्रचारक का दायित्व संभाल रहे राजेंद्र प्रकाश को वहां भेजा गया था। जेल में इतनी अधिक सख्ती और दुर्व्यवहार का माहौल था कि किसी से मिलना तो दूर, घर का भोजन भी नहीं लेने दिया जाता था। अखबार, पत्रिकाएं और किताबें, कुछ भी पढ़ने को नहीं मिलता था। इसके बावजूद सभी लोग जेल के अंदर ही सांकेतिक रूप से भगवा ध्वज को प्रणाम कर शाखा लगाते और खेलकूद, गोष्ठी, विचार मंथन और चर्चाएं आदि करते थे। कुछ दिनों बाद जब उनकी जेल में जाने-माने इतिहासविद् एवं राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के पूर्व जिला संघचालक डॉ. फतेह बहादुर सिंह को गिरफ्तार करके लाया गया तो उनसे मिलने जेलर पहुंचे। डॉ. सिंह नामचीन शख्सियत और इतिहास के विद्वान थे। अग्रवाल बताते हैं कि इसके बाद हम लोगों को जेल में कुछ सहूलियतें मिलने लगीं। जैसे अखबार, पत्रिकाएं और घर का भोजन आदि।
भौतिक शास्त्र से परास्नातक 74 वर्षीय राजेंद्र अग्रवाल बताते हैं कि बरेली जेल में 105 लोग आपातकाल के बंदी थे। इनमें से 90 लोग राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ, जनसंघ और अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद से थे। कुछ समय बाद इलाके के दो प्रसिद्ध गणमान्य जंग बहादुर उर्फ दद्दा जी और रमेश जी उनकी जमानत लेने आए कि कल आप लोग जेल से बाहर जा जाएंगे, लेकिन उसी रात उन दोनों को भी गिरफ्तार कर लिया गया। अग्रवाल बताते हैं कि कुल 21 महीने तक जेल में रहने के बाद 24 नवंबर 1977 को वह रिहा हुए। तब तक आम चुनाव की घोषणा हो चुकी थी। वे सब फिर से संगठन के काम में जुट गए।
वे बताते हैं कि 1977 के आम चुनाव की खास बात यह थी कि उसमें राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने पहली बार किसी पार्टी के साथ खुलकर काम करने का ऐलान किया था। इसका परिणाम भी सामने आया और मोरारजी देसाई गठबंधन सरकार के प्रधानमंत्री बने थे, लेकिन गठबंधन में शामिल पार्टियों के नेताओं में आपसी अहम इतना अधिक था कि यह सरकार अधिक दिनों तक नहीं चल सकी। दोबारा चुनाव हुए तो इंदिरा गांधी पुनः सत्ता पर काबिज हो गईं।
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हिन्दुस्थान समाचार / रामानुज शर्मा