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एक हाथ से रची आत्मनिर्भरता की नई कहानी, पूरन सिंह बने ग्रामीण विकास के प्रतीक

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एक हाथ से रची आत्मनिर्भरता की नई कहानी, पूरन सिंह बने ग्रामीण विकास के प्रतीक


एक हाथ से रची आत्मनिर्भरता की नई कहानी, पूरन सिंह बने ग्रामीण विकास के प्रतीक


चंपावत, 31 अक्टूबर (हि.स.)। चंपावत के लोहाघाट विकासखंड स्थित बलाई ग्राम पंचायत के पूरन सिंह ने एक दुर्घटना में अपना एक हाथ गंवाने के बावजूद खेती और पशुपालन को अपनाकर आत्मनिर्भरता की मिसाल पेश की है। उनका यह प्रयास मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के आत्मनिर्भर उत्तराखंड और रिवर्स पलायन अभियान को जमीनी स्तर पर मजबूती दे रहा है।

पूरन सिंह की संघर्षपूर्ण यात्रा वर्ष 2009 में शुरू हुई, जब राजस्थान की एक कंपनी में काम करते हुए एक हादसे में उनका बायां हाथ कट गया। इस गंभीर दुर्घटना के बावजूद, उन्होंने हिम्मत नहीं हारी और एक हाथ से ही विभिन्न कंपनियों में काम करना जारी रखा। कोरोना महामारी के दौरान जब लाखों लोग अपने पैतृक गांवों को लौटे, पूरन सिंह भी अपने गांव बलाई वापस आ गए। यहीं से उन्होंने कृषि और डेयरी व्यवसाय को अपनाया। वर्तमान में, वे खेती के साथ-साथ दूध से खोया और पनीर बनाकर स्थानीय बाजारों में बेचते हैं, जिससे उन्हें स्थायी आय प्राप्त होती है और गांव में रोजगार का एक उदाहरण भी स्थापित हुआ है।

पूरन सिंह की कार्यकुशलता उल्लेखनीय है। वे एक हाथ से ट्रैक्टर चलाते हैं, घास काटते हैं और मशीनों की मरम्मत भी स्वयं करते हैं। उन्होंने अपनी सुविधा के अनुसार ट्रैक्टर के सभी नियंत्रणों को दाएं हाथ से संचालित करने योग्य बना लिया है।वर्तमान में, वे आलू, गेहूं और मौसमी सब्जियों की खेती कर रहे हैं। इसके अतिरिक्त, उन्होंने एक फलोद्यान भी तैयार किया है।

पूरन सिंह का कहना है कि गांव की मिट्टी ही हमारी पहचान है। अगर हम खेती और पशुपालन को अपनाएं तो पलायन की जरूरत ही नहीं पड़ेगी।

उनकी यह कहानी लोहाघाट ही नहीं, बल्कि पूरे राज्य के युवाओं के लिए प्रेरणा का स्रोत है। पूरन सिंह साहस, आत्मनिर्भरता और स्वाभिमान का उदाहरण प्रस्तुत करते हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / राजीव मुरारी