कोंडागांव: पढ़ाई के साथ खेती-बाड़ी सिखाने वाला कोंडागांव के पीकड़भाटा गांव का अनोखा स्कूल
कोंडागांव, 13 नवंबर (हि.स.)।छत्तीसगढ़ के कोंडागांव जिले में एक गांव ऐसा भी है, जहां बच्चे पढ़ाई के साथ खेती के जरिए कमाई करना भी सीख रहे हैं । जुलाई में स्कूल की खाली पड़ी जमीन पर बच्चों ने धान रोपा था । नन्हें हाथों से रोपी गई फसलें अब अब लहलहा रहीं हैं । इनकी कटाई भी बच्चे ही कर रहे हैं । चूंकि जुताई के वक्त हल चलाना थोड़ा मुश्किल हो जाता, इसलिए उस वक्त बस बच्चों ने अपने पिता की मदद ली थी । पिछले साल भी बच्चों ने धान की फसल उगाकर 14 हजार रुपये की कमाई की थी। इसे स्कूल के लिए प्रिंटर खरीदने के साथ पढ़ाई के दूसरे संसाधन जुटाने पर खर्च किया गया । पढ़ाई के साथ खेती-बाड़ी सिखाने वाला जिले का यह अनोखा स्कूल लेमड़ी पंचायत के पीकड़भाटा गांव में पड़ता है।
उच्च प्राथमिक शाला के प्रधान पाठक देवी सिंह मरकाम बताते हैं कि स्कूल में जमीन पर्याप्त है। बारिश का पानी भरने से जमीन अनुपयोगी हो गई थी। ऐसे में हमने सोचा कि क्यों न इस जगह का इस्तेमाल बच्चों को खेती-किसानी की बारीकियां सिखाने में किया जाए। वैसे भी ग्रामीण अंचल के ज्यादातर बच्चे किसान परिवार से आते हैं । ऐसे में बच्चों को किताबी ज्ञान के साथ कृषि के जरिए आत्मनिर्भर बनाने नवाचार के उद्देश्य से खेती-किसानी को किसी कोर्स की तरह चलाया गया। स्कूल में जून से नवंबर तक धान की खेती की जाती है। अब नवंबर से अप्रैल यानी 6 महीने तक स्कूल के किचन गार्डन में साग-सब्जियां उगाई जाएंगी। इन सब्जियों का इस्तेमाल स्कूल के मिड-डे मील में किया जाता है। इससे बच्चों को ताजा और पौष्टिक भोजन मिलता है। इसके अलावा यहां केले के पेड़ भी लगाए गए हैं, जिनके फल बच्चों को भोजन के साथ परोसे जाते हैं। इस साल यहां धान की फसल काफी अच्छी हुई है, इसका उत्साह भी नजर आ रहा है।
संकुल समन्वयक गजाधर पांडे ने कहा कि यह देखकर बहुत खुशी होती है कि पालक भी इस पहल में पूरे मन से सहयोग कर रहे हैं। बच्चे परंपरागत खेती के साथ आधुनिक तकनीक भी सीख रहे हैं। इस फसल से मिलने वाली आमदनी का उपयोग बच्चों के अध्ययन, शिक्षण सामग्री और जरूरतमंद छात्रों की मदद में कर रहे हैं। स्कूल की जमीन पर बच्चे जहां नन्हे हाथों से फसल रोपते हैं, तो इनके लिए हल चलाने का मुश्किल काम पिता करते हैं। वहीं स्कूल स्टाफ फसलों की देखरेख करता है। धान की फसल चूंकि अब पककर तैयार हैं, तो इन्हें खरीदने के लिए इलाके के व्यापारी खुद स्कूल आएंगे। इस साल भी स्कूल की फसल लहलहा रही है। इससे पालक, शिक्षक और छात्र, सभी के चेहरों पर खुशी देखते बनती है। शिक्षकों और पालकों का कहना है कि फसल बेचकर जितनी कमाई आएगी, उसे स्कूल में पढ़ाई के बेहतर संसाधन जुटाने और बच्चों को शैक्षणिक भ्रमण करवाने पर खर्च किया जाएगा।
हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे
