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गुजरात के डांग जिले की मंगीबेन को प्राकृतिक खेती ने बनाया लखपति दीदी

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गुजरात के डांग जिले की मंगीबेन को प्राकृतिक खेती ने बनाया लखपति दीदी


गुजरात के डांग जिले की मंगीबेन को प्राकृतिक खेती ने बनाया लखपति दीदी


गांधीनगर, 13 अक्टूबर (हि.स.)। गुजरात के डांग जिले की मंगीबेन को कृषि विकास दिवस, प्राकृतिक खेती ने लखपति दीदी बना दिया है। प्राकृतिक सौंदर्य से लकदक डांग जिला चार वर्ष पहले संपूर्ण रूप से रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती वाला जिला घोषित हो चुका है। तब से यह पहल आदिवासी किसानों के जीवन में एक शानदार बदलाव लेकर आई है।

07 अक्टूबर, 2025 को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के सेवा और समर्पण के 24 वर्ष पूरे होने पर गुजरात 7 से 15 अक्टूबर तक विकास सप्ताह मना रहा है। इसके अंतर्गत राज्य में कृषि क्षेत्र में हुई प्रगति को ध्यान में रखते हुए 14 अक्टूबर का दिन ‘कृषि विकास दिवस’ के रूप में मनाया जाएगा।

राज्य सूचना विभाग ने अपने बयान में बताया कि जब भी प्राकृतिक कृषि की बात होती है तो एक अभियान का नाम अनायास ही जुबान पर आता है, वो है ‘आपणुं डांग, प्राकृतिक डांग’ यानी ‘हमारा डांग, प्राकृतिक डांग।’ इस अभियान के माध्यम से वर्ष 2021 में प्राकृतिक सौंदर्य से लकदक डांग जिले को संपूर्ण रूप से रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती वाला जिला घोषित किया गया था। तब से यह पहल आदिवासी किसानों के जीवन में एक शानदार बदलाव लेकर आई है। इस बदलाव का चेहरा बनकर उभरी हैं आहवा जिले के धवलीदोड़ गांव की मंगीबेन, जो आज प्राकृतिक खेती अपनाकर लखपति दीदी बन गई हैं।

विभाग ने बताया कि मंगीबेन का साहस से समृद्धि तक सफर दूसरी महिलाओं के लिए प्रेरणादायी बन गया है। मिशन मंगलम (एनआरएलएम) के तहत फील्ड को-ऑर्डिनेटर ने मंगीबेन को स्वयं सहायता समूह (एसएचओ) में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया था। डांग जैसे वन क्षेत्र और वहां की समृद्ध वन उपज के महत्व को समझते हुए मंगीबेन ने साहस जुटाकर एक नया उद्यम शुरू किया। डांग में उगाए जाने वाले श्रीअन्न नागली (रागी की एक किस्म) को बहुत ही पौष्टिक माना जाता है। इसके स्वास्थ्य लाभ और बाजार संभावनाओं को ध्यान में रखकर मंगीबेन ने नागली की खेती और प्रसंस्करण की दिशा में कदम बढ़ाया। उन्होंने अपने समूह के साथ मिलकर नागली से मूल्यवर्धित उत्पाद बनाने की शुरुआत की।

स्वयं सहायता समूह में शामिल होने से पहले मंगीबेन एक सीजनल यानी मौसमी खेतिहर मजदूर के रूप में मनरेगा के तहत काम करती थीं। मंगीबेन के जीवन में एक नया और सुखद मोड़ तब आया, जब उन्होंने ग्रामीण स्वरोजगार प्रशिक्षण संस्था (आरएसईटीआई) से श्रीअन्न के प्रसंस्करण का निःशुल्क प्रशिक्षण प्राप्त किया। प्रशिक्षण के बाद उन्होंने नागली आटा, लड्डू, कुकीज और स्वास्थ्यप्रद मिश्रण बनाना सीखा और छोटे पैमाने पर अपना एक उद्योग शुरू किया। जब गुजरात सरकार ने डांग को पूरी तरह से रसायन मुक्त प्राकृतिक खेती वाला जिला घोषित किया, तब मंगीबेन ने नागली की ऑर्गेनिक (जैविक) खेती करने का रास्ता चुना। टिकाऊ खेती से उत्पादों की न्यूट्रीशन वैल्यू यानी पोषण मूल्य तो बढ़ा ही, साथ ही उनका बाजार मूल्य भी बढ़ गया।

मंगीबेन ने उद्योग शुरू करने के पहले ही महीने में 15,000 रुपये के उत्पाद बेचे। इसके बाद, उन्होंने अपने स्वयं सहायता समूह से 10 और महिलाओं को अपनी इस गतिविधि में शामिल किया। आज उनकी यूनिट प्रतिमाह 60,000 रुपये तक के नागली के उत्पादों का उत्पादन और बिक्री करती है और 20,000 रुपये की मासिक आय अर्जित करती है। सरकार के सहयोग से वे विभिन्न प्रदर्शनियों और मेलों में हिस्सा लेती हैं। बाजार का विस्तार करती हैं और प्राकृतिक खेती के मिशन के तहत ब्रांडिंग और प्रमोशन की पहलों का लाभ प्राप्त करती हैं।

मंगीबेन का खेतिहर मजदूर से उद्यमी बनने तक का सफर, लखपति दीदी की पहल को भी उजागर करता है। उनका यह सफर दर्शाता है कि कैसे प्राकृतिक खेती का रास्ता डांग की महिलाओं के लिए नियमित रोजगार का माध्यम बन गया है और दूसरी महिलाओं को भी इस दिशा में काम करने की प्रेरणा दी है। इतना ही नहीं, यह स्थानीय संसाधनों के उपयोग और सामुदायिक भागीदारी के जरिए विकास का टिकाऊ मॉडल भी दर्शाता है।

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हिन्दुस्थान समाचार / Abhishek Barad