अंबुबासी मेला: आस्था और प्रकृति के चक्र का अद्भुत संगम
गुवाहाटी (असम), 22 जून (हि.स.)। शक्ति की उपासना और तांत्रिक परंपराओं के जीवंत प्रतीक अंबुबासी मेले का आयोजन मां कामाख्या धाम, गुवाहाटी में पूरे श्रद्धा-भाव से चल रहा है। यह मेला न केवल धार्मिक मान्यता का केंद्र है, बल्कि सांस्कृतिक विविधता और अर्थव्यवस्था के लिए भी महत्वपूर्ण बन गया है।
हर साल जून माह में मनाया जाने वाला यह चार दिवसीय पर्व, मां कामाख्या के ऋतुकाल का प्रतीक है। मान्यता है कि इस दौरान देवी मां रजस्वला होती हैं, इसलिए मंदिर के गर्भगृह के द्वार तीन दिनों तक बंद रहते हैं।
इन तीन दिनों में असम भर में खेती और धार्मिक गतिविधियाँ भी रोक दी जाती हैं। श्रद्धालु मानते हैं कि यह समय धरती माता के विश्राम का है, और उन्हें किसी भी प्रकार से विचलित नहीं किया जाना चाहिए।
चौथे दिन, मंदिर का द्वार भव्य पूजा-अर्चना के साथ पुनः खोला जाता है। इस अवसर पर लाखों श्रद्धालु, साधु-संत, अघोरी और देश-विदेश से आए साधक मां के दर्शन के लिए एकत्र होते हैं।
इस वर्ष 5 लाख से अधिक श्रद्धालुओं के शामिल होने की संभावना है। राज्य सरकार ने इस भारी भीड़ को ध्यान में रखते हुए सुरक्षा, स्वास्थ्य, भोजन और विश्राम की व्यापक व्यवस्था की हैं।
मंदिर परिसर इन दिनों एक अद्भुत आध्यात्मिक ऊर्जा से भरा हुआ है। साधु, त्रिशूल लिए अघोरी, मंत्रोच्चार और तांत्रिक अनुष्ठानों के दृश्य एक विशिष्ट अनुभव रचते हैं, जो अंबुबासी को अन्य मेलों से अलग बनाते हैं। यह मेला सिर्फ धार्मिक नहीं बल्कि स्थानीय व्यवसाय, पर्यटन और परिवहन सेवाओं के लिए आर्थिक संजीवनी भी बन गया है।
समय के साथ मेला भले बदल रहा हो, लेकिन इसकी आत्मा आज भी वही है- आस्था, नारी शक्ति और प्रकृति के चक्रों का महापर्व, जो भारत की गहरी आध्यात्मिक विरासत को जीवंत रखता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीप्रकाश