ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ शौर्य का प्रतीक है बलिया का महावीरी झंडा जुलूस


बलिया, 9 अगस्त (हि.स.)। बलिया का महावीरी झंडा जुलूस शौर्य का प्रतीक है। यह जुलूस हर साल बड़ी धूमधाम से निकाला जाता है, जिसमें पारंपरिक हथियारों और अखाड़ों का प्रदर्शन होता है। यह जुलूस न केवल बलिया की एक महत्वपूर्ण धार्मिक परंपरा है, बल्कि इसका एक ऐतिहासिक महत्व भी है, जो इसे आजादी की लड़ाई से जोड़ता है।
इतिहासकार शिवकुमार सिंह कौशिकेय बताते हैं कि बलिया का महावीरी झंडा जुलूस 1927 से निकाला जा रहा है, और इसका एक लंबा इतिहास रहा है। यह जुलूस 1930 में ब्रिटिश सरकार द्वारा बंद करने के प्रयासों के बावजूद, देशभक्तों के प्रयासों से जारी रहा। महावीरी झंडा जुलूस में युवा अखाड़ों में अपने शारीरिक कौशल और पारंपरिक हथियारों जैसे कि लाठी, भाला, और तलवार का प्रदर्शन करते हैं। यह जुलूस शौर्य, साहस और पराक्रम का प्रतीक माना जाता है। शौर्य के साथ -साथ यह जुलूस आस्था को भी समर्पित है। इसे रक्षाबंधन के अवसर पर निकाला जाता है। झंडा फहराने का उद्देश्य यश, कीर्ति, विजय और पराक्रम को फैलाना माना जाता है। शनिवार को दोपहर से नौ अखाड़ों द्वारा निकाले जाने वाले महावीरी झंडा जुलूस के दौरान, प्रशासन ने सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम किए हैं। बिशुनीपुर बड़ी मस्जिद के आसपास सैकड़ों सीसीटीवी कैमरे लगाए गए हैं। मस्जिद को दो तरफ से बैरिकेट कर भारी पुलिस बल तैनात किए गए हैं। जुलूस की सुरक्षा में ड्रोन कैमरों का उपयोग शामिल किया गया है।
सांस्कृतिक परम्परा का संवाहक महावीरी झंडा जुलूस
बलिया की एक महत्वपूर्ण सांस्कृतिक परंपरा भी है, जिसमें लोग उत्साह और उमंग के साथ भाग लेते हैं।जुलूस में विभिन्न देवी-देवताओं और धार्मिक विषयों पर आधारित आकर्षक झांकियां भी शामिल होती हैं। जुलूस में पारंपरिक वाद्ययंत्र जैसे कि ढोल, नगाड़े, और शहनाई का उपयोग किया जाता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / नीतू तिवारी