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प्रजातांत्रिक व्यवस्था काे दरकिनार कर शासन द्वारा कमलचंद्र काे बस्तर महाराजा घोषित करने के बाद ही हाे सकेगी रथारूढ़ हाेने की परंपरा

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प्रजातांत्रिक व्यवस्था काे दरकिनार कर शासन द्वारा कमलचंद्र काे बस्तर महाराजा घोषित करने के बाद ही हाे सकेगी रथारूढ़ हाेने की परंपरा


प्रजातांत्रिक व्यवस्था काे दरकिनार कर शासन द्वारा कमलचंद्र काे बस्तर महाराजा घोषित करने के बाद ही हाे सकेगी रथारूढ़ हाेने की परंपरा


जगदलपुर, 26 सितंबर (हि.स.)। बस्तर दशहरे का प्रमुख आकर्षण फूल रथ की परिक्रमा इन दिनाें जारी है, यह अनवरत 29 सितंबर तक राेजाना जारी रहेगा । इस दाैरान राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव के द्वारा मां देतेश्वरी के छत्र के साथ रथारूढ़ होने के लिए प्रयासरत हैं। इस संबध में बस्तर दशहरा के ऐतिहासिक तथ्य काे समझना आवश्यक है। जिसके तहत 25 मार्च 1966 को बस्तर के अंतिम बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव की हत्या के बाद तत्कालीन बस्तर कलेक्टर ने राज परिवार के किसी भी सदस्य को बस्तर दशहरा में मां देतेश्वरी के छत्र के साथ रथारूढ़ होने पर रोक लगाकर उसके स्थान पर मां दंतेश्वरी के मुख्य पुजारी को मां दंतेश्वरी के छत्र को लेकर रथारूढ़ होने का आदेश प्रदान किया ।अनवरत लगभग 57 वर्षों से यह परंपरा जारी है।

प्रश्न यह उठता है कि वर्तमान राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव को यदि बस्तर दशहरा रथ में मां दंतेश्वरी के छत्र के साथ् रथारूढ़ करना है, तो उसे सबसे पहले शासन-प्रशासन के द्वारा प्रजातांत्रिक व्यवस्था काे दरकिनार कर बस्तर रियासत का महाराजा घोषित करना पड़ेगा।

उल्‍लेखनीय है कि बस्तर दशहरा में मां दंतेश्वरी के छत्र के साथ् रथारूढ़ होने के लिए राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव वर्ष 2000 से अनवरत प्रयासरत हैं।वर्ष 2000 में तत्कालीन बस्तर कलेक्टर प्रवीर कृष्ण ने बस्तर दशहरा पर्व को लोकोत्सव की संज्ञा देकर सामंतशाही को इससे दूर रखकर राजपरिवार सदस्यों को केवल साधारण नागरिक की हैसियत से बस्तर दशहरा में सम्मिलित होने की सलाह दी थी। फलस्वरूप राजपरिवार को एक साधारण नागरिक जैसे इसमें भाग लेना पड़ा। इसी कड़ी में पुन: राजपरिवार सदस्यों के द्वारा 10 अगस्त को बस्तर दशहरा की परंपराओं में शामिल होने वालों के साथ एक बैठक आहूत कर उसे बस्तर का आदिवासी समाज का प्रतिनिधित्वकर्ता बताया। बस्तर सांसद महेश कश्यप पदेन अध्यक्ष बस्तर दशहरा महापर्व समिति को प्रेषित ज्ञापन में बस्तर दशहरा महापर्व में राजपरिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव एवं उनकी पत्नी के नाम का उल्लेख नहीं करते हुए वर्तमान महाराजा-महारानी को पुन: रथारूढ़ करने व ऐतिहासिक मुरिया दरबार में महत्वपूर्ण स्थान प्रदान किए जाने की मांग रख दी।

वहीं जिन लोगों के द्वारा बस्तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव को बस्तर दशहरा के रथ में मां दंतेश्वरी के छत्र के साथ बैठने की मांग की जा रही है, उनका वजूद सिर्फ बस्तर दशहरा के परंपराओं के निर्वहन तक सीमित है। अर्थात बस्तर दशहरा के परंपराओं में शामिल मांझी, मुखिया, मेंबर, मेंबरिन इन का कोई जनाधार बस्तर के राजनीति में नहीं है। बस्तर दशहरा के मुरिया दरबार की परंपरा के निर्वाहन में शामिल माझी, मुखिया, मेंबर, मेंबरिन तत्कालीन बस्तर रियासत के अंग थे, जिनके द्वारा आज भी बस्तर दशहरा को परंपरओं के निर्वहन तक मात्र सीमित है। बस्तर अनुसूचित क्षेत्र है, यहां सभी चुन कर पहुंचे आदिवासी जनप्रतिनिधि ही बस्तर के राजनीति में बस्तर का प्रतिनिधित्व करते हैं।

कमलचंद्र भंजदेव, अंतिम बस्तर महाराजा प्रवीर के वारिस नहीं

वर्तमान बस्‍तर राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव, अंतिम बस्तर महाराजा प्रवीर के वारिस नहीं है। अपितु कमलचंद्र भंजदेव, अंतिम बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव के छोटे भाई विजयचंद्र भंजदेव के वारिस हैं। आजादी के बाद पहले राजनीति का शिकार हुए बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव के प्रभाव काे कम करने के लिए तत्कालीन शासन-प्रशासन के द्वारा षड़यंत्र कर बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव के स्थान पर उनके छाेटे भाई विजयचंद्र भंजदेव को बस्तर महाराज घोषित कर दिया।

बस्तर महाराजा प्रवीरचंद्र भंजदेव के द्वारा लिखित लाेहड़ीगुड़ा तरंगिणी में उल्लेखित किया, जिसमें विजयचंद्र भंजदेव का कहना था, कि दुर्योग से मेरा भाई प्रवीरचंद्र भंजदेव बुरे संगत के कारण गलत रास्ते में पड़ गए, इसके साथ ही उन्होंने उनके चरित्र के ऊपर भी उंगली उठाते हुए अपने आप को बस्तर का महाराज घोषित करते हुए आम लोगों को उनके आदेश का पालन करने एवं कानून के विरोध में काम करने पर सजा का भागीदार हाेने का फरमान जारी कर दिया। बस्तर दशहरा के रथ में राज परिवार के किसी भी सदस्य काे रथारूढ़ नहीं करने का इतिहास यहां से शुरू हुआ है।

विजयचंद्र भंजदेव को बस्‍तर महाराज घोष‍ित करने पर जनता ने क‍िया था व‍िरोध

राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव के दादा विजयचंद्र भंजदेव जिसे तत्कालीन शासन-प्रशासन के द्वारा महाराज प्रवीरचंद्र भंजदेव के स्थान पर बस्तर महाराज घोषित कर दिये जाने से बस्तर की जनता ने इसका पुरजाेर विराेध कर दिया। इस विराेध के कारण कभी भी रथ में विराजमान होने की अनुमति देने से साफ इनकार कर दिया ।इसके बाद तत्कालीन शासन-प्रशासन के द्वारा राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव के दादा विजयचंद्र भंजदेव काे बस्तर महाराजा घाेषित करने बावजूद बस्तर दशहरा के रथ में चढ़ने नहीं दिया गया। इसी कड़ी में वर्तमान राज परिवार के सदस्य कमलचंद्र भंजदेव अब बस्तर दशहरा रथ में चढनें के लिए प्रयासरत हैं।

हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे